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अलग अलग धर्म के पति-पत्नी की संतान किस विधि से शासित होगी?

महेश कुमार वर्मा ने कुछ जानकारियाँ स्पष्ट करने का आग्रह किया है —

1. सामान्यतः किसी का जन्म जिस धर्म के परिवार में होता है उसका भी वही धर्म माना जाता है.। पर बालिग होने या कभी भी कोई व्यक्ति अपना धर्म बदलना चाहता है तो इसकी क्या विधि है स्पष्ट करें?
2. भारतवर्ष एक धर्म-निरपेक्ष देश है तथा यहाँ के संविधान / कानून किसी व्यक्ति विशेष को भी किसी खास धर्म का न होकर धर्म निरपेक्ष होने की स्वतंत्रता देती है.  यानी भारतीय कानून के अनुसार कोई व्यक्ति विशेष भी धर्म-निरपेक्ष हो सकता है.  कृपया बताएं कि कोई अपने को धर्म-निरपेक्ष मानता है तो क्या उसे इसकी विधिवत घोषणा करनी पड़ेगी?  यदि हाँ तो इसकी प्रक्रिया क्या है? स्पष्ट करें।
3. भारत में अंतरजातीय शादी को भी मान्यता मिली है।  साथ ही गैर धर्म के व्यक्ति/साथी से भी शादी की मान्यता है।  कृपया स्पष्ट करें कि गैर धार्मिक व्यक्ति / साथी से शादी के बाद क्या कानूनन दोनों अलग-अलग धर्म के मानने वाले रह सकते हैं?  शादी के बाद उनका धर्म क्या रहेगा?  आप यह भी स्पष्ट करें कि इस प्रकार के दंपत्ति से उन्पन्न संतान को किस धर्म का माना जायेगा और उस संतान को बालिग होने पर उसे किस प्रकार अपना धर्म स्पष्ट / बदलना होगा?
 उत्तर —
हेश कुमार वर्मा के प्रश्न  महत्वपूर्ण हैं। उन का यह कथन सही है कि  प्राथमिक रूप से किसी भी व्यक्ति का धर्म उस के जन्मदाता माता-पिता के धर्म से ही निश्चित होता है। लेकिन यह भी सही है कि कोई भी व्यक्ति वयस्क होने पर स्वैच्छा से किसी भी धर्म को अंगीकार कर सकता है और उस धर्म की दीक्षा ले कर अपना धर्म परिवर्तन कर सकता है। प्रत्येक धर्म में उस धर्मं को अंगीकार करने के लिए परंपरागत नियम हैं, उन की पालना कर धर्म परिवर्तन संभव है। यह भी हो सकता है कि कोई व्यक्ति किसी भी धर्म में न रहे। किसी भी वयस्क व्यक्ति के लिए धर्म उस की मान्यता और आचरण के मामले में नितांत व्यक्तिगत मामला है। 
मस्या तब उत्पन्न होती है जब व्यक्तिगत विधि से शासित होने वाले मामलों के प्रश्न उठ खड़े होते हैं, जैसे वसीयत, उत्तराधिकार, विवाह, विवाह विच्छेद आदि। मैं अपनी पिछली पोस्ट शून्य विवाह और हिन्दू विवाह अधिनियम से शासित व्यक्ति में स्पष्ट कर चुका हूँ कि  हिन्दू विवाह अधिनियम से कौन व्यक्ति शासित होते हैं। इस पोस्ट में स्पष्ट किया गया था…
ग- प्रत्येक उस व्यक्ति पर जो भारत में निवास करते हैं और जो धर्म से मुस्लिम, ईसाई, पारसी और यहूदी नहीं हैं; लेकिन इस अधिनियम के प्रावधान उन व्यक्तियों पर प्रभावी नहीं होंगे जो यह साबित कर देंगे कि उन पर परंपरा और प्रयोग से इस अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं होते हैं।
स तरह जो लोग धर्म से मुस्लिम, ईसाई, पारसी और यहूदी नहीं हैं लेकिन भारत में पैदा हुए हैं वे सभी हिन्दू विवाह अधिनियम से शासित होंगे जब तक कि वे स्वयं यह प्रमाणित नहीं कर देते है कि परंपरा और प्रयोग से वे हिन्दू विधि से शासित नहीं होते। इस
तरह हिन्दू विवाह विधि का क्षेत्र व्यापक है। जो लोग कहते हैं कि वे किसी धर्म में विश्वास नहीं करते वे भी विवाह की विधि के लिए हिन्दू विवाह अधिनियम से ही शासित होंगे। 
र्म निरपेक्षता एक शब्द है जो राज्य के लिए संविधान में उपयोग में लिया गया है। किसी धर्म निरपेक्ष राज्य का अर्थ है उस का किसी धर्म के साथ विशिष्ट संबंध नहीं है और सभी धर्मावलंबियों के साथ वह समान व्यवहार करता है। यदि भारत में जन्म लेने वाला कोई भी व्यक्ति यह कहता है कि वह किसी भी धर्म को नहीं मानता है तो भी वह हिन्दू विधि से ही शासित होगा। 
अंतरजातीय विवाह में कोई बाधा नहीं है यदि विवाह करने वाले पति-पत्नी एक ही धर्म को मानने वाले हैं तो  वे अपनी व्यक्तिगत विधि से शासित होंगे। समस्या तब उत्पन्न होगी जब पति-पत्नी दोनों अलग-अलग धर्मों के हैं। यदि वे अपना धर्म परिवर्तन नहीं करना चाहते हैं तो वे विशिष्ट विवाह अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार विवाह कर सकते हैं। यदि उन में से कोई एक अपना धर्म परिवर्तन कर लेता है तो फिर वे उस व्यक्तिगत विधि से शासित होंगे जिस धर्म के वे दोनों हो गए हैं। 
दि कोई विशिष्ट विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह करता है तो उन की संताने भी भारत में पैदा होने के कारण हिन्दू विवाह विधि से ही शासित होंगी। यदि कोई यह कहता है कि वह हिन्दू विधि से शासित नहीं होता है तो उसे स्वयं यह साबित करना होगा कि परंपरा और प्रयोग से वह हिन्दू विधि से शासित नहीं होता है। 
मुझे विश्वास है कि महेश कुमार वर्मा की शंका का समाधान हो गया होगा।
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