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स्त्री को नारी निकेतन भेजने के आदेश को सत्र न्यायालय या उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दें

समस्या-

मेरे मित्र ने घरवालों की मर्जी के खिलाफ निकाह किया था तो लडकी वालों ने 363 366 धाराओं में मुकदमा लिखा दिया। लडकी जब एसपी के पास अपनी बात कहने गयी तो उसे अरेस्‍ट करा दिया। हमारे पास लडकी की उम्र के प्रमाण के रूप में उसकी वोटर आईडी, उसका जन्‍म प्रमाण पत्र व सीएमओ द्वारा जारी आयु प्रमाण पत्र हैं जिसमें लडकी 19 वर्ष की है। लडकी वालों के पास उसकी आठवीं की टीसी है जिसमें वो 17 साल की है। 164 का बयान लडके के पक्ष में है। तब भी मजिस्‍ट्रेट ने उसे नाबालिग मानते हुये नारी निकेतन भेज दिया। क्‍या इस मामले में हम कुछ कर सकते हैं? मजिस्‍ट्रेट के इस आदेश को क्‍या हम चैलेन्‍ज कर सकते हैं? यदि हां तो कहां?

-पुनीत कुमार, कानपुर, उत्तर प्रदेश

समाधान-

हो सकता है कि लड़की वयस्क हो चुकी हो। लेकिन मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किए जाने और 164 दंडप्रक्रिया संहिता के अंतर्गत उस के बयान लिए जाने के उपरान्त जब लड़की की अभिरक्षा का प्रश्न न्यायालय के समक्ष उपस्थित हुआ तो उस के पास चार प्रमाण थे। तीन उसे वयस्क बता रहे थे और एक उसे अवयस्क बता रहा था। इन चारों प्रमाणों में समय के हिसाब से जन्म प्रमाण पत्र के अतिरिक्त सभी प्रमाण कक्षा आठ की अंकतालिका के बाद के थे। जन्म प्रमाण पत्र भी हो सकता है बाद की तिथि का बना हुआ हो। इस तरह बाद की तिथि के बने हुए प्रमाणों पर यह संदेह होना स्वाभाविक है कि वे अस्वाभाविक रीति से निर्मित किए गए हों। यहाँ चारों ही प्रमाण अप्राणित भी हैं। इस तरह मजिस्ट्रेट द्वारा लड़की को निरपेक्ष संरक्षा में भेजने का निर्णय उचित ही है। अब न्यायालय स्वयं चिकित्सा अधिकारी को बोर्ड बैठा कर लड़की की उम्र के बारे में राय देने को कह सकता है।

जिस्ट्रेट के किसी भी आदेश को सत्र न्यायालय के समक्ष धारा 399 दं.प्र.संहिता तथा उच्च न्यायालय के समक्ष धारा 401 के अतर्गत चुनौती दी जा सकती है। कोई भी प्रावधान न होने पर उच्च न्यायालय के समक्ष धारा 482 दं.प्र.संहिता के अंतर्गत आवेदन प्रस्तुत किया जा सकता है। आप अपने यहाँ वकील से राय कर के उक्त उपायों में से जो भी उपाय स्थानीय परिस्थितियों में उपयुक्त प्रतीत हो उस का उपयोग कर सकते हैं।

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