न्याय व्यवस्था से टूटता मोह : सरकारें जल्दी चेत जाएँ ___
|जिस बात का मुझे कुछ बरसों से अंदेशा था वह सामने आ ही गई। आज अदालत ब्लाग पर खबर है कि चंडी गढ़ में चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन पर मुकदमे की फाइल फाड़कर फेंक दी।
यह कोई अनहोनी घटना नहीं है। जब देश के न्यायालयों में इंसाफ की चाह में आदमी अपनी अर्जी लगाए और उस की पूरी उमर ही अदालतों के चक्कर काटते काटते गुजरने लगे तो इस न्याय व्यवस्था ऊब कर फाइल फैंकने के सिवा और क्या चारा उस के पास शेष है।
एक और तो भारतीय अदालतों में किए जाने वाले निर्णय जिन से आम लोगों को न्याय मिलता है माध्यमों द्वारा प्रचारित किये जाते हैं। जिन से न्यायपालिका की साख बनती है। वैसे भी चर्चित मामलों में हुए निर्णयों के कारण भारतीय न्यायपालिका को विश्व में श्रेष्ठ माना जाता है। लेकिन जब एक नागरिक न्याय के लिए अदालत की देहरी चढ़ कर न्याय की इस दुनिया में प्रवेश करता है तो उस के सारे सपने एक एक कर टूटने लगते हैं। अनेक वर्षों तक न्याय की तलाश में कचहरी में बिताने पर जब उसे न्याय की रोशनी की किरण दूर दूर तक भी नजर नहीं आती और कचहरी की चारदिवारी से उस का बाहर निकलना दूभर हो जाता है।
मैं अनेक बार तीसरा खंबा पर दोहरा चुका हूँ कि न्यायपालिका अदालतों की कमी से बोझिल है। हमें अदालतों की संख्या बढ़ानी पड़ेगी। कुछ दिनों पहले खुद भारत के मुख्य न्यायाधीश कह चुके हैं कि उन्हें देश में जिला अदालत और उस से नीचे के स्तर की 10000 और अदालतों की तुरंत आवश्यकता है। इस स्तर पर अदालतें खोलने और उन के लिए संसाधन उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है। मुख्य न्यायाधीश के बार बार कहने और उन के बयान माध्यमों पर सार्वजनिक होने के बावजूद स्थिति यह है कि एक भी राज्य सरकार के मुख्य मंत्री का यह बयान नहीं आया है कि वे इस दिशा में कुछ कदम उठाएँगे। शायद मुख्य मंत्रियों को लगता है कि अदालतों से संबंधित नाकामयाबी के विरुद्ध जनता का जो रोष है वह अदालतों और न्यायाधीशों तक ही रुक जाएगा और उन तक नहीं पहुँचेगा। लेकिन यह उन की खुशफहमी अधिक दिनों तक कायम नहीं रह सकती। जिस तरीके से माध्यम जनशिक्षण का काम करते हैं उस से लगता है कि यह रोष अब सरकार और राजनैतिक दलों तक पहुँचने में अब अधिक देर नहीं है।
सब से अधिक निराशा वकीलों के समुदाय की इस मामले में उदासीनता को देख कर होती है। मुकदमों का जल्द निपटारा न होने का सीधा असर वकीलों के व्यवसाय पर पड़ रहा है लेकिन वे इस बात को अभी तक समझने में अक्षम रहे हैं। यदि उन्हें यह समझ आने लगे कि उन का व्यवसाय अदालतों की कमी के कारण मंदा हुआ है और उस की चमक लगातार गायब होती जा रही है तो वकीलों का यह संगठित समूह अपने ही बलबूते को सरकारों को यह अहसास करा सकता है कि उन्हें न्यायपालिका को विस्तार देना ही होगा और संसाधन भी जुटाने होंगे। फिर भी वे अहसास कराने में समर्थ न हों तो वे जनशिक्षण के जरिए इस मामले को जनता तक ले जा सकते हैं। जनता यदि उठ खड़ी हो तो फिर राजनेताओं को न्यायपालिका की हालत को दुरुस्त करने के लिए बाध्य होना ही पड़ेगा।
^_^ Nice read. Thanks.
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आज के महाल में यह परम आवश्यक प्रतीत होता है
न्याय मिलने में वर्षों लग जाना स्वयम ही अन्याय है.
जनता को आदत है इंतजार की ।
लोगों की उम्र बीत जाती है और फैसले नहीं होती। इसपर कोई भी कुछ नहीं सोच रहा है।
यह एक थपड है हमारे कानून के रख्वालो पर, एक मजबुर ओर लाचार आदमी ओर क्या करेगां
धन्यवाद
फाड़ देना, फैंक देना, फूँक देना आम है,
रास्ते में न्याय के कितना ट्राफ़िक जाम है?
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शु्क्र है फाइल ही मारी और वह भी लगी नहीं… अजय देवगन व प्रकाश झा की जुगलबंदी में आई कुछ फिल्मी तरकीबें यदि जनता ने अपना lee तो…?
न्याय की प्रतीक्षा में, न्यायालय की देहलीज पर बैठे असंख्य दीन-हीन, असहाय, लुटे-नपटे लोगों की भावनाओं को व्यक्त किया इस एक आदमी ने। देखना यह है कि इस घटना का संज्ञान लेकर जज और वकील समुदाय तत्काल कुछ करता है या फिर ऐसी घटनाओं की बरसात प्रारम्भ होने की प्रतीक्षा में बैठा रहता है।
न्यायालय की अवमानना में नहीं बुक हुआ यह!
किसी वस्तु के होने से क्या लाभ जब तक वह हमें सहज उपलब्ध न हों। न्यायालय हैं परन्तु आम व्यक्ति को लगता है कि वहाँ का द्वार खटखटाना आ बैल मुझे मार वाली बात है। वह वहाँ जाने से परहेज करता है। यह बदल जाता तो संविधान में दिए हमारे अधिकारों का हम लाभ उठा पाते।
घुघूती बासूती
ये तो होना ही था ! एक बार एक ख़बर पढ़ी थी… किसी ने जज के सर पर पत्थर मारा था. यह कहते हुए ‘मेरी पुस्तैनी जमीन जितने की थी उसके केस में उससे ४ गुना जमीन बेंचकर मैंने पैसा लगाया है और अभी तक फैसला नहीं हुआ !’
शायद लोकतंत्र की सबसे बड़ी जरुरत है……
बहुत चिंता जनक स्थिति है.
रामराम.
इस तरह की स्थितियां वाकई चिंताजनक है |
वाकई, जब इतने लम्बे समय तक न्याय नहीं मिलेगा- तो इसी तरह रोष और क्षोब की स्थिति उत्पन्न होगी.