मोइली साहब! हमारी न्याय-व्यवस्था का ढाँचा चरमरा कर गिरने की कगार पर है
|नए विधि मंत्री वीरप्पा मोइली ने कार्यभार संभालने के उपरांत बहुत ही आशाजनक बातें भारतीय न्याय-व्यवस्था के बारे में कही हैं। उन का कहना है कि भारतीय न्याय-व्यवस्था को समग्र सुधार ही न्यायार्थियों के प्रति उत्तरदायी और अनुक्रियाशील बना सकते हैं। उन का मानना है कि न्यायिक सुधार टुकड़ों में नहीं किए जा सकते, हमे समग्र सुधारों की ओर जाना होगा। श्री मोइली ने विधि और न्याय मंत्रालय का कार्यभार संभालने के बाद कहा कि न्याय व्यवस्था के सामने न्याय में देरी, मुकदमो का अंबार, जजों की नियुक्ति, की समस्याएं हैं वहीं चुनाव सुधार और कानून का राज जैसी समस्याएँ भी मुहँ बाए खड़ी हैं। उन्हों ने कहा कि न्याय की गति को तीव्र करने की आवश्यकता है।
भारत की अदालतों में तीन करोड़ से अधिक मुकदमे लम्बित हैं। जिन के लिए जजों की संख्या चार गुना होना आवश्यक समझी जाती है। जब कि साढ़े तीन हजार जजों के स्वीकृत पद रिक्त पड़े हैं। लेकिन विधिमंत्री का वीरप्पा मोइली कहना है कि यह एक विधिक विषय उतना नहीं है जितना प्रशासनिक अधिक है। हमारी न्याय व्यवस्था दुनिया की श्रेष्ठतम व्यवस्थाओं में से एक है। उन्हों ने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि भारत में केन्द्र और राज्यों की सरकारें सब से बड़ी न्यायार्थी हैं। जहाँ तक संभव हो सके सरकारों को अदालतों से बचने की आदत डालनी चाहिए।
मोइली जी ने जो पहला बयान माध्यमों के सामने दिया है, उस से कुछ भी पता नहीं लगता है कि वे क्या करना चाहते हैं। उन के बयानों से तो यह लगता है कि वे फिर से मुकदमों को कम करने के तरीकों को अपनाना चाहते हैं जो कि पहले ही अपनाए जा चुके हैं, जिन के अपनाने से एक बार मुकदमों में कमी आई लेकिन कुछ बरसों बाद ही दुबारा मुकदमों की संख्या बढ़ने लगी।
नए विधि मंत्री के लिए तीसरा खंबा की सलाह यह है कि वे पहले यह निश्चित कर लें कि अगले पाँच वर्षों में उन्हें देश में जजों की संख्या कितनी बढ़ानी है? और वे न्याय पालिका को कितनी आधुनिक बना सकते हैं। संयुक्त राज्य में प्रत्येक दस लाख की जनसंख्या पर 111 अदालतें हैं और उन की अदालतें दुनिया की सब से अधिक आधुनिक तकनीकयुक्त हैं। जब कि हम अभी दस लाख की जनसंख्या पर 12-13 न्यायालय उपलब्ध नहीं करा पाए हैं और हमारी निचली अदालतों के लिए इमारतें तक नहीं हैं।
देश में न्याय व्यवस्था के समग्र विकास के लिए राज्यों के साथ मिल कर पंचवर्षीय योजनाएँ बनानी होंगी और उन पर तत्परता से काम करना होगा। वरना हमारी न्याय-व्यवस्था का ढाँचा चरमरा कर गिरने की कगार पर है।
asal me to aajkal me "nyay" nahi faisale hote hain. nyay ka matlab sabhee paksh raji, faisale ke arth wah raji jiske hak me faisala sunaya gya.jab sabko naya milega wah pranali kab aayegi.narayan narayan
सच तो यही है कि न्याय की सुलभता जनसंख्या और अदालतों के सही अनुपात पर ही निर्भर है।
भारतीय आंकड़ा तो भयावह है।
कितने भी अधिकार मिल जाएँ, कितनी भी समृद्धि आ जाए यदि उसका उपयोग करने में समस्या आने पर न्याय की आशा ही न हो तो सब बेकार है। जब तक न्याय देने में आलस्य रहेगा सबकुछ बेकार है। सुधार करने में अब देर नहीं होनी चहिए।
घुघूती बासूती
सामयिक चिंता का बा-सबब चिंतन…
सरकार तब करेगी जब जनता ठेलेगी। जनता सेंसिटाइज्ड नहीं है। और कुछ सीमा तक जनता को न्यायव्यवस्था के प्रति उदासीनता भी है।
ज्यादा तो नहीं कह सकता इस विषय पर मुझे लगता है कि वीरप्पा मोइली काम करने वाले शख्स हैं …….प्रशासनिक सुधार आयोग में उन्होंने जिस रूप में अच्छा कार्य किया है मुझे तो सामान्य राजनीतिज्ञों से वह उम्मीद नहीं थी ?
इसलिए में निश्चित रूप से आशान्वित हूँ!!
हिन्दी चिट्ठाकारों का आर्थिक सर्वेक्षण : परिणामो पर एक नजर
नये मंत्री नये वायदे पर काम वही ढाक के तीन पात ।
नए विधि मंत्री वीरप्पा मोइली
नये नये आये हैँ
अब बातेँ ना करके
असल काम कर दीखलायेँ
तब बात बने !
ध्यान दीलवाने का शुक्रिया …
आपने अच्छी सलाह और चिंताएं व्यक्त की हैं, पर ताऊ लोग सुनेंगे? इसमे संदेह है.
रामराम.
सही कहा है आपने .