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अपनी वसीयत जीवनकाल में कभी भी परिवर्तित की जा सकती है।

वसीयत कब करेंसमस्या-

अंकित वर्मा ने कसारावाड, खरगौन, मध्य प्रदेश से समस्या भेजी है कि-

मेरे पिता के कुल चार भाई हैं, तीन भाई बाहर शहर में रहते हैं वे तीनों अपने मकान में रहते थे जो चारों भाइयों के द्वारा कमायी गयी पूंजी का है। उस में से एक भाई को उन्होंने मकान से निकाल दिया था अब वे किराये के मकान में रहते हैं। मेरे पिता और हम गांव में रहते हैं। हम जिस मकान में रहते हैं वो मेरी दादी के नाम पर है, मेरी दादी भी हमारे साथ रहती है। उन की उम्र हो चुकी है। अब मेरे पिता और उनका भाई जो किराये के मकान में रहते है वो ये मकान अपने नाम करवाना चाहते हैं। वो ये मकान उनके दोनों भाइयो की बिना सहमति के कैसे करवा सकते हैं?

समाधान-

हर में आप का जो मकान है जिस में दो भाई रहते हैं उस के बारे में तो आप के पिता और चाचा कुछ करना नहीं चाहते। वे चाहते हैं कि गाँव में जो मकान दादी के नाम है वह आप के पिता और शहर में किराए पर रहने वाले चाचा को मिल जाए।

स का सर्वोत्तम तरीका यह है कि आप के पिता और ये वाले चाचा दादी से अपने नाम गाँव वाले मकान का दान पत्र निष्पादित करवा कर उस का पंजीयन उप पंजीयक के कार्यालय में करवा लें। इस से गाँव का मकान उन दोनो के स्वामित्व में तुरन्त आ जाएगा। लेकिन इस में गाँव के मकान की वर्तमान वैल्युएशन के आधार पर स्टाम्प ड्यूटी व पंजीयन खर्च देना होगा। लेकिन यह सब से अधिक सुरक्षित तरीका है।

दि वे दोनों इस खर्च को बचाना चाहते हैं तो दादी से उक्त गाँव के मकान को अपने नाम वसीयत करवा कर उस वसीयत का पंजीयन उप पंजीयक के कार्यालय में करवा लिया जाए। इस से दादी के जीवनकाल के उपरान्त यह गाँव वाले मकान पर दोनों भाइयों का स्वामित्व स्थापित हो जाएगा। लेकिन दादी इस वसीयत को अपने जीवन काल में कभी भी बदल सकती है या निरस्त करवा सकती है। इस कारण यह उतना सुरक्षित तरीका नहीं है।

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