DwonloadDownload Point responsive WP Theme for FREE!

औरत अगर गलती करे तो क्या कोई कानून नहीं है?

father & married daughter1समस्या-

शिवकुमार ने बहराइच, उत्तरप्रदेश से समस्या भेजी है कि-

मेरी शादी 2010 में हुई थी, तभी से मेरी बीवी अलग रहना चाहती थी पर मैं घर में अकेला कमाने वाला और सारा परिवार मेरे उपर निर्भर है। मेरे एक भाई और दो बहन हैं जो मुझ से छोटे हैं, मेरी माँ पिता जी और दादाजी सब मुझ पर निर्भर हैं। शादी के पहले महीने से घर मे क्लेश होता रहा और मेरे ससुराल वालों की नज़र मेरी प्रॉपर्टी पर थी। काफी बार झगडे हुए पर मैं ने संभाला। पर अक्सर वो मायके में ही रहना पसंद करती है और अपने माँ बाप की ही सुनती है। नतीजा यह हुआ कि मामला पुलिस तक पहुँच गया है और पिछले 4 महीनों से वह अपने मायके में रह रही है। परेशानी यह है कि मैंने उसे कई बार बुलाया पर वो आने से मना कर रही है और दहेज का केस करने को कह रही है। सब लोगों ने कहा था अगर एक बच्चा हो जायगा तो ये ठीक हो जाएगी। आज मेरे दो साल का एक सुन्दर बेटा है और वह भी सब कुछ झेल रहा है यहाँ तक कि झगड़े में मेरी बीवी ने काफी बड़ी ईंट मारी जो मेरे दो साल के बेटे के माथे में लगी। फिर भी उसे कोई गम नहीं है वह कहती कि सब आप की गलती है। अब वह अपने माँ और बाप के साथ रह रही है। मेरे अभी कुछ दिन पहले चोट लग गयी थी जब मैंने उसे बताया तो कहती कि मुझे कोई मतलब नहीं है। मैं अपना हिस्सा ले लूंगी। मैं उसे तलाक देकर अपने बेटे को पाना चाहता हूँ। क्यों कि मेरा बेटा अपनी माँ कि जगह मुझे और मेरी माँ को कि अपनी माँ कहता है। जब मेरा बेटा तीन महीने का था तब से मेरी माँ ने उसे ऊपर का दूध पिलाया और उसे संभाला। पर मेरी बीवी को तो उसकी लेट्रिन साफ़ करने में भी घिन आती थी और वो दो दो महीने तक बच्चे को छोड़ कर मायके में रहती थी। उस ने मेरे खिलाफ लगभग 6 महीने पहले वीमेन सेल में भी केस किया था। अब आप मुझे सलाह दीजिये कि किस तरह से मैं अपने बच्चे को पा सकता हूँ? क्या औरत अगर गलती करे तो कोई कानून नहीं है? सब कुछ आदमियों के लिए ही है।

समाधान-

प के परिवार में आप के सिवा आप के माताजी, पिताजी, दादाजी, भाई और दो बहनें तथा आप की पत्नी कुल आठ सदस्य हैं। आप की पत्नी को सारे घर के काम के साथ इन सब की सुनना, उन के आदेशों और इच्छाओं की पालना करना, फिर बच्चे को संभालने का काम करना है।आप यह कह सकते हैं कि सब मदद करते हैं, लेकिन फिर भी हमारे भारतीय परिवारों में इन सारे कामों का दायित्व एक बहू का ही समझा जाता है। लेकिन निर्णय करने की स्वतंत्रता सब से कम या नहीं के बराबर होती है। इस के अलावा उसे निजता (प्राइवेसी) लगभग बिलकुल नहीं मिलती। यहाँ तक कि पति के साथ बात करने का मौका रात को सोते समय मिलता है, तब तक वह इतना थक चुकी होती है कि उस स्थिति में नहीं होती। सूत्रों में बात करती है और अपनी बात तक ठीक से पति को बता तक नहीं सकती। यह मुख्य कारण है कि विवाह के बाद महीने भर बाद ही झगड़े आरंभ हो जाते हैं। ऐसे परिवारों की अधिकांश बहुएँ अलग रहने की सोचती हैं जहाँ वे हों उस का पति हो और बच्चा हो। वह केवल पति और बच्चे पर ध्यान दे। जब बहू मायके जाती है तो अपने ऊपर काम के बोझ, सुनने की बातें और भी बहुत कुछ बढ़ा चढ़ा कर बताती हैं जिस से माता पिता ध्यान दें और उस के साथ खड़े हों। फिर आप के जैसे विवाद सामने आते हैं। आप के जैसे परिवारों में इस का इलाज यही है कि परिवार को जनतांत्रिक तरीके से चलाया जाए।

