बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी : स्वतंत्रता का मूल अधिकार (3)
|वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ है शब्दों, लेखों, मुद्रणों, चिन्होंस अंकों अथवा किसी भी अन्य प्रकार से अपने विचारों को प्रकट करना। अभिव्यक्ति किसी भी माध्यम द्वारा किसी व्यक्ति द्वारा अपने विचारों को अन्य व्यक्ति तक पहुँचाना है। इस तरह विचारों को प्रकट करने के जितने भी साधन हैं वे इस के अंतर्गत आ जाते हैं। प्रेस और माध्यमों की आजादी इसी के अंतर्गत आ जाती है। विचारों का स्वतंत्र प्रसारण ही इस आजादी का मुख्य उद्देश्य है। सरकार के संचालन की समस्त सूचनाओं को जानने का अधिकार इसी में निहीत है। केवल देश की सुरक्षा अथवा लोकहित में ही इन सूचनाओं को रोका जाना संभव है। यदि अखबार प्रकाशित हो जाए और उसे लोगों तक पहुँचने से रोक दिया जाए तो ऐसे प्रकाशन का कोई अर्थ ही नहीं रह जाएगा। इसी में परिचालन की स्वतंत्रता भी निहीत है। (रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य एआईआर 1960 सु.को.124) वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता केवल अपने विचारों तक ही सीमित नहीं है, इस में अन्य व्यक्तियों के विचारों का प्रचार-प्रसार भी सम्मिलित है। (श्री निवास बनाम मद्रास राज्य, एआईआर 1951 मद्रास 79)
प्रेस की स्वतंत्रता
अमरीका के प्रेस कमीशन ने प्रेस की स्वतंत्रता के बारे में कहा है कि प्रेस की स्वतंत्रता राजनैतिक स्वतंत्रता के लिए आवश्यक है। जिस समाज में मनुष्य अपने विचार स्वतंत्र रूप से दूसरों तक नहीं पहुँचा सकता वहाँ अन्य स्वतंत्रताएँ भी सुरक्षित नहीं रह सकतीं। जहाँ वाक् स्वातंत्र्य है वहीं स्वतंत्र समाज आरंभ होता है। स्वतंत्रता को बनाए रखने के सभी साधन मौजूद रहते हैं। भारतीय प्रेस कमीशन ने भी ऐसे ही विचार व्यक्त किए हैं -“जनतंत्र केवल विधान मंडल की सचेत देखभाल में ही नही अपितु लोकमत की देखभाल और मार्गदर्शन के अंतर्गत फलता फूलता है। प्रेस की ही यह सब से बड़ी विशेषता है कि उस ेक माध्यम से लोकमत अभिव्यक्त होता है।
अमरीका की ही तरह भारतीय संविधान में प्रेस की स्वतंत्रता का पृथक से उल्लेख नहीं है। लेकिन डॉ. अम्बेडकर ने संविधान सभा में कहा था कि प्रेस को
कोई विशेषाधिकार नहीं दिए जा सकते जो आम नागरिक को प्राप्त नहीं हैं। प्रेस में संपादक, संवाददाता और लेखक अपनी अभिव्यक्ति की आजादी का प्रयोग करते हैं। इस कारण से किसी विशेष उपबंध की आवश्यकता नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने साकल पेपर्स लि. बनाम भारत संघ (एआईआर 1962 सु.को. 305) में निर्धारित किया कि वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में प्रेस की स्वतंत्रता भी सम्मिलित है। प्रेस विचारों को अभिव्यक्त करने का माध्यम मात्र हैं। यह स्वतंत्रता उन निर्बंधनों के अधीन है जो कि अनुच्छेद 19 (2) द्वारा नागरिकों के वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाए हैं और लगाए जा सकते हैं।
प्रेस को साक्षात्कार के माध्यम से जानने की स्वतंत्रता है लेकिन परम स्वतंत्रता नहीं है। उस पर निर्बंधन लगाए जा सकते हैं। प्रेस नागरिकों से सूचनाएँ तभी प्राप्त कर सकता है जब वे अपनी इच्छा से सूचना देना चाहें। प्रभुदत्त बनाम भारत संघ (एआईआर 1982 सु.को. 6) में यह निर्णय दिया गया कि मृत्युदंड के अभियुक्त अपनी इच्छा से कोई बात बताना चाहते हैं तो तो प्रेस को उन से पूछने की अनुमति दी जानी चाहिए, और यदि ऐसी अनुमति नहीं दी जाती है तो उस के कारणों को बताना चाहिए।(क्रमशः जारी)
# ना-बोलने / 'न' बोलने का हमको
अधिकार चाहिये,
अपनी हरएक बात 'स्वीकार'* चाहिये!
# हर कोई बोलता हुआ दिखता यहाँ मगर,
गूंगी चलेगी, बहरी न सरकार चाहिये।
*यस सर
ध्यान से पढ़ रहे हैं .
Freedom of Speech पर अच्छा लिखा आपने कानून क्या कहता ये पता चल गया – –
उसी के साथ एक और भी कानून यहां है जिस को Fifth Amendment
कहते हैं ( which is to keep quiet in order not to incriminate onesef )
– लावण्या
… स्वतंत्रता … आजादी … …. क्यों, किसके लिये, किसलिये !!!!!!
इसमें कुछ सीमाएं भी तो होंगी? अभिव्यक्ति के नाम पर क्या कोई कुछ भी कह/लिख सकता है?
अच्छी जानकारी .
जानकारी मे इजाफ़ा हो रहा है. आगे के भागों का इंतजार है.
रामराम.
आभारइस जानकारीपूर्ण श्रृंख्ला के लिए. आगे इन्तजार है.
बहुत सुंदर जानकारी दी आप ने ,
धन्यवाद