पहला तलाक दे कर बीवी को आप के घर आने के लिए कहें …
|परवेज आलम ने बहन्दर झारखंड से समस्या भेजी है कि-
मेरे निकाह को तीन वर्ष हो गए। मेरी बीवी कभी मेरे घर नहीं रहना चाहती। वह मायके में ही रह रही है। वह यह कहती है कि आप भी यहीं आ जाइए और मेरे साथ रहिए। हम वहाँ जाना नहीं चाहते।
समाधान-
आज कल स्त्री पुरुष की समानता का युग है। हर कोई परंपरा से यह चाहता है कि उस की पत्नी उस के साथ उस के या उस के माता पिता के घर में आ कर रहे। अब इस समानता के युग में कोई पत्नी यह मांग करती है कि पति उस के साथ आ कर रहे तो यह आज के युग में गलत नहीं कहा जा सकता।
फिर भी बीवी को जबरन अपने साथ नहीं रखा जा सकता। आप खुद उस के साथ उस के मायके में जाना नहीं चाहते। अब साथ रहे बिना तो आप का यह निकाह चल नहीं सकता। मुस्लिम विवाह में यह कायदा है कि पत्नी को पति के घर आ कर रहना चाहिए। इस कारण यदि वह नहीं आ रही है तो आप उसे कह दें कि आप उसे आप के साथ आ कर नहीं रहने के कारण पहला तलाक दे रहे हैं। यदि वह चाहती है कि वह आप के साथ रहे और निकाह को बरकरार रखे तो वह दो माह की अवधि में आप के साथ आ कर रहने लगे। यदि वह इन दो माह में आने से इन्कार करती है तो आप उसे अपनी ओर से एक मध्यस्थ का नाम सुझा रहे हैं और दूसरा तलाक दे रहे हैं। वह भी 15 दिनों में अपना मध्यस्थ नियुक्त कर दे। यदि उस ने अपनी ओर से मध्यस्थ नियुक्त नहीं किया या मध्यस्थ नियुक्त करने पर दोनों मध्यस्थों के प्रयासों से भी मामला अगले दो माह में न सुलझा तो आप उसे तीसरा तलाक दे सकते हैं।
हमारी राय में इस तरह कोई न कोई हल निकल आएगा, वर्ना इस समस्या का अन्तिम हल तो यही है कि आप अपनी बीवी को तीसरा तलाक दे कर बरी करें और अपने लिए नए लाइफ पार्टनर की तलाश करें। अब मेहर तो आप को देनी ही होगी क्यों कि वह तो उसी दिन चुकानी होती है जिस दिन निकाह होता है। मेहर के असावा धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत आप को बीवी के दूसरे निकाह तक का भरण पोषण का खर्च भी देना पड़ सकता है। भरण पोषण की राशि अदालत सारी परिस्थितियों को देख कर ही निश्चित करेगी।
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