अमानत को निज-उपयोग में ले लेना अमानत में खयानत का अपराध है।
समस्या-
करनाल, हरियाणा से अमरजीत ने पूछा है-
मेरे पास किसी से कुछ पैसे अमानती तौर पर रखे हुए हैं। मैंने उन्हें लिखित में दे रखा है कि- ” मैंने राजीव (काल्पनिक नाम) से 50,000.00 रूपये अमानती तौर पर लिए है और ये मेरे पास अब नहीं होने के कारन में इन्हें वापिस नहीं कर सकता लकिन मैं ये मेरे पास होने पर राजीव को लौटा दूंगा”। इस दस्तावेज पर मेरे, राजीव तथा दो गवाहों के हस्ताक्षर हैं। मैं इस बारे में कुछ बातें जानना चाहता हूँ-
1- क्या भुगतान के समय राजीव मुझ से ब्याज की मांग कर सकता है?
2- क्या राजीव मुझ पर किसी एक तारीख को पैसे लौटने का दबाव बना सकता है?
3-मेरे लिए पैसे लौटाने का कितना समय है?
4-मुझे पैसे किस तरीके से वापिस करने चाहिए नगद या चेक और भुगतान के समय क्या सावधानी बरतनी चाहिए ताकि वह कल को मुझ से दोबारा पैसे न वसूल सके।
समाधान-
आप ने स्वयं यह स्वीकार किया है कि आप के पास राजीव की उक्त 50,000.00 रुपए की राशि अमानत के बतौर रखी है। अमानत का अर्थ अमानत होता है। उसे सुरक्षित रखना होता है। यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की अमानत को व्यक्तिगत उपयोग में ले लेता है तो यह धारा 405 भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत एक अपराध है जो धारा 406 के अंतर्गत दंडनीय है। ये दोनों उपबंध निम्न प्रकार है-
405. आपराधिक न्यासभंग–जो कोई सम्पत्ति या सम्पत्ति पर कोई भी अखत्यार किसी प्रकार अपने को न्यस्त किए जाने पर उस सम्पत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग कर लेता है या उसे अपने उपयोग में संपरिवर्तित कर लेता है या जिस प्रकार ऐसा न्यास निर्वहन किया जाना है, उसको विहित करने वाली विधि के किसी निदेश का, या ऐसे न्यास के निर्वहन के बारे में उसके द्वारा की गई किसी अभिव्यक्त या विवक्षित वैघ संविदा का अतिक्रमण करके बेईमानी से उस सम्पत्ति का उपयोग या व्ययन करता है, या जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति का ऐसा करना सहन करता है, वह “आपराधिक न्यास भंग” करता है ।
1[2[स्पष्टीकरण 1ट–जो व्यक्ति 3[किसी स्थापन का नियोजक होते हुए, चाहे वह स्थापन कर्मचारी भविष्य-निधि और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम, 1952 (1952 का 17) की धारा 17 के अधीन छूट प्राप्त है या नहीं, तत्समय प्रवॄत्त किसी विधि द्वारा स्थापित भविष्य-निधि या कुटुंब पेंशन निधि में जमा करने के लिए कर्मचारी-अभिदाय की कटौती कर्मचारी को संदेय मजदूरी में से करता है उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसके द्वारा इस प्रकार कटौती किए गए अभिदाय की रकम उसे न्यस्त कर दी गई है और यदि वह उक्त निधि में ऐसे अभिदाय का संदाय करने में, उक्त विधि का अतिक्रमण करके व्यतिक्रम करेगा तो उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसने यथापूर्वोक्त विधि के किसी निदेश का अतिक्रमण करके उक्त अभिदाय की रकम का बेईमानी से उपयोग किया है ।]
