छूटे इंटेन्स डिबेट से, बाबा चमत्कारी की कृपा
|समुद्र मंथन के बाद अमृत कुंभ को दैत्य ले भागे। तब विष्णु ने मोहिनी ऱूप धरा और वे दैत्यों से अमृत को देवताओं के खेमें में ले आए। यह कथा कभी खत्म नहीं होती। दैत्य हैं कि उन्हें अमृत दिखाई दे जाए तुरंत उस पर कब्जा कर लेते हैं।
हमारा अमृत कुंभ, ‘तीसरा खंबा की टिप्पणी व्यवस्था’ भी अपह्रत हो गई थी। चक्कर में तो हम ही आए थे। मोहनी ऱूप के कि ब्लागर की टिप्पणी व्यवस्था को छोड़ इंटेन्स डिबेट में जा उलझे थे। जब उस की परेशानियाँ देखीं तो उसे छोड़ने का निर्णय किया। लेकिन उसे अनइंस्टाल करने में सफल नहीं हो सके। उन के द्वारा अनइंन्सटाल के लिए दिया गया हटमल ब्लॉगर पचा नहीं पा रहा था। निम्न एरर दे रहा था……
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XML error message: The reference to entity "action" must end with the ‘;’ delimiter.इंटेन्स डिबेट को शिकायत दर्ज कराई तो छत्तीस घंटे बाद जवाब आया कि टेम्पलेट मेल करो। हमने उन्हें मेल किया। बाद में पता लगा कि हमारे जैसे अनेक ब्लॉगर भटक रहे हैं इंटेन्स डिबेट से वापस लौटने को। मुझे वह गड़रिया याद आया जो बकरियाँ चराते-चराते कहाँ का कहाँ निकल गया था। जब किसी ने उसे तलाश लिया तो पता लगा वह पाकिस्तान में है। बेचारा बहुत दिनों तक भारत आने का रास्ता तलाशता रहा, बकरियों समेत।
हमने उन्हें तुरंत कहा-तुम यूजर्स को उल्लू बना रहे हो। समस्या ठीक क्यों नहीं कर रहे। हम अदालत जाएँगे।
जवाब बड़ी नर्मी से आया- हम ने अनइंस्टॉल की समस्या अनेक की हल की है लेकिन कोई वापस आ कर बताता नहीं इस लिए समस्याग्रस्त ही यहाँ नजर आ रहे हैं। आप दुबारा टेम्पलेट मेल कीजिए। हम समस्या हल करेंगे, और अगर कोर्ट ही जाना चाहते हैं तो चले जाएँ हम ने बहुत कोर्ट-कचहरी की है एक और कर लेंगे।
हम ने दुबारा टेम्प्लेट उन को भेजी। धन्यवाद आया, हल नहीं आया।
हम इधर अपने तईं जुटे थे दुरूस्ती में। कई टेम्पलेटें बदलीं, सभी जायज, गैर जायज तरीकों से। मगर इंटेन्स डिबेट था कि सत्यानाशी की तरह घुसा बैठा जला दो, गिरा दो, दबा दो। लेकिन हर बार हमारे खीजते चेहरे को देख कर मुस्कुराता आ फिर हाजिर हो जाता। बस यह न हुआ कि एक चिट्ठाकार ने कर्नाटक के किसान की तरह आत्महत्या नहीं की। रचना जी ने मदद करने का प्रस्ताव किया। मगर हम खुद ही दुरूस्ती पर तुले थे। उन से सलाह यह मिली कि इंटेन्स की सदस्यता त्याग दो।
हमें लगा कि नई टिप्पणी व्यवस्था इन्सटॉल करते वक्त टेम्पलेट के साथ कोई एक्शन आदेश भेजा गया था जो हमारे ब्लॉगर खाते में दर्ज हो गया। उस का हल उस आदेश को भेजने वाला ही कर सकता है, अन्य कोई नहीं। आखिर ब्लागिंग के साईं बाबा रवि रतलामी जी के दरबार में हाजरी बजाई गई। उन्हें परेशानी भेजी, सलाह मिली कि हल तो इंटेन्स ही निकालेगा। हम ने मेम्बरशिप बरकरार रखी, और बाबा को इटेंस द्वारा सप्लाइड टेम्प्लेट भेजी।
