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आत्मरक्षा के आधार पर प्रतिरक्षा करना अत्यन्त कठिन ही नहीं, प्राय: असंभव ही है।

समस्या-

सिरोही, राजस्थान से मांगीलाल चौहान ने पूछा है-

मैं अपनी पत्नी से तलाक ले रहा हूँ।  जिस से उस के घर वाले मेरी जान के दुश्मन बन गए हैं। ऐसी स्थिति में किसी दिन मेरा सामना उस के घर वालों से हो गया और मेरे ऊपर हमला कर दें तो मैं अपने बचाव के लिए किस हद तक कोशिश सकता हूँ? या इस तरह के झगड़े में फिर दोनों में से किसी एक की मृत्यु हो जाए तो कौन सा केस बनेगा? मुझे अपने बचाव के लिए क्या करना चाहिए?

समाधान-

PRIVATE DEFENCEदि आप अपनी पत्नी से तलाक ले रहे हैं, तो तलाक का कोई वाजिब कारण होते हुए भी उस के घर वालों का गुस्सा होना स्वाभाविक है।  ऐसे मामलों में झगड़ा तो हो सकता है लेकिन किसी की मृत्यु हो जाए ऐसा नहीं लगता।  फिर भी आप को यदि ऐसा अंदेशा है कि आप के पत्नी के परिजन आप पर हमला कर सकते हैं तो निश्चित ही आप के पास ऐसे  तथ्य होंगे जिन के आधार पर आप को ऐसा अंदेशा है। सब से पहले तो आप को पुलिस को अपने अंदेशे की सूचना  लिखित में दे देनी चाहिए और उस की प्राप्ति स्वीकृति भी आप को रख लेनी चाहिए। यदि पुलिस वाले आप को ऐसी सूचना की रसीद न दें तो आप ऐसी सूचना की एक प्रतिलिपि अपने पास रखते हुए इलाके के पुलिस अधीक्षक को रजिस्टर्ड ए.डी. डाक से ऐसी सूचना प्रेषित कर सकते हैं।  पुलिस इस मामले में ऐसी कार्यवाही कर सकती है जिस से दोनों पक्षों के बीच झगड़े की नौबत न आए।  आप स्वयं भी किसी माध्यम से अपने ससुराल वालों को यह स्पष्ट कर सकते हैं कि आप के पास तलाक के पर्याप्त आधार हैं जिस के कारण आप ने तलाक के लिए आवेदन किया है। यदि अदालत उन आधारों को उचित मानती है तो तलाक होगा नहीं तो तलाक होगा ही नहीं। इस में किसी के नाराज होने और झगड़ा करने की क्या बात है?

दि किसी व्यक्ति पर हमला होता है तो उस व्यक्ति को अपनी आत्मरक्षा का पूरा अधिकार है।  आत्मरक्षा के लिए उठाए गया कदम ऐसा नहीं होना चाहिए जो कि आत्मरक्षा की आवश्यकता से अधिक हो। यह दूसरी बात है कि आत्मरक्षा के लिए उठाए गए कदम से किसी की मृत्यु भी हो सकती है। कौन सा कदम आत्मरक्षा का है यह तो तथ्यों पर ही निर्भर करता है।

दि किसी झगड़े में किसी की मृत्यु हो जाती है तो प्रथम दृष्टया तो हत्या का ही मुकदमा बनेगा। लेकिन जिस व्यक्ति के विरुद्ध हत्या के आरोप में मुकदमा चलाया जाएगा वह यह प्रतिरक्षा ले सकता है कि उसी पर हमला हुआ था। आत्मरक्षा हेतु उठाए कदम से यदि किसी की मृत्यु हो गई है तो उस में उस का दोष नहीं है।  यदि न्यायालय तथ्यों के आधार पर पाता है कि अभियुक्त का इरादा किसी को मारने का नहीं था और उस के द्वारा उठाया गया कदम केवल आत्मरक्षा के लिए था तो वह अभियुक्त को दोषमुक्त भी कर सकता है।  बहुधा हत्या के प्रकरण में आत्मरक्षा की प्रतिरक्षा ली जाती है पर अधिकांशतः यह मिथ्या होती है। इस कारण अधिकांश मामलो में इस प्रतिरक्षा को न्यायालय द्वारा रद्द कर दिया जाता है। आत्मरक्षा के आधार पर प्रतिरक्षा करना अत्यन्त कठिन ही नहीं, प्राय: असंभव ही है।

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