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किसी व्यक्ति द्वारा अदालत से आप के विरुद्ध अचानक कोई आदेश लाने की आशंका होने पर कैवियट प्रस्तुत करें

जैसे ही किसी अदालत में चल रहे किसी मुकदमे में किसी व्यक्ति के पक्ष में निर्णय या आदेश होता है तो उसे यह आशंका होने लगती है कि कहीं ऐसा न हो कि विपक्षी उस निर्णय या आदेश के विरुद्ध ऊँची अदालत में अपील, निगरानी याचिका या अन्य कोई कार्यवाही संस्थित कर, कोई आदेश प्राप्त न कर ले, जिस से उसे कोई परेशानी हो। किसी व्यक्ति को इस तरह की भी आशंका हो सकती है कि किसी मामले को ले कर उस के विरुद्ध किसी अदालत में कोई वाद या कार्यवाही संस्थित कर अथवा पहले से संस्थित किसी वाद या कार्यवाही में कोईआवेदन प्रस्तुत कर कोई आदेश प्राप्त किया जा सकता हो। ऐसी अवस्था में उस व्यक्ति के पास एक मार्ग तो यह है कि आशंका में जीते हुए उसे सच या मिथ्या होने की प्रतीक्षा करे या फिर अदालत में खुद व्यवहार प्रक्रिया संहिता की धारा 148-अ के अंतर्गत आवेदन  प्रस्तुत करे। इस आवेदन को केवियट (caveat) कहा जाता है। हिन्दी और अन्य भाषा-भाषी भी इसे केवियट ही कहते हैं। हालांकि इसे विरोध-पत्र कहा जा सकता है। इस आवेदन को हर वह व्यक्ति प्रस्तुत कर सकता है जो कि उस संस्थित की जाने वाली अथवा संस्थित मामले में उपस्थित होने का अधिकार रखने का दावा कर सकता है।
केवियट प्रस्तुत होने पर जिस व्यक्ति के द्वारा उक्त आवेदन प्रस्तुत किए जाने की केवियटकर्ता को आशंका है उसे रजिस्टर्ड डाक से केवियट की सूचना भेजी जाती है। यदि किसी व्यक्ति के द्वारा केवियट में वर्णित प्रकार की कोई कार्यवाही संस्थित की जाती है तो अदालत ऐसी कार्यवाही संस्थित होने की सूचना केवियटकर्ता को देती है। इसी तरह केवियट की सूचना हो जाने पर कार्यवाही संस्थित करने वाले पक्ष को कार्यवाही के कागजों और दस्तावेजों की प्रतिलिपियाँ केवियटकर्ता को देनी होती हैं। केवियट का असर उसे प्रस्तुत करने के 90 तक रहता है। इस के पश्चात केवियट को केवियटकर्ता को सूचना देने के लिए निश्चित रिकॉर्ड से हटा लिया जाता है।
स तरह जिन दीवानी मामलों में यह आशंका हो कि कोई भी व्यक्ति अदालत से एक तरफा सुनवाई करवा कर अपने पक्ष में आदेश प्राप्त कर सकता है वहाँ केवियट उत्तम उपाय है। केवियट संस्थित हो जाने पर न्यायालय केवियटकर्ता को सुनवाई का अवसर दे कर ही उस मामले में कोई आदेश पारित कर सकता है। 
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