मुझे नहीं पता उन का कितना भेजा फ्राई हुआ? पर हमें तो चैन नहीं था। खुद भी जुटे पड़े थे। सुबह बेटा आया तो उसे प्रोजेक्ट समझाया गया। उस ने जाहिर किया बन्दर की जुएँ तलाशनी पड़ेंगी। इतनी देर में जी-मेल ने बताया रतलामी बाबा का संदेश है। हमने तुरंत संदेश देखा। टेम्पलेट सुधार कर भेजी थी ब्लॉगर पर चढ़ाने को। हमने तुरंत कॉपी कर चढ़ा दी।
चमत्कार हो गया। हमारा तीसरा खंबा ब्लॉगर की टिप्पणी व्यवस्था समेत वापस आ चुका था। फटाफट बाबा को विजय का संदेश भेजा। शाम को रसगुल्ले लाए गए, खाए गए शेष बचे रेफ्रिजरेटर के कब्जे में सौंप दिए गए। (जल्दी करें, आप आ सकते है, उस से पहले कि इस ब्राह्मण परिवार की मिष्ठान्न प्रियता उसे निपटा न दे।
जय! चमत्कारी बाबा, रतलामी की!
जय! हो बाबा, रवि रतलामी की!
नोटः बाबा की भेजी ओरीजनल टेम्प्लेट "ब-सबूत चमत्कार" हमारे जी-मेल खाते में सुरक्षित है। कोई चाहे तो दर्शन कर सकता है। ऑन लाइन दर्शन सिर्फ बाबा की इजाजत पर ही कराए जा सकते हैं।
द्विवेदीजी,
नमस्कार।
ज्ञानदत्तजी के लेखों पर आपके नियमित टिप्पणियों से आपके नाम से परिचित हुआ हूँ। बहुत दिनों से सोच रहा था के आपके लेख भी पढ़ना शुरू करूँ। आज पहली बार कुछ समय निकाल सका और आपके हाल ही में लिखे हुए लेखों को पढ़ रहा हूँ।
यह जानकर खुशी हुई कि आप वकील हैं। इतने सालों से किसी वकील से मित्रता का अवसर नहीं मिला। आपके लेख विशेष रुचि से पढ़ूँगा क्योंकि कानून एक ऐसा विषय है, हम इंजिनियरों ले लिए, जिससे हम घबराते हैं और उससे दूर ही रहना चाहते हैं।
मज़ाक – मज़ाक में लोग यह भी कह्ते हैं कि जो अपने जीवन में अदालतों और अस्पतालों से दूर रहता है उसका जीवन सार्थक, सुखमय और सफ़ल होता है। धन्य हैं वे लोग जिन्हें किसी डाक्टर या वकील की सेवाओं की जरूरत ही नहीं पढ़ती।
आपके लेखों से यह आशा रखता हूँ कि कानूनी मामलों पर कुछ मौलिक ज्ञान प्राप्त कर सकूँगा। कृपया मुझसे कोई गंभीर, और सटीक टिप्पणी की आशा न रखें। यदि कभी कुछ कह देता हूँ तो उसे एक सामान्य नागरिक की भावनाएं ही सम्झें और ज्यादा अहमियत न दें।
जमानती की जिम्मेदारियों के विषय पर जो आपने लिखा, उसे ध्यान से पढ़ा और मेरी पहली टिप्पणी भेज रहा हूँ।
पुरानी यादें ताज़ा हो गईं।
