प्रधानमंत्री ने कहा- न्यायप्रणाली का मुख्य ध्यान हर एक प्रतीक्षारत न्यायार्थी का प्रत्येक आँसू पोंछने पर केन्द्रित हो
|62वें स्वतंत्रता दिवस के अगले दिन प्रधानमंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह ने कहा कि न्यायप्रणाली का मुख्य ध्यान प्रतीक्षारत हर एक न्यायार्थी का प्रत्येक आँसू पोंछने पर केन्द्रित होना चाहिए। वह न्याय का उपभोक्ता है, आप का विचार विमर्श व्यवस्था के इस एक मात्र सबसे महत्वपूर्ण हितधारी पर केन्द्रित हो। उस की न्यायपूर्ण मांगों और आकांक्षाओं की पूर्ति के बिना शांति से विश्राम नहीं कर सकते। वे नई दिल्ली में मुख्य मंत्रियों और मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे।
प्रधानमंत्री ने अपने इस भाषण में भारतीय न्याय पालिका की आजादी, निष्पक्षता और विश्व में ख्याति के लिए प्रशंसा करते हुए कहा कि आज मुकदमों का अंबार हमारे जनतंत्र के लिए अभिशाप बना हुआ है। सब से बड़ी चुनौती इस अंबार को समाप्त करने की है। इस के लिए प्रक्रिया संबंधी सुधारों को जारी रखा जाना चाहिए। उन्हों ने देश में विभिन्न न्यायालयों में बड़ी संख्या में पद रिक्त पडे रहने पर चिंता व्यक्त करते हुए उच्चन्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से कहा कि वे इन पदों को बिना विलंब किये भरने के लिये कदम उठायें। विभिन्न उच्च न्यायालय में मौजूदा रिक्त पदों की संख्या काफी अधिक है और इनको भरने की आवश्यकता है। मैं उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से आग्रह करता हूं कि वे इन रिक्त पदों को जल्दी से जल्दी भरने के लिये कार्रवाई शुरु करें।
उन्हों ने यह भी कहा कि निचली अदालतों में रिक्त पडे पदों की संख्या उन अदालतों के कुल न्यायिक पदों का 20 से 25 प्रतिशत तक हैं। उन्होंने कहा कि भर्ती में विलंब के कारण देश में अभी न्यायाधीशों के करीब 3000 पद रिक्त पडे हैं. उन्होंने कहा कि अधीनस्थ अदालतों के सभी रिक्त पदों पर बिना समय गंवाये नियुक्ति की जानी चाहिए।
इसी अवसर पर बोलते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश के. जी. बालाकृष्णन ने न्यायाधीशों की कमी पर गंभीर चिंता जताई और कहा कि इससे लंबित मामलों में हो रही वृद्धि से निपटने में बाधा आ रही है। उन्होंने कहा कि कुछ ढांचागत बाधाएं हैं जो प्रतिभाशाली विधि स्नातकों को न्यायिक सेवा में शामिल होने के प्रति हतोत्साहित करती हैं। यही वजह है कि अधीनस्थ न्यायपालिका में न्यायाधीशों के 17 फीसदी से अधिक पद खाली पड़े हैं।
मुख्य न्यायधीश ने विधि आयोग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि विकसित देशों के हिसाब से प्रति न्यायाधीश और लोगों का अनुपात कायम करने के लिए न्यायिक व्यवस्था में कम से कम पांच गुना विस्तार करने की जरूरत है। बालाकृष्णन ने कहा कि हाल में अधीनस्थ स्तर पर काफी पद भरे गए हैं, लेकिन स्वीकृत 16 हजार 946 पदों में से दो हजार 783 पद रिक्त हैं। समयबद्ध तरीके से पदों को भरने के लिए राज्य सरकारों तथा हाईकोर्टो को समन्वय के साथ काम करने की जरूरत है।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा क
ि कि ग्राम न्यायालयों की स्थापना से न्याय की पहुंच और इसकी गुणवत्ता में महत्वपूर्ण परिवर्तन आएगा। प्रतिभाशाली वकीलों को इन ग्रामीण स्तर की अदालतों में न्यायिक अधिकारियों के पदों की ओर आकर्षित करने के लिए पहल किए जाने की जरूरत है।
ि कि ग्राम न्यायालयों की स्थापना से न्याय की पहुंच और इसकी गुणवत्ता में महत्वपूर्ण परिवर्तन आएगा। प्रतिभाशाली वकीलों को इन ग्रामीण स्तर की अदालतों में न्यायिक अधिकारियों के पदों की ओर आकर्षित करने के लिए पहल किए जाने की जरूरत है।
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8 Comments
काश, ऐसा हो।
( Treasurer-S. T. )
देखते है इस पर अमल कब किया जाता है ।
बिल्कुल सही लिखा है आपने! उम्मीद करते हैं की हमारा देश आगे चलकर कुछ तबदीली लाएगी! स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!
द्विवेदी जी..इसमें तो कोई शक नहीं की पिछले कुछ वर्षों में न्यायपालिका के रिक्त पदों को भरने में तेजी दिखाई गयी है..और नयी अदालतों के निर्माण में भी …मगर निचली अदालतों में सारी गड़बड़ ..और ज्यादा खराब स्थिति तो चैक वाले मुकदमों के कारण हुई है…और अभी तो देखते जाइए …आगे कितनी हालत खराब होती है ….
कथनी और करणी का फ़र्क ना हो तो काफ़ी आशायें हैं.
रामराम.
आशा करनी चाहिए कि रिक्त पदों को भरने की प्रधानमंत्री की ईमानदारी रंग लाएगी.
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आदरणीय द्विवेदी जी
सर्व प्रथम आप को स्वतंत्र भारत की 62 वीं वर्षगाँठ (63 वाँ स्वतंत्रता दिवस) पर हार्दिक शुभ कामनाएँ.
निश्चित तौर पर आपके आलेख को पढ़ कर ऐसा लगा की न्यायाधीशों की रिक्तता कहीं न कहीं जन सामान्य को न्याय दिलाने में विलंब का कारण है, जिसे प्रधान मंत्री जी को अविलंब त्वरित कार्यवाही करना चाहिए ताकि न्याय प्रक्रिया में बाधा न पहुँचे, वैसे भी देश में विचाराधीन मामले और विचाराधीन कैदियों की कमी नहीं है.
– विजय
Real brain power on dialspy. Thanks for that answer!