बुजुर्गों की इच्छाओँ का सम्मान के साथ भी विरोध किया जा सकता है …
|राहुल कुकर ने ब्यावर, राजस्थान से समस्या भेजी है कि-
मेरा मित्र अभी नगर में माता-पिता के साथ रहता है। उस के पिता की उम्र 80 वर्ष है। उसका एक भाई दूसरे नगर में अपने खुद के मकान में रहता है। उसके पिता सिटी के मकान को जो कि उनके नाम है बेचना चाहते हैं। और अपने पेतृक गाँव के मकान में जाकर रहना चाहते हैं। मगर मेरे मित्र की जॉब और उस के बच्चों की पढ़ाई भी सिटी में है। इस कारण वह और उसका भाई भी नहीं चाहता कि पिता मकान को बेचें। क्योंकि उन की उम्र अधिक है और गाँव में उन को सम्हालने वाला कोई नहीं है। मगर पिता जिद पे अड़े हैं कि मेरा मकान है। मैं इसे बेचूँ या कुछ भी करूँ मेरी मर्ज़ी। पिता उनसे मकान खाली करने के लिए कहते हैं। मगर मित्र मकान भी खाली नहीं करता और दलालों को मना कर देता है। इस कारण पिता ने उनको घर से निकालने के लिए अदालत में जाने की धमकी भी दे दी है। क्या पिता इस उम्र में परिवार की सहमति के बिना अपनी संपत्ति को बेच सकते हैं। और इस मकान का 30% से भी अधिक निर्माण मेरे मित्र ने कराया है। मगर उसका उसके पास कोई भी सबूत नहीं है। मित्र को क्या करना चाहिए?
समाधान-
आप के प्रश्न का उत्तर है कि कोई भी व्यक्ति उस के जीवन काल में उस की अपनी संपत्ति को जिसे चाहे विक्रय कर सकता है, दान कर सकता है या किसी भी प्रकार से हस्तान्तरित कर सकता है। इस कारण आप के मित्र के पिता को अधिकार प्राप्त है कि वे अपने मकान को विक्रय कर दें। पुत्र उन के मकान में निवास करता है वह एक लायसेंसी के बतौर निवास करता है। पिता उस के लायसेंस को समाप्त कर उस से मकान खाली कराने और कब्जा प्राप्त करने के लिए दीवानी वाद भी कर सकते हैं। मित्र की समस्या है कि वह इसे रोकने के लिए क्या करे।
आप के मित्र को इस विषय पर स्वयं विचार करना चाहिए कि आखिर एक 80 वर्ष की उम्र का वृद्ध पिता क्यों अपने ही पुत्र को मकान से निकाल कर मकान को बेच कर उस पैतृक गाँव में जाना चाहता है जहाँ उस की सार संभाल करने वाला कोई नहीं है? यह एक सामाजिक समस्या है। इस उम् में जब पिता का जीवन केवल 10-15 वर्ष और शेष है वे अपनी इच्छा से जीवन जीना चाहते हैं जो उन्हें नहीं मिल रहा है। संभवतः उस का 5-10 % भी नहीं मिल रहा है। कहीं न कहीं कोई समस्या है। उस समस्या का पता करना चाहिए और उसे हल करना चाहिए। एक समस्या जनरेशन गैप की है। पिता परिवार में कुछ चाहते हैं लेकिन सन्ताने उस तरीके से जीने से मना कर देती हैं। यहाँ तक कि वे अपने बुजुर्गों का पूरी तरह से अवमान करना आरंभ कर देते हैं। उसी से ऐसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। बुजुर्ग अपनी आदतों को नहीं बदल पाते। लेकिन जवान और बच्चे तो बुजुर्गों का सम्मान करते हुए उन्हें उन की आदतों के साथ एडजस्ट कर ही सकते हैं। आप के मित्र को यही प्रयत्न करना चाहिए।
आप के मित्र को पिता से कहना चाहिए कि वह मकान खाली नहीं करेगा चाहे कुछ भी हो जाए और बेचने भी नहीं देगा। पिता ने अदालत जाने की धमकी दी है तो उन से कह दे कि वे बेशक अदालत जाएँ, यदि अदालत ने निर्णय कर दिया तो वह खाली कर देगा फिर वे मकान को बेचें कुछ भी करें। वकील से मिलने में और अदालती कार्यवाही करने में वह जरूर मदद करेगा लेकिन वह उस मुकदमे का विरोध भी करेगा। पिता को मुकदमा करने दे और मुकदमा करने में पूरी मदद करे और साथ दे। उस के साथ ही उस मुकदमे का विरोध भी करे। मुकदमे का विरोध इस आधार पर किया जा सकता है कि वह मकान पुश्तैनी संपत्ति से पिता को हुई आय से बनाया गया है और उस में खुद मित्र का भी पैसा खर्च हुआ है इस कारण वह पुश्तैनी है और पिता उसे बेच नहीं सकते। इस मुकदमे को निपटने में 5-10 वर्ष लगेंगे यदि निर्णय किसी भी प्रकार से मित्र के विरुद्ध हुआ भी तो उस की अपील में 4-5 साल और लग जाएंगे। उस के बाद दूसरी अपील भी की जा सकती है।
हमें नहीं लगता कि पिता कोई मुकदमा करेंगे। वे केवल धमकी देते हैं ताकि पुत्र उन के साथ उन के मन माफिक व्यवहार करता है जिस की ओर से वे सशंकित हैं। यदि वे पुत्र और उस के परिवार अर्थात पत्नी और बच्चों की ओर से आश्वस्त हो जाते हैं कि वे उन के साथ अच्छा व्यवहार करेंगे को वे यह धमकी देना भी बन्द कर देंगे। बुजुर्गों की इच्छाओं का सम्मान करते हुए भी उन का विरोध किया जा सकता है। यही समस्या को हल भी करता है।
बड़ा ही सुलझा हुआ सुझाव दिया है और पिता का अपनी संपत्ति के प्रति विद्रोह निश्चित रूप से अपनी अवहेलना के कारन ही है अन्यथा बुजुर्ग परिवार के साथ रह कर अधिक प्रसन्न रहते हैं . बुजुर्गों को सिर्फ और सिर्फ सेवा और सम्मान से जीता जा सकता है .