मारे एक मित्र का परिवार भी इतना ही बड़ा है। यहाँ तक कि परिवार के दो सदस्य एक साथ व्यवसाय करते हैं जब कि एक सदस्य नौकरी करता है। लेकिन वे हर साल परिवार के 14 वर्ष से अधिक की उम्र के सदस्यों की एक बैठक करते हैं जिस में वे ये तय करते हैं कि कौन कौन क्या क्या काम करेगा जिस से सब को आवश्यकता के अनुसार आराम, प्राइवेसी मिल जाए। वे यह भी तय करते हैं कि परिवार की आमदनी कितनी है, उस में खर्च कैसे चलाना है, कैसे बचत करनी है। बचत में से नकद कितना कहाँ रखना है और कितना परिवार में नई वस्तुओं या स्थाई संपत्ति के लिए व्यय करना है। इस बैठक में बहुओं और बच्चों की जरूरतें और इच्छाएँ जानी जाती हैं, और उन से सभी बातों पर राय मांगी जाती है। उस के बाद लगभग सर्वसम्मति से तय होता है कि साल भर परिवार कैसे चलेगा। वर्ष के बीच आवश्यकता होने पर पूरा परिवार फिर से बैठ सकता है और महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर विचार कर सकता है।

प के परिवार में भी ऐसी कोई पद्धति होती जहाँ सब अपनी बात रखते, नई बहू को भी परिवार के एक सदस्य के रूप में उस बैठक में समान महत्ता प्रदान की जाती तो शायद यह समस्या ही खड़ी नहीं होती। पर आप की पत्नी को लगता है कि परिवार में उस की महत्ता कुछ नहीं है। उस की इच्छा का कोई महत्व नहीं है। उस का काम सिर्फ लोगों के आदेशों, इच्छाओं, अपेक्षाओं की पालना करना मात्र है। सब की सारी अपेक्षाएँ उस से पूरी हो नहीं सकतीं। यही विवाद का मूल विषय है। आप की पत्नी को अपनी इस समस्या का कोई हल नहीं सूझ पड़ता है सिवा इस के कि आप, वह और बच्चा अलग रहने लगे। उस ने हल आप के सामने प्रस्तुत भी किया। आप को यह हल पसन्द नहीं। दूसरे किसी हल का प्रस्ताव आपने किया नहीं। तब उस ने अपने मायके में गुहार लगाई और मायके वालों की शरण में जा कर उस ने अपनी बात के लिए लड़ाई छेड़ दी। अब वह सारे हथियारों को आजमाने को तैयार है।

विवाह विच्छेद आप की समस्या का हल नहीं है। क्या करेंगे ऐसा कर के। बच्चा या तो आप से दूर हो जाएगा या उस की माँ से। दूसरा विवाह करेंगे, फिर एक स्त्री को पत्नी बनाएंगे। उस से भी वैसी ही अपेक्षाएँ परिवार के सब लोग रखेंगे। वह भी उन्हें पूरी नहीं कर पाएगी। फिर से एक नई जंग आप के सामने खड़ी होगी। आप की समस्या का हल है कि आप खुद समस्या के मूल को समझें फिर अपने परिवार को समझाएँ। फिर आप के मायके वालों को और सब से अन्त में अपनी पत्नी को। हमारा यह सुझाव आसान नहीं है। किसी परिवार में इस तरह का जनतंत्र पैदा करना किसी क्रांति से कम नहीं है।

प कहते हैं कि औरत की गलती के लिए कानून नहीं है। है, न वही कानून है कि यदि आप का पड़ौसी या भाई आप पर ईंट फैंकने के लिए जो कानून है वही पत्नी के लिए भी है। लेकिन एक स्त्री जो अपना परिवार छोड़ कर दूसरे परिवार को अपनाती है उसे उस परिवार में शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना मिलती है तो उस के लिए धारा 498ए आईपीसी है, उस में पति और उस के सम्बंधियों को गिरफ्तार भी किया जा सकता है और सजा भी हो सकती है। आप कहेंगे कि पुरुष के लिए भी समान कानून होना चाहिए, लेकिन मैं आप से पूछूंगा कि हमारे समाज में कितने पुरुष अपने ससुराल में बहू बन कर जाते हैं। वे जाते भी हैं तो जमाई बन कर जाते हैं। उन के लिए ऐसे कानून की जरूरत नहीं जब कि स्त्रियों के लिए वास्तव में है।

Print Friendly, PDF & Email
4 Comments