वकीलों से…… लोग मुकदमे क्यों नहीं करते ?
|
पिछली पोस्ट से यह तो जानकारी हो ही गई कि बहुत से लोग जरूरत होते हुए भी मुकदमे नहीं करते हैं। यह जानकारी वकीलों के लिए उपयोगी है। उनकी वकालत जारी रहे इसके लिए यह निहायत जरूरी है कि लोग मुकदमे लेकर उनके पास आऐं।
बहुत से लोग इसलिए मुकदमे नहीं करते कि न्याय प्रणाली इतनी विलम्बित है कि यदि आधी उमर का आदमी/औरत मुकदमा करे तो उस का मुकदमा निचली अदालत से निपटते/निपटते ही उस की उमर पूरी हो जाए, और खुदा-न-खास्ता मुकदमे में कोई फैसला हो भी जाए तो आगे अपील-दर-अपील का सिलसिला है। तो जो मुवक्किल यह जान गया कि उसे मुकदमें के फल का स्वाद चखने को मिलने वाला नहीं, वह क्यों वकील और अदालत का रुख करेगा? सत्तर-अस्सी की उमर में आदमी आम लगाकर उस का फल चखने की आशा रखे तो समझो अब रिटायरमेण्ट के बाद उसे टाइम पास का और कोई साधन नहीं मिला। बेटे -बहू सोचते रहते हैं कि बाबूजी नहीं तो कम से कम हमें तो खाने को आम और अचार को कैरियां तो मिल ही जाऐंगी।
मुकदमे के लम्बा होने और उस के नतीजे में देरी के ज्यादातर कारण हमारी सरकार की अक्षमता और न्याय प्रणाली के दोषों में हैं। पर वकीलों की भी इस में भूमिका है। हर मुकदमे के कम से कम एक पक्षकार के लिए मुकदमे में देरी करना लाभदायक होता है और उन्हें इस के लिए तरीके और साधन वकील ही मुहैया कराते हैं। इस के अलावा वकीलों में हड़ताल की प्रवृत्ति दिनों दिन जोर पकड़ती जा रही है। उन की अपनी समस्याऐं हो सकती हैं, मगर उन को हल करने के हड़ताल के अलावा अन्य उपाय भी हैं।
वकीलों की हर हड़ताल में हजारों मुवक्किलों को परेशान होना पड़ता है, उन के मुकदमों की उम्र बढ़ जाती है। मुकदमों के फैसलों में देरी के अन्य प्रधान कारण छिप जाते हैं। लोगों को लगता है कि वकील ही नहीं चाहते कि उन के मुकदमों के फैसले हों। इस से वकीलों की साख कमजोर होती है। न्याय प्रणाली के प्रति लोगों का विश्वास कम होता जाता है। नतीजा यह है कि लोग मुकदमा करने से कतराते हैं। आज न्याय प्रणाली की इसी गिरती साख के कारण सैंकड़ों मुकदमे वकील और अदालत तक पहुंचते ही नहीं।
लोग जरूरत होते हुए मुकदमे नहीं करें, यह प्रवृत्ति वकीलों के समुदाय के हितों के विरुद्ध है। उन्हें सोचना ही होगा कि कैसे मुकदमों की रफ्तार तेज हो। उन्हें कम से कम इस धारणा को बदलने के लिए तो सामुहिक रूप से काम करना ही होगा कि वकीलों की वजह से मुकदमों के फैसलों में देरी होती है। इस के अलावा न्याय प्रणाली को चुस्त-दुरुस्त बनाने के लिए भी उन्हें काम करना पड़ेगा।
फीस लेने के बाद वकील कोई बात ही सुनने को तयार नही होता वो दूसरे ग्राहक की तलाश में होता हे फीस लेने तक ही उस की मुवकिल से दिलचस्पी रहती हे
९९% वकील चोर और बेईमान हैं तय फीस के बावजूद भी मुर्ख बना कर पैसा लूटते रहते हैं
आपने बिलकुल सही कहा है उपरोक्त लेख में, वैसे मेरे तीन-चार अपने अनुभव है कि जहाँ पर वकील ने अपनी फ़ीस तो ले ली. मगर मेरे केसों को खराब कर दिया और उनकी फाईलें भी नहीं लौटाई. हमें फर्जी तारीखें देते रहे जिससे बहुत नुकसान हुआ और बाऊंस चेक भी बेकार हो गए.अब उनके खिलाफ कौन कहाँ जाये इसका पता ही नहीं है. वैसे आपने स्वंय वकील होकर वकीलों के बारे में लिखकर बहुत ही साहसिक कार्य किया है. जिस तरह से हाथ की पांचो अंगुली बराबर नहीं होती है. उसी प्रकार हर वकील एक जैसा नहीं होता है और अच्छा वकील भूसे में से सुई ढूढने के बराबर है. मगर लोग अब समझने लगे हैं कि वकील वास्तव में विवाद के समाधान में नहीं, बल्कि मुकदमे को लंबे समय तक जारी रखने में दिलचस्पी रखते हैं, ताकि उनकी कमाई का जरिया बना रहे। मुकदमे लंबे खिंचते हैं, ये बात तो है ही…..लेकिन कहीं ऐसा तो नहीं कि न्याय प्रणाली पर से वकीलों का विश्वास पहले उठा और जनता का बाद में. शायद वकील ख़ुद को न्याय प्रणाली का हिस्सा मानते ही नहीं.
मुकदमे लंबे खिंचते हैं, ये बात तो है ही…..
लेकिन कहीं ऐसा तो नहीं कि न्याय प्रणाली पर से वकीलों का विश्वास पहले उठा और जनता का बाद में. शायद वकील ख़ुद को न्याय प्रणाली का हिस्सा मानते ही नहीं.
सही कहा। लोग अब समझने लगे हैं कि वकील वास्तव में विवाद के समाधान में नहीं, बल्कि मुकदमे को लंबे समय तक जारी रखने में दिलचस्पी रखते हैं, ताकि उनकी कमाई का जरिया बना रहे।