न्याय जगत के लिए एक खुश-खबर,, लेकिन जनता के लिए केवल सपना है
|देश के लिए एक अच्छी खबर है कि सुप्रीम कोर्ट में जजों के रिक्त पदों पर जल्दी ही नियुक्तियाँ होने वाली हैं और तब न्यायार्थियों को शीघ्र न्याय मिलने लगेगा। यह सूचना सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति तरुण चटर्जी ने कल एक समाधानऔर मध्यस्थता परियोजना के पुनरीक्षण के लिए आयोजित एक समारोह समाधान-2009 में चण्डीगढ़ में दी।
न्यायमूर्ति तरुण चटर्जी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट सब तरह के मुकदमों के लिए नहीं है। जैसे जमानत को निरस्त करने और मंजूर करने के मामले। इस तरह के मामलों को निचली अदालतों को शीघ्रता के साथ निपटाना चाहिए। उन्हों ने काह कि सुप्रीम कोर्ट को संयुक्त राज्य अमेरिका के संघीय सुप्रीमकोर्ट की तरह होना चाहिए जो कि केवल संवैधानिक मामलों की सुनवाई करता है।
न्यायमूर्ति तरुण चटर्जी द्वारा दी गई सूचनाएँ सुप्रीम कोर्ट के बारे में हैं। यदि सभी उच्चन्यायालयों के रिक्त पदों पर भी इसी शीघ्रता से न्यायाधीशों की नियुक्तियाँ हो जाएँ, मुख्य न्यायाधीश की मांग के अनुसार देश भर में दस हजार अधीनस्थ अदालतें भी एक दो वर्ष में स्थापित हो जाएँ और किसी भी अधीनस्थ न्यायालय में न्यायाधीश का कोई भी पद एक माह से अधिक रिक्त न रहे तो भारत की न्याय प्रणाली में गुणात्मक परिवर्तन देखने को मिल सकते हैं। हालांकि यह अभी सपना ही है।
हमारे राजनेताओं को विशेष रुप से राज्य सरकारों को यह हकीकत जल्दी ही समझनी होगी कि किसी भी राज्य व्यवस्था के लिए न्याय रोटी से पहले की आवश्यकता है. क्यों कि न्याय होगा तो रोटी बांट कर खाई जा सकती है। लेकिन न्यायपूर्ण व्यवस्था नहीं होगी तो लोग पर्याप्त रोटियाँ होते हुए भी आपस में लड़ कर मर जाएंगे या जीवन को नर्क बना देंगे।
उन नेताओ और दलालो का क्या होगा जिनकी रोजी रोटी इन्ही मुकदमो व झगडो पर चलती है ।
उम्मीद पर ही दुनिया टिकी है। भगवान करे यह सपना सच हो जाय।
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न्याय व्यवस्था को सुधारने के लिए न्यायाधीशों की नियुक्ति सहित अन्य कदम उठाने की भी आवश्यकता है.
@tahseeldar
भारतीय दंड संहिता की धारा 140 में एक अपराध तो यह है कि यदि कोई व्यक्ति सेना, नौसेना या वायु सेना के सैनिकों द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली पोशाक या टोकन धारण करता है तो वह तीन माह के कारावास से दंडनीय होगा। इस धारा का प्रभाव है और इस का कितना उपयोग हुआ है यह जाँच पड़ताल का विषय है। पर आप का प्रश्न उचित और सामयिक है।
Press और Media की तरह आजकल निजी वाहनों पर Army, Military, Defence, सैनिक या पूर्व सैनिक लिखवाने या स्टिकर चिपकाने का फैशन चल पड़ा है। इस देश में लोगों के मन में सेना के लिये इतना सम्मान है कि पुलिस वाले आम तौर पर शक होने पर भी इस तरह की गाड़ियों को रोकते नहीं। दूसरी तरफ डर भी रहता है कि अगर सचमुच किसी सेना वाले को रोक लिया तो आसमान सिर पर उठा लेगा। लेकिन मेरी नज़र में तो ये ट्रेंड बहुत ही खतरनाक है। मुझे पूरा यकीन है कि निजी वाहनों पर Army लिखवाने या स्टिकर चिपकाने के बारे में सेना या पुलिस का कोई ना कोई कानून तो अवश्य होगा । इसलिये इस तरह की गाड़ियों की पहचान के लिये देश भर की, खास तौर पर दिल्ली, गाज़ियाबाद, मेरठ, देहरादून, चंडीगढ, अंबाला, ग्वालियर, इंदौर की पुलिस को अभियान चलाना चाहिये। निजी वाहनों पर Army लिखवाने के बारे में क्या कानून है अखबारों के माध्यम से उसके बारे में भी पुलिस और सेना को जनता को बताने का कष्ट करना चाहिये।
क्यों कि न्याय होगा तो रोटी बांट कर खाई जा सकती है। लेकिन न्यायपूर्ण व्यवस्था नहीं होगी तो लोग पर्याप्त रोटियाँ होते हुए भी आपस में लड़ कर मर जाएंगे या जीवन को नर्क बना देंगे।
कितनी सही बात है मगर सरकार को भी समझ आये तभी तो फायदा है आभार और शुभकामनायें
न्यायव्यवस्था यदि गति पकड़ गई तो नेताआें के लिए यह बहुत बुरी ख़बर है…
अभी तो अनंत काल तक चलने वाली प्रक्रिया के कारण ये लोग बचे रहते थे…
एसे में अगर ये लोग न्यायाधीशों की नियुक्तियों में अड़ंगे न डालें तो हैरानी होगी
दोस्ती का जज़्बा सलामत रहे।
मित्रता दिवस पर शुभकामनाएँ।