चौबीस साल पहले बेंगळूरु में अपना घर बनाते समय, मैंने HDFC से एक लाख रुपये का कर्ज लेना चाहा। मैंने उनकी सभी आवश्यकताएं पूरी की थी पर आखिर में वे मुझसे guarantor की माँग की और इसके बिना कर्ज मंज़ूर नहीं हो सकता था। मैं हैरान रह गया। घर का निर्माण शुरू हो गया था और बीच में रुका पढ़ा था। ठेकेदार आगे का अडवान्स माँग रहा था और उसके बिना काम जारी रखने के लिए तैयार नहीं था। अब किसके पास जाऊँ? दोस्तों पर बोझ नहीं बनना चाहता था। मैं सोचने लगा अगर मेरा कोई दोस्त कर्ज़ के मामले में मुझे surety बनाना चाहता है और मेरे पास आता है तो मुझे कैसा लगेगा? ठीक यही हाल उसका भी होगा। किस मुँह से उसके पास जाकर guarantor बनने के लिए कहूँ जब मैं स्वयं किसी के लिए भी guarantor बनना पसन्द नहीं करूँगा। अच्छी दोस्ती भी बिगड़ने का डर था।
मेरे पिताजी उस समय मुम्बई में रहते थे और सेवानिवृत थे। उनको SOS भेजकर सलाह माँगी। पिताजी तो surety बनने के लिए तैयार हो गए और वे पूरी तरह योग्य भी थे लेकिन HDFC वाले नहीं माने। उनके नियमों के अनुसार, कोई निकट के रिश्तेदार surety नहीं बन सकता था।
कुछ दिन परेशान रहा। फ़िर एक दिन अचानक पता चला कि मेरा एक और दोस्त ने भी GIC से housing loan के लिए अर्जी दी है और वह भी इसी समस्या से परेशान है।
बस हम साथ हो गए। एक दूसरे के surety हो गए। कंपनियाँ अलग थीं (HDFC और GIC)। उन्हें शायद पता भी नहीं चला होगा।
क्या हमारा यह इन्तजाम कानून की नज़रों में वैध है?
क्या यदि HDFC या GIC को इस बात का पता चलता तो वे कर्ज देने से इनकार करते?
शुभकामनाएं
गोपालकृष्ण विश्वनाथ
जे पी नगर, बेंगळूरु
विजय प्राप्त करने के लिए मेरी और से बधाई . अब तक तो फ्रिज के रसगुल्ले भी ख़तम हो गए होंगे क्योकि आपका ब्लॉग काफी विलंब से खोलकर पढ़ रहा हूँ .
chaliye baba ratlaamee jee ke baare mein jaankar achha laga, aur haan meri mithaaee to alag se rakhiyegaa, mujhe bhee aapko tipiyaane mein khasee dikkat aayee thee.
aur haan mithai udhaar rahi 🙂
जय! हो बाबा, रवि रतलामी की!
बाबा रतलामी में बडे बडे गुण हैं, आप खुशनसीब हैं, कि उनका आशीर्वाद आपको मिला, बधाई।
दादा,
मैं स्वयं कई रातों तक परेशान रहा,
अपनी सीमित जानकारी के अनुसार कई पैंतरें फेंके ,
सहसा सब कुछ किसी अदृश्य हेराफेरी से ठीक हो गया ।
कैसे, मैं नहीं जानता । आप कुछ अधिक ही हलाकान किये गये ।
teer chlane kii itni practice kar lii haen ravi ji nae ki andhere kyaa ujale kyaa haen sab inkii dhun kae deewane
*रवि रतलामी-
पृथ्वीराज की तो आँखें ही नहीं थी, फिर भी तीर निशाने पर ही लगता था।
आह वाह, और इधर बाबा चने के झाड़ पर चढ़ गए हैं और वहीं उनका खाना पीना चल रहा है…
मेरे विचार में कुछ ज्यादा जयकारा नहीं हो गया?
वैसे, सचमुच में तो मैंने भी अंधेरे में तीर चलाया था! 🙂
वाह, वेताल से पिण्ड छुड़ाने वाले अनेक नहीं होते! आप का ब्लॉग अब कालजयी होगा। पक्का।
हम भी बाबा रवि रतलामी जी के भक्त हैं. हर संकट मे वो ही उबारते हैं. हम तो सोच रहे थे कि वहाँ आपने सबसे पहले हाजिरी लगाई होगी. खैर, बधाई. जब आयेंगे तभी मिठाई मंगाईयेगा.
जय! हो बाबा, रवि रतलामी की!