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जन्म से हिन्दू व मुस्लिम के मध्य विवाह कैसे साबित किया जा सकेगा?

समस्या-

मैं एक मुस्लिम लड़की के साथ विगत नौ वर्ष से रह रहा हूँ।  हम दोनों बिना विवाह किए सहमति से साथ साथ रह रहे थे।  जिस के कारण राशन कार्ड, और अन्य दस्तावेजों (पासपोर्ट, जीवन बीमा पॉलिसी, संतान के जन्म प्रमाण पत्र, उस के एम. कॉम. की अंक तालिका) में उस का नाम मेरी पत्नी के रूप में अंकित है।  अब मेरे एवं मेरे माता पिता पर उस ने धारा 498-ए, 294, 323, 34 भा.दं.संहिता के अन्तर्गत मिथ्या प्रकरण दर्ज करवाया और हमें 12 दिन तक जेल में रहना पड़ा।  उस ने धारा 125 दं.प्र.संहिता के अन्तर्गत भरण पोषण के लिए भी मुझ पर प्रकरण न्यायालय में प्रस्तुत किया है।  सभी प्रकरण न्यायालय में लंबित हैं।  पुलिस ने दबाव दे कर मेरा बयान लिख लिया कि वह मेरी पत्नी है।  हमारे विवाह का कोई अन्य प्रमाण नहीं है।  क्या पुलिस द्वारा दबाव में दर्ज किए गए बयान को आधार मान कर न्यायालय द्वारा धारा 125 दं.प्र.संहिता के अन्तर्गत अन्तरिम आदेश दिया जा सकता है?

-अनुतोष, भिलाई, छत्तीसगढ़

समाधान-

स्त्री पुरुष के बीच पति-पत्नी का संबंध विवाह से उत्पन्न होता है तथा विवाह प्राकृतिक नहीं अपितु एक सामाजिक और विधिक संस्था है।  आप एक हिन्दू हैं और वह स्त्री जिस ने आप के विरुद्ध स्वयं को आप की पत्नी बताते हुए मुकदमे किए हैं एक मुस्लिम है।  आप दोनों के मध्य वैवाहिक संबंध या तो विशेष विवाह अधिनियम के अन्तर्गत विवाह के सम्पन्न होने और उस का पंजीकरण होने से स्थापित हो सकता है या फिर आप के इस्लाम ग्रहण करने पर मुस्लिम विधि के अनुसार निक़ाह के माध्य़म से हो सकता है अथवा उस महिला द्वारा मुस्लिम धर्म त्याग कर हिन्दू धर्म की दीक्षा लेने पर सप्तपदी के माध्यम से हो सकता है।  उस महिला को स्वयं को आप की पत्नी साबित करने के लिए यह प्रमाणित करना होगा कि इन तीन विधियों में से किसी एक के माध्यम से आप के साथ उस का विवाह संपन्न हुआ था।  जो तथ्य आप ने अपने प्रश्न में अंकित किए हैं उन से ऐसा प्रतीत होता है कि वह स्वयं को आप की पत्नी सिद्ध नहीं कर सकती।

धारा-125 दं.प्र.संहिता में पत्नी को भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार है लेकिन उस का पुरुष के साथ वैध रूप से विवाहित होना भी आवश्यक है। इस धारा में पत्नी शब्द को आगे व्याख्यायित करते हुए उस में ऐसी पत्नी को सम्मिलित किया गया है जिस का विवाह पति के साथ विच्छेद हो गया है और जिस ने पुनः विवाह नहीं किया है।  इस से भी स्पष्ट है कि केवल विधिक रूप से विवाहित स्त्री ही धारा-125 के अन्तर्गत भरण पोषण प्राप्त करने की अधिकारी है।  इस धारा के अन्तर्गत किसी भी ऐसी स्त्री को अपने उस पुरुष साथी से भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार नहीं है जो उस के साथ स्वैच्छा से लिव-इन-संबंध में रही है और जिस संबंध से एक या एकाधिक संतानें उत्पन्न हुई हैं। इस तरह वह महिला आप से भरण पोषण प्राप्त करने की अधिकारी नहीं है।

लेकिन आप के प्रश्न से पता लगता है कि आप दोनों के लिव-इन-संबंध से एक या एकाधिक संतानें हैं। ऐसी किसी भी संतान के लिए आप पिता हैं और वह स्त्री माता है। ऐसी वैध या अवैध अवयस्क संतान को जो कि स्वयं का भरण पोषण करने में असमर्थ है अपने पिता से भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार धारा-125 दं.प्र.संहिता के अंतर्गत है।  आप के साथ लिव-इन-संबंध से उस स्त्री द्वारा जन्म दी गई संतान को भी आप से भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त है। अवयस्क अपने संरक्षक के माध्यम से ऐसा आवेदन कर सकता है।  यदि उस स्त्री ने जो आवेदन धारा-125 दं.प्र.संहिता के अंतर्गत आप के विरुद्ध प्रस्तुत किया है उस में उस संतान के लिए भी भरण-पोषण की मांग की गई है तो न्यायालय द्वारा उस संतान के लिए भरण पोषण राशि दिलाया जाना  निश्चित है।  इस के लिए आप को तैयार रहना चाहिए।

प के प्रश्न का सार है कि पुलिस द्वारा दबाव में लिए गए बयान के आधार पर क्या वह स्त्री पत्नी सिद्ध की जा सकती है।  तो ऐसा बहुत सारे तथ्यों और उस प्रकरण में आई मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्य पर निर्भर करता है।   यदि आप ने उक्त मामले में यह कहा है कि आप का यह बयान दबाव में लिया गया था तो फिर आप पर यह साबित करने का दायित्व आता है कि पुलिस ने आप पर दबाव डाला था।   यदि आप यह साबित कर पाए कि पुलिस ने ऐसा बयान देने के समय दबाव डाला था या आप पुलिस हिरासत में थे तो ही आप के उस बयान को साक्ष्य के बतौर प्रयोग नहीं किया जा सकता।  लेकिन पुलिस ने पहले बयान दर्ज किया होगा और बयान दर्ज करने के बाद आप की गिरफ्तारी दिखाई होगी।  आप के इस का प्रश्न का समुचित उत्तर समस्त साक्ष्य का अध्ययन किए बिना किया जाना संभव नहीं है।  पर मेरा मानना है कि यदि प्राथमिक तौर पर यह साक्षय रिकार्ड पर हो कि वह स्त्री जन्म से मुस्लिम है और आप जन्म से हिन्दू हैं तो फिर जब तक दोनों में से किसी एक के धर्म परिवर्तन या फिर विशेष विवाह अधिनियम में विवाह का पंजीकरण साबित किए बिना आप दोनों को पति-पत्नी साबित किया जाना संभव नहीं है।

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