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अन्तिम प्रतिवेदनों को स्वीकृत होने में देरी क्यों होती है?

rp_supreme-court-of-india4.jpgसमस्या-

योगेश सोलंकी ने पाली, राजस्थान से राजस्थान राज्य की समस्या भेजी है कि-

म दो भाई है अपने स्व:माताजी-पिताजी के निधन के बाद से ही अपने पिताजी द्वारा बनाये मकान में रहते है। बड़े भाई का ज्येष्ठ पुत्र प्रेम विवाह कर हम सभी से सबंध समाप्त कर उदयपुर में रहता है। उसकी पत्नी ने मई 2014 मे महिला थाना पाली में धारा 498 अ,313,323,344 व 366 मे झूठी एफआईआर में घर के सभी सदस्यों को नामजद करवा दिया। पुलिस अनुसंधान में उनकी रिपोर्ट झूठी पाए जाने पर हमारे हक मे F.R. देकर मामला माननीय जे.एम.न्यायालय मे अक्टूबर 14 पेश कर दिया गया। जिस पर रिपोर्टकर्ता को नोटिस तामील करवा तारीख पेशी पर हाजिर होने को सूचित भी कर दिया गया। तब से आज तक 5 पेशी पड़ गयी पर वह हाजिर नहीं हुए। उनके बार बार नही आने पर न्यायालय उन्हें अधिकतम कितने अवसर दे सकता है। अगर वह फिर भी नहीं आते हैं तो न्यायालय अपना फैसला कब सुनायेगा? क्या हम जल्दी निर्णय हेतु कहीं आवेदन कर सकते हैं? निर्णय हमारे हित में होने पर परिवादी को अगली अदालत में जाने के लिये कितना समय मिलेगा? निर्णय के बाद हम मानहानि का मुकदमा और झूठे पुलिस केस का मुकदमा कर सकते हैं क्या?

समाधान –

प के इस मामले में पुलिस द्वारा प्रस्तुत किए गए अन्तिम प्रतिवेदन पर न्यायालय अपना निर्णय दे कर उसे स्वीकार या अस्वीकार नहीं कर रहा है और आप को बार बार पेशी पर जा कर ध्यान रखना पड़ रहा है, यही आप की मूल परेशानी है।

प को लग रहा है कि शिकायत कर्ता को तामील हो जाने के बाद भी अदालत उसे उपस्थित होने का अवसर क्यों दिए जा रही है। पर ऐसा नहीं है। वास्तविकता यह है कि हमारे यहाँ अदालतों की संख्या जरूरत की एक चौथाई से भी कम है। जनसंक्या के अनुपात में भारत में जजों की संख्या अमरीका के मुकाबले 10 प्रतिशत, ब्रिटेन के मुकाबले 20 प्रतिशत और चीन के मुकाबले 5 प्रतिशत ही है। यही कारण है कि हमारी अदालतों के पास मुकदमों की भरमार है। हर अदालत के पास उस की अपनी क्षमता से तीन-चार गुना मुकदमे और काम होता है। अदालत के पीठासीन अधिकारी मजिस्ट्रेट के ऊपर यह भी दबाव रहता है कि वह कोटे से कम से कम दुगना काम कर के दे। इस कारण पीठासीन अधिकारी का सारा ध्यान अपने कोटे से दुगना या अधिक काम करने का दबाव रहता है।

स तरह के अन्तिम प्रतिवेदनों पर आदेश पारित करने का काम आम तौर पर सब से अन्तिम वरीयता का कार्य होता है। जब तक उन की पत्रावलियाँ सामने आती हैं तब तक अदालत का समय समाप्त हो जाता है।

स तरह के मामले पुलिस द्वारा अदालत के समक्ष प्रस्तुत किए जाते हैं। पुलिस की तो हिम्मत ही नहीं होती कि अदालत से उन में आदेश पारित करने को कहे। परिवादी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हो रहा है। और आप को पुलिस ने अभियुक्त बनाया ही नहीं है इस कारण से आप भी उपस्थित हो कर अदालत को निवेदन नहीं कर सकते। इस तरह के मामलों में जब तक अदालत प्रसंज्ञान न ले ले तब तक संभावित अभियुक्त को सुनवाई का अधिकार नहीं होता। यही कारण है कि इस तरह के मामलों में देरी होती रहती है, कोई समय सीमा नहीं है। जब तक उच्च न्यायालय इस तरह के मामलों में यह तय न कर दे कि अंतिम प्रतिवेदनों के मामले में परिवादी को तामील होने के बाद की पहली तारीख से एक निश्चित अवधि में मसलन तीन माह में आदेश पारित किया जाना अनिवार्य न कर दिया जाए तब तक यह स्थिति बनी रहेगी।

ब आप को समझ आ गया होगा कि न्यायालय परिवादी को समय और अवसर नहीं दे रहा है। बल्कि अपने कार्याधिक्य के कारण उस मामले में आदेश पारित नहीं कर रहा है। यदि आप कर सकें तो इतना करें कि न्यायालय को मौखिक रूप से निवेदन करें कि इस मामले में अंतिम प्रतिवेदन पर आदेश पारित कर दिया जाए तो भी काम चल जाएगा।

स तरह के मामले में यदि अंतिम प्रतिवेदन स्वीकार कर लिया जाता है तो आप को कुछ नहीं करना है। परिवादी को यदि उस आदेश से कोई आपत्ति हुई तो वह आदेश की तिथि से 90 दिनों में सेशन न्यायालय को निगरानी याचिका प्रस्तुत कर सकता है। यदि आप के विरुद्ध प्रसंज्ञान लिया जाता है तो आप को सम्मन जारी होंगे। आप को उक्त मामले का सम्मन मिलने से 90 दिनों की अवधि में आप उस आदेश के विरुद्ध सेशन न्यायालय को निगरानी याचिका प्रस्तुत कर सकते हैं। जब अन्तिम प्रतिवेदन स्वीकार हो जाए तब आप अन्तिम प्रतिवेदन व न्यायालय के आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपियों के साथ दुर्भावना पूर्ण अभियोजन के लिए अपराधिक और दीवानी मुकदमे परिवादी के विरुद्ध संस्थित कर सकते हैं। ध्यान रखें। अन्तिम प्रतिवेदन और संलग्न दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतिलिपियाँ अभी प्राप्त कर लें और न्यायालय के आदेश की प्रतिलिपि भी जल्दी प्राप्त करें। अन्तिम प्रतिवेदन स्वीकार कर लेने के साथ ही पत्रावली वापस पुलिस को लौटा दी जाती है, बाद में अन्तिम प्रतिवेदन की प्रतियाँ प्राप्त करने में परेशानी हो सकती है।

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