हिन्दू विवाह अधिनियम में सपिंड और प्रतिबंधित संबंध
|कुछ प्रश्न अक्सर मुझ से पूछे जाते हैं और इन प्रश्नों पर अनेक लोग मेल पर या चैट पर बहस करने की ख्वाहिश भी रखते हैं। असल बात यह है कि कानून को सभी अपने-अपने हिसाब से व्याख्यायित करना चाहते हैं। ये लोग भी अपनी सुविधा के लिए उस की व्याख्या करना चाहते हैं। लेकिन कानून की व्याख्या केवल एक सीमा तक ही कोई अपने हक में कर सकता है, उस के उपरांत नहीं। सब कुछ जानने के उपरांत यदि कोई कानून की अवहेलना करना चाहता है तो फिर उसे उस के परिणाम भुगतने को तैयार रहना चाहिए। वास्तविकता यह है कि हिन्दू विवाह अधिनियम द्वारा सपिंड विवाहों और प्रतिबंधित संबंधों में विवाह को वर्जित कर दिया गया है। लेकिन साथ ही यह छूट भी दी गई है कि यदि परंपरा इस की अनुमति देती हो तो ऐसा विवाह किया जा सकता है। लेकिन ऐसी अवस्था में जब कि कोई विवाह को परंपरा के अनुसार वैध कहता है तो उसे वह परंपरा साबित करनी होगी। अब आप यह जानना चाहते होंगे कि सपिंड और प्रतिबंधित संबंध क्या हैं? हिन्दू विवाह अधिनियम में ही सपिंड और प्रतिबंधित संबंधों की व्याख्या की गई है।
सपिण्ड संबंध-
किसी भी व्यक्ति के संबंध में सपिण्ड संबंध माँ की पंक्ति में तीन पीढ़ियों तक के वंशज और पिता की पंक्ति में पाँच पीढ़ियों तक के वंशज व्यक्ति सपिंड कहे जाएंगे। पंक्ति को संबंधित व्यक्ति के संबंध में ऊपर की ओर गिनी जाएगी और संबंधित व्यक्ति को पहली पीढ़ी माना जाएगा। दो व्यक्ति आपस में सपिण्ड़ कहे जाएंगे यदि एक व्यक्ति दूसरे का पंक्ति में सपिंड संबंध से पूर्वज हो या दोनों का सपिंड रिश्ते में एक ही पूर्वज रहा हो।
हम यहाँ इसे इस तरह देख सकते हैं कि किसी पुरुष के मामा की पुत्री से सपिंड रिश्ता होगा क्यों कि पुरुष का नाना और स्त्री का दादा एक ही व्यक्ति होगा। इसी तरह बुआ की पुत्री से भी सपिंड रिश्ता होगा क्यों कि पुरुष का दादा स्त्री का नाना होगा। हम इस तरह सपिंड की पहचान करने के लिए माँ के रिश्ते में तीन पीढ़ी तक और पिता के रिश्ते में पाँच पीढ़ी तक गणना करेंगे।
प्रतिबंधित रिश्ते-
सपिंड रिश्तों के अलावा भी हिन्दू विवाह अधिनियम में कुछ रिश्तों को प्रतिबंधित किया गया है।
1- यदि कोई दूसरे का पूर्वज हो;
2- यदि कोई पूर्वज या वशंज की पत्नी या पति हो;
3- यदि कोई दूसरे के भाई, या पिता या माता के भाई, या दादा या दादी के भाई की पत्नी हो;
4- यदि कोई दो आपस में भाई-बहन, चाचा-भतीजी, चाची-भतीजा, या भाई-बहन की संतानें, या दो भाइयों की संतानें, या दो बहनों की संतानें हों।
सपिंड और प्रतिबंधित रिश्तों में ….
पूर्ण रक्त और अर्धरक्त संबंध;
अवैध और वैध दोनों ही प्रकार के रक्त संबंध;
और रक्त संबंध व गोद से बने संबंध सम्मिलित हैं।
हिन्दू विवाह अधिनियम भारत में एक व्यापक समुदाय पर प्रवृत्त होता है। किन पर यह प्रवृत्त होता है और किन पर नहीं? अगले अंक में हम इसी पर बात करेंगे।
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6 Comments
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दिनेश जी आप ने सही कहा. ओर ऎसा ही हमारे खान दानो मै आज तक होता आया है, लेकिन जो हिन्दू परिवार पाकिस्तान ओर अफ़्गानिस्तान मै बसे है वो शादियां भी अपने नजदीकी रिश्ते दारो मै करते है
इसमे जातियों की आतंरिक व्यवस्था [परंपरा]को परिभाषित किया है क्या ?
कुछ परिवार जब एक स्थान रहने को बाधित हो जाते हैं तो इस तरह के विवाह होने लगते हैं। लेकिन वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह उचित नहीं है। एक लम्बे समय से ऐसा होता रहे तो वह परंपरा बन जाती है। परंपरा साबित कर इसे जायज ठहराया जा सकता है। लेकिन भारत में जहाँ हिन्दू बड़ी संख्या में रहते हैं वहाँ यह सब अनुचित है और विधिपूर्ण भी नहीं।
अब यह हिन्दू अधिनियम किन पर लागू है यह अगली कड़ी में मैं लिख ही रहा हूँ।
दिनेश जी आप ने सही कहा. ओर ऎसा ही हमारे खान दानो मै आज तक होता आया है, लेकिन जो हिन्दू परिवार पाकिस्तान ओर अफ़्गानिस्तान मै बसे है वो शादियां भी अपने नजदीकी रिश्ते दारो मै करते है, हमारे यहां अफ़गनिस्तान से कुछ हिदू परिवार पनाह गीर बन कर आये, ओर वो मामा बुआ ओर मासी की लडकियो/लडको से भी शादिया स्थापित करते है
अच्छी विधिक जानकारी.