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कर्मचारियों के अपंजीकृत संगठन भी आन्दोलन कर सकते हैं।

Strikeसमस्या-

प्रदीप कुमार सिंह ने राजोपुरम कॉलोनी, शेखपुरा, बिहार से समस्या भेजी है कि-

मैं बिहार सरकार के बिहार ग्रामीण जीविकोपार्जन प्रोत्साहन समिति “जीविका” का कर्मचारी हूँ साथ ही इस समिति मेँ काम करने वाले कर्मचारियों के संगठन जीविका कर्मचारी वेलफेयर एसोसिएशन बिहार (रजिस्टर्ड नहीँ) का प्रदेश अध्यक्ष हूँ मैं नें 23 दिसंबर 2014 को विभिन्न मांगोँ को लेकर एक धरना प्रदर्शन कार्यक्रम का आयोजन किया था इस कार्यक्रम के पूर्व ही जीविका के निदेशक द्वारा एक आदेश पारित कर सभी कर्मचारियोँ का छुट्टी रद्द कर दिया गया एवम धरना प्रदर्शन को रोकने को कहा गया फिर भी धरना प्रदर्शन किया गया धरना प्रदर्शन के उपरांत निदेशक द्वारा सभी कर्मचारियोँ को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया एवम् कानूनी कारवाई करने के साथ-साथ बर्खास्तगी करने की बात की जा रही है क्या हम लोग बिना रजिस्ट्रेशन के धरना प्रदर्शन नहीँ कर सकते हे इसकी जानकारी उपलब्ध कराएँ।

समाधान-

भी नियोजक अपने कर्मचारियों को उन की मांगों के लिए आन्दोलन करने से इसी तरह की धमकियाँ देते हैं और कार्यवाही भी करते हैं। इस में स्थानीय निकाय. प्रदेश सरकारें और केन्द्रीय सरकार भी सम्मिलित है। लेकिन इस से डर कर तो मजदूर कर्मचारी अपनी हालत सुधारने के लिए आंदोलन करने का त्याग नहीं कर सकते। कर्मचारियों ने अवकाश के लिए आवेदन किया यह उन का अधिकार था नियोजक ने उस अवकाश को स्वीकृत नहीं किया यह उस का अधिकार था। ऐसे धरना प्रदर्शन करने पर कोई रोक नहीं है। अपितु यह कर्मचारियों का अधिकार है। शान्तिपूर्ण धरना प्रदर्शन जिस में किसी तरह का कोई अपराध न किया गया हो के लिए किसी भी कर्मचारी को नियोजन द्वारा दंडित नहीं किया जा सकता है।

नियोजक द्वारा अनुपस्थित रहने के लिए कर्मचारी को आरोप पत्र दिया जा सकता है और उसे दंडित भी किया जा सकता है। लेकिन एक दिन की अनुपस्थिति के लिए बर्खास्तगी का दंड नहीं दिया जा सकता। यदि नियोजक ऐसा दंड देते हैं तो उस के विरुद्ध कानूनी रूप से भी लड़ा जा सकता है और सामूहिक सौदेबाजी भी की जा सकती है।

जदूर कर्मचारियों के आन्दोलन करने के लिए यह बिलकुल जरूरी नहीं है कि उन का संगठन पंजीकृत हो। वे एक साथ एकत्र हो कर अपनी मांगे रख सकते हैं। लेकिन इस तरह जो अधिकार एक पंजीकृत ट्रेडयूनियन के पदाधिकारियों को प्राप्त होते हैं वे उन्हें नहीं मिलते। दूसरी परेशानी यह है कि यदि नियोजक से किसी मसले पर वार्ता हो तो किसे मजदूर, कर्मचारियों का प्रतिनिधि माना जाए। इस कारण ऐसी परिस्थिति में मजदूर कर्मचारियों की सभा बुला कर समझौता करने के लिए उन से अधिकार लेना जरूरी हो जाता है ऐसे अधिकार पत्र पर सभी या अधिकांश मजदूरों के हस्ताक्षर होना जरूरी है। समझौता होने के उपरान्त वे मजदूर जिन्हों ने अधिकार पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं समझौता उन पर बाध्यकारी नहीं हो सकता। इस कारण आम तौर पर जहाँ संगठन पंजीकृत नहीं होता या किसी संस्थान के बहुमत कर्मचारी मजदूर उस के सदस्य नहीं होते वहाँ नियोजक समझौता होने के बाद भी सभी कर्मचारी मजूदरों से एक व्यक्तिगत समझौता हस्ताक्षर करने को कहते हैं।

मारी राय है कि आप को अपने संगठन को पंजीकृत करवा लेना चाहिए। जिस से भविष्य में परेशानियाँ न हों।

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