4[स्पष्टीकरण 2–जो व्यक्ति, नियोजक होते हुए, कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 (1948 का 34) के अधीन स्थापित कर्मचारी राज्य बीमा निगम द्वारा धारित और शासित कर्मचारी राज्य बीमा निगम निधि में जमा करने के लिए कर्मचारी को संदेय मजदूरी में से कर्मचारी-अभिदाय की कटौती करता है, उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसे अभिदाय की वह रकम न्यस्त कर दी गई है, जिसकी उसने इस प्रकार कटौती की है और यदि वह उक्त निधि में ऐसे अभिदाय के संदाय करने में, उक्त अधिनियम का अतिक्रमण करके, व्यतिक्रम करता है, तो उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसने यथापूर्वोक्त विधि के किसी निदेश का अतिक्रमण करके उक्त अभिदाय की रकम का बेईमानी से उपयोग किया है ।]
दृष्टांत
(क) क एक मॄत व्यक्ति की विल का निष्पादक होते हुए उस विधि की, जो चीजबस्त को विल के अनुसार विभाजित करने के लिए उसको निदेश देती है, बेईमानी से अवज्ञा करता है, और उस चीजबस्त को अपने उपयोग के लिए विनियुक्त कर लेता है । क ने आपराधिक न्यासभंग किया है ।
(ख) क भांडागारिक है । य यात्रा को जाते हुए अपना फर्नीचर क के पास उस संविदा के अधीन न्यस्त कर जाता है कि वह भांडागार के कमरे के लिए ठहराई गई राशि के दे दिए जाने पर लौटा दिया जाएगा । क उस माल को बेईमानी से बेच देता है । क ने आपराधिक न्यासभंग किया है ।
(ग) क, जो कलकत्ता में निवास करता है, य का, जो दिल्ली में निवास करता है अभिकर्ता है । क और य के बीच यह अभिव्यक्त या विवक्षित संविदा है कि य द्वारा क को प्रेषित सब राशियां क द्वारा य के निदेश के अनुसार विनिहित की जाएगी । य, क को इन निदेशों के साथ एक लाख रुपए भेजता है कि उसको कंपनी पत्रों में विनिहित किया जाए । क उन निदेशों की बेईमानी से अवज्ञा करता है और उस धन को अपने कारबार के उपयोग में ले आता है । क ने आपराधिक न्यासभंग किया है ।
(घ) किंतु यदि पिछले दृष्टांत में क बेईमानी से नहीं प्रत्युत सद्भावपूर्वक यह विश्वास करते हुए कि बैंक आफ बंगाल में अंश धारण करना य के लिए अधिक फायदाप्रद होगा, य के निदेशों की अवज्ञा करता है, और कंपनी पत्र खरीदने के बजाए य के लिए बैंक आफ बंगाल के अंश खरीदता है, तो यद्यपि य को हानि हो जाए और उस हानि के कारण, वह क के विरुद्ध सिविल कार्यवाही करने का हकदार हो, तथापि, यतः क ने, बेईमानी से कार्य नहीं किया है, उसने आपराधिक न्यासभंग नहीं किया है ।
(ङ) एक राजस्व आफिसर, क के पास लोक धन न्यस्त किया गया है और वह उस सब धन को, जो उसके पास न्यस्त किया गया है, एक निश्चित खजाने में जमा कर देने के लिए या तो विधि द्वारा निर्देशित है या सरकार के साथ अभिव्यक्त या विवक्षित संविदा द्वारा आबद्ध है । क उस धन को बेईमानी से विनियोजित कर लेता है । क ने आपराधिक न्यासभंग किया है ।
(च) भूमि से या जल से ले जाने के लिए य ने क के पास, जो एक वाहक है, संपत्ति न्यस्त की है । क उस संपत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग कर लेता है । क ने आपराधिक न्यासभंग किया है ।
406. आपराधिक न्यासभंग के लिए दंड–जो कोई आपराधिक न्यासभंग करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
