मोइली साहब! मौजूदा से चार गुनी नहीं, तो दुगनी ही दे दीजिए
|अब मोइली साहब ने कह तो दिया है कि छह माह में फैसला मिलना ही चाहिए। लेकिन जरा ये तो बताएँ कि ये होगा कैसे? हमारे यहाँ की सब अधीनस्थ दांडिक अदालतें 138 परक्राम्य अधिनियम (चैक बाउंस) के मुकदमों से अटी थीं। ट्रेफिक कतई जाम था। राज्य सरकार ने एक विशेष अदालत इसी काम के लिए स्थापित कर दी जैसे ट्रेफिक जाम के लिए हाई वे पर बाई पास बनाया हो। सारे मुकदमे उधर ट्रांसफर हो गए। पता लगा उस अदालत में मुकदमों की संख्या दस हजार से अधिक हो गई है। उधऱ तो ट्रेफिक सरकने के बजाए बिलकुल खड़ा हो गया है। अब सुना है कि एक अदालत और स्थापित की जा रही है। पर उस से क्या होगा? ऊँट के मुहँ में जीरा है वह। मुकदमों और जनसंख्या के हिसाब से अदालतें स्थापित करना जरूरी बनाइए राज्य सरकारों के लिए। मोइली साहब! देश में जितनी अदालतें अभी मौजूद हैं, कम से कम उस से चार गुनी और चाहिए। आप अपने कार्य काल में दुगनी ही दे दीजिए।
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8 Comments
आशा के दीप जलाए रखिए |
देखिए, शायद कुछ कर ही दें।
घुघूती बासूती
'Words are easy' sahi baat hai.
मोईली साहब के पास जरुर जादू की छडी होगी जी….
चेक ही बंद कर देना चाहिए
न रहेगा बांस न बजेगी बाँसुरी
सर अभी जाने कितने मोईली साहब शोईली साहब आएंगे जाएंगे , रही चैक बाऊंसिंग की नई अदालतों की बात तो दिल्ली में तो हर दो महीने में एक नई बनानी पड रही है इसके लिए , जब टैंपो में लद के आएंगे वो मुकदमे तो राम ही राखे । दोगुना भी कर पाएं तो इतिहास बन जाएगा ।
समीर जी नें सही कहा.
मोईली साहब को सिर्फ बयान देने से मतलब है.