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बंटवारे का वाद संस्थित करना उचित है।

समस्या-

गुड्डू कुमार ने रामगढ़, झारखंड से पूछा है-

मेरी दादी के नाम पर एक जमीन है जो मेरी दादी के पिता ने उन्हें सन 1982 मैं दी थी। मेरी दादी का देहांत दिसंबर 2021 में हो गया है। मेरी दादी के 3 पुत्र तथा 2 पुत्री हैं। मेरी दादी के मझले पुत्र ने धोखे से यह जमीन2014 में मेरी दादी से अपनी वाइफ के नाम लिखवा ली है और उस पर घर भी बना लिया, यह बात हमें दादी के मरने समय पता चली। बाकी दोनों पुत्र को कुछ नहीं मिला। अब हम बँटवारे के लिए कोर्ट में केस दायर करने का सोच रहे हैं।

समाधान-

आपने बताया कि उक्त जमीन आपकी दादी से उनके मझले पुत्र ने अपनी पत्नी के नाम लिखवा ली है। यह नहीं बताया कि यह किस दस्तावेज के आधार पर किया है। आम तौर पर ऐसी चीजें वसीयत के माध्यम से होती हैं। कभी कभी दान-पत्र पंजीकृत करवा कर भी होती है। यदि आप बताते कि यह कैसे हुआ है तो हमें आपको स्पष्ट राय देना आसान होता। फिर भी यदि आप सोचते हैं कि ऐसा दस्तावेज जिससे वह सम्पत्ति दादी के मंझले पुत्र के नाम होना कहा जाता है वह दवाब या किसी अनुचित प्रभाव के माध्यम से निष्पादित कराया गया है या वह अन्य किसी कारण से कानूनी रूप से निष्प्रभावी है तो अवश्य अदालत की शरण लेनी चाहिए।

अब आप बँटवारे का मुकदमा करने की सोच रहे हैं। आप की यह सोच बिलकुल सही है। किसी भी एक उत्तराधिकारी को बँटवारे का दीवानी वाद संस्थित करना चाहिए कि संपत्ति का उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार निर्धारित किया जा कर बंटवारा किया जाए।

इस वाद से यह होगा कि मंझला पुत्र और उसकी पत्नी को साबित करना होगा कि किस दस्तावेज के आधार पर वे इस संपत्ति को अपना बताते हैं। यदि वह कोई पंजीकृत दस्तावेज न हुआ तो मंझले पुत्र को साबित करना पड़ेगा कि संपत्ति का हस्तान्तरण विधिक है। यदि वह कोई पंजीकृत दस्तावेज हुआ तो बँटवारे का दावा करने वाले को साबित करना पड़ेगा कि वह कैसे गलत और शून्य है। बेहतर है कि अच्छा सिविल वकील तलाश करें और उसके माध्यम से बंटवारे का दावा प्रस्तुत कराएँ।

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