इस तरह आप ने जो कुछ लिख कर राजीव को दिया है उस में अमानत होना और उसे अपने स्वयं के उपयोग में परिवर्तित कर लेने की आत्मस्वीकृति दी हुई है। आप ने यह भी लिखा है कि अभी मैं लौटा नहीं सकता लेकिन मेरे पास होने पर लौटा दूंगा। इस तरह आप ने धारा 406 भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत अपराध स्वीकार किया हुआ है। राजीव आप पर अमानत में खयानत अर्थात अपराधिक न्यास भंग के मामले में पुलिस को या न्यायालय को परिवाद प्रस्तुत कर सकता है जिस में धारा 406 भा.दं.संहिता का मामला दर्ज किया जा सकता है। आप की गिरफ्तारी हो सकती है और आप के विरुद्ध मुकदमा चलाया जा सकता है जिस में आप को सजा हो सकती है।
लेकिन इस का बचाव भी है। बचाव यह है कि अपराध आप ने किसी एक व्यक्ति के प्रति किया है जिस ने उसे क्षमा कर दिया है। राजीव ने उक्त लिखत के माध्यम से आप के साथ एक संविदा की है जिस के द्वारा अमानत को उधार में बदल दिया गया है तथा उस राशि को लौटाने के लिए तब तक की छूट आप को दी है जब तक कि उतना पैसा आप के पास न हो। यदि आप के विरुद्ध कोई फौजदारी मुकदमा दर्ज हो ही जाए तो उक्त तर्क के आधार पर न्यायालय आप को जमानत प्रदान कर देगा। इसी आधार पर प्रथमसूचना रिपोर्ट भी रद्द हो सकती है।
वह आप से ब्याज नहीं ले सकता। क्यों कि इस लिखत में ब्याज लेने की कोई बात नहीं है। वह आप से रुपए मांग सकता है और कह सकता है कि आप निर्धारित समय में उक्त रुपया लौटाएँ अन्यथा वह आप पर धारा 406 का परिवाद करेगा और रुपया वसूलने की कार्यवाही अलग से करेगा।
मेरी आप को सलाह है कि इस जिम्मेदारी को जितना जल्दी हो आप पूरा कर दें। राजीव का पैसा लौटा दें और उस की रसीद ले लें तथा आप के द्वारा लिखा गया उक्त दस्तावेज अवश्य वापस ले लें। रसीद और उक्त दस्तावेज लौटाए जाने की स्थिति में रुपये का भुगतान किसी भी प्रकार से चैक या नकद किया जा सकता है। पर यदि आप यह भुगतान अकाउण्ट पेयी चैक से करें तो सब से बेहतर है। यदि वह अकाउंट पेयी चैक से भुगतान प्राप्त करने को तैयार न हो तो उसे बैंक ड्राफ्ट से भुगतान कर सकते हैं।
परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद अन्तर्गत धारा ४०६ भा.दं.सं. को किन आधारों पर वापस किया जा सकता है, कोई रूलिंग बताने का कष्ट करें !
अभियुक्त द्वारा भविष्य निधि के अनुदान कि राशि काटकर भविष्य निधि कार्यालय को जमा न करा कर अमानत में खयानत कारित की !
अब परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद अन्तर्गत धारा ४०६ भा.दं.सं. को किन आधारों पर वापस किया जा सकता है, कोई रूलिंग बताने का कष्ट करें !
सर हम ३ भाई २ बहने ह. हमारे भाई ने हमारे से धोखे से हक त्याग करवा लिया
अब बह इस paropti को बेचकर अकेला ही पूरी रकम ले लिया ह,
अब हमने कोर्ट में भी मामला ले गए पर कोर्ट ने हमारा दावा खरीच कर दिया की यह जमीं jda में एक्वायर्ड ह, हमने कोई रकम भी नहीं ली ह, हम ये चाहते ह, की हमें हमारे हिस्से की जायजाद मिल जाये. और हमारे हिस्से की जमीं को कोई खरीद न सके हम हक त्याग को कांसिल करवाना चाहते ह, हमें उपाई बताने की किरपा करे.
अति धन्यवाद श्रीमान जी में उसे पैसे लौटने को तैयार हूँ लकिन वो मुझ से पैसा कब मन सकता है जबकि उसने कूद सकिकर किया हुआ की ये पैसे मेरे पास होने पास ही लोटा जायेंगे. मेरे खिलाफ मुकदमा होने पर क्या में अदालत से कुछ समय मांग सकता हूँ.? क्या अदालत मुझे ये समय देगी?
मेरी गिरफ्तारी को रोकने के लिए मैं क्या कर सकता हूँ ?