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मूल दस्तावेज की फोटो कापी कब न्यायालय के समक्ष साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत की जा सकती है।

समस्या-

भावेश जैन ने उदयपुर, राजस्थान से राजस्थान राज्य की समस्या भेजी है कि-


किसी डॉक्यूमेंट की फ़ोटो कॉपी को जो कि प्रमाणित नहीं है न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है क्या? द्वितीय पक्षकार इस पर किस प्रकार आपत्ति दर्ज करवा सकता है?


समाधान-

भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अन्तर्गत केवल मूल दस्तावेज ही साक्ष्य में ग्राह्य हैं। एक दस्तावेज की फोटो कापी प्रस्तुत की जा सकती है लेकिन उसे साक्ष्य में सीधे ग्रहण नहीं किया सकता उसे प्रदर्शित नहीं किया जा सकता।

कोई भी फोटो कापी हमेशा किसी मूल दस्तावेज की होती है। आप को न्यायालय को यह बताना होगा कि यह मूल दस्तावेज कहाँ निष्पादित हुआ था और वह किस के कब्जे में होना चाहिए। जिस के कब्जे में मूल दस्तावेज हो उस से उस दस्तावेज को न्यायालय के सामने लाना चाहिए। यदि मूल दस्तावेज यदि मुकदमे के किसी पक्षकार के कब्जे में होने की संभावना हो तो आप न्यायालय को यह आवेदन कर सकते हैं कि उस पक्षकार से कहा जाए कि वह न्यायालय के समक्ष शपथ पर यह प्रकट करे कि वह दस्तावेज उस के कब्जे में है या नहीं है। यह आवेदन सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 11 नियम 12 में प्रस्तुत किया जा सकता है। यदि पक्षकार प्रकट करता है कि उस के कब्जे में दस्तावेज है तो न्यायालय आदेश 11 नियम 14 में उस पक्षकार को मूल दस्तावेज न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने का आदेश दे सकता है।

यदि ऐसा मूल दस्तावेज मुकदमे के पक्षकार से भिन्न किसी व्यक्ति के शक्ति और आधिपत्य में हो तो न्यायालय यह समझे कि दस्तावेज का मुकदमें के निर्णय के लिए उस के सामने लाया जाना आवश्यक है तो न्यायालय उस व्यक्ति को वह दस्तावेज ले कर न्यायालय में उपस्थित होने का समन भेज सकता है।

यदि किसी भी तरह ऐसा मूल दस्तावेज नहीं मिल रहा हो तो यह माना जाएगा कि वह नष्ट हो चुका है वैसी स्थिति में न्यायालय धारा 65 साक्ष्य अधिनियम के अन्तर्गत फोटो प्रति को एक द्वितीयक साक्ष्य के रूप में साक्ष्य में ग्रहण करने की अनुमति दे सकता है।

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