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ओवरराइट चैक का भुगतान करना बैंक का उपभोक्ता की सेवा में दोष है

 
 पीलीभीत (उ.प्र.) से वरुण सक्सेना ने पूछा है-
 
 
मेरा एक खाता पंजाब एण्ड सिंध बैंक की पीलीभीत (उ.प्र.) शाखा में है मैं ने अपने खाते में रुपए 7850 जमा किए थे, लेकिन जब मैं 5000 रुपए निकालने गया तो पाया कि मेरे खाते में केवल 3650 रुपए ही हैं। मैं ने अपने खाते की विगत बैंक से निकलवाई तो पता लगा कि मैं ने अपने एक ग्राहक को एक हजार रुपए का चैक दिया था, उस ग्राहक ने उसे ओवरराइटिंग कर के चार हजार का बना लिया और बैंक ने ओवर राइटिंग स्पष्ट होते हुए भी 4000 रुपए का उस ग्राहक को भुगतान कर दिया। मैं उस ग्राहक को जानता नहीं हूँ। मैं ने चैक को निकलवा कर देखा तो उस में बहुत ओवरराइटिंग हो रही है जो साफ नजर आ रही है। यदि मैं स्वयं भी इस तरह का चैक बैंक में प्रस्तुत करूँ तो बैंक मुझे उस चैक पर राशि न देकर दूसरा चैक देने या फिर ओवरराइटिंग पर प्रतिहस्ताक्षर करने को कहता है। बैंक का मैनेजर कहता है कि वह कुछ नहीं कर सकता। मैं जरूरतमंद हूँ, यह नुकसान बर्दाश्त नहीं कर सकता। मुझे अपना पैसा वापस लेने के लिए क्या करना चाहिए?

 सलाह –
 
रूण जी की समस्या ऐसी है जो किसी भी बैंक के किसी भी उपभोक्ता के साथ घट सकती है। यहाँ तो केवल मात्र 3000 रुपए का मामला है। लेकिन यह मामला 30000 या 300000 रुपयों का भी हो सकता है। इस मामले में स्पष्ट रूप से बैंक की गलती या लापरवाही है। यह भी हो सकता है कि यह गलती या लापरवाही न हो कर जानबूझ कर की गई धोखाधड़ी हो और इस मामले में बैंक का कोई कर्मचारी भी सम्मिलित रहा हो। पिछले कुछ वर्षों से बैंकों के पास काम बढ़ा है लेकिन उस के अनुपात में श्रमशक्ति का नियोजन नहीं किया गया है। इस कारण से बैंक कर्मचारियों पर दबाव बढ़ा है और वे तनाव में रहते हैं हो सकता है बैंक में कार्याधिक्य होने और भुगतान करने वाले कर्मचारी ने काम के दबाव से उत्पन्न तनाव के कारण ऐसा किया हो।यह उसी का नतीजा हो। लेकिन यह तो बैंक का अन्दरूनी मामला है। यदि कर्मचारियों पर काम का इतना दबाव है तो उन्हें अपने प्रबंधन को बाध्य करना चाहिए कि वे कर्मचारियों की संख्या बढ़ाएँ। 
रुण जी बैंक के एक उपभोक्ता हैं। उन के साथ बैंक द्वारा सेवा में दोष किया गया है। इस दोष की शिकायत जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच के समक्ष प्रस्तुत की जा सकती है। इस के लिए वरूण जी को सब से पहले अपनी शिकायत बैंक के शाखा प्रबंधक को दे कर उस की प्राप्ति स्वीकृति शिकायत की प्रतिलिपि पर प्राप्त करनी चाहिए। यदि बैंक इस तरह की प्राप्ति स्वीकृति देने से इन्करा करे तो यह दूसरा सेवा दोष होगा। तब वरूण जी को बैंक के क्षेत्रीय प्रबंधक को लिखित में शिकायत रजिस्टर्ड ए.डी. डाक से प्रेषित करनी चाहिए। यदि उन की शिकायत बैंक दूर नहीं करता है और उन के खाते में 3000 रुपए वापस नहीं करता है तो उन्हें बैंक के विरुद्ध उपभोक्ता अदालत में अपना परिवाद प्रस्तुत करना चाहिए। इस तरह के मामलों में उपभोक्ता न्यायालयों ने न केवल उपभोक्ता का धन वापस दिलाया है अपितु परेशानी, मानसिक
संताप और परिवाद व्यय के रूप में क्षतिपूर्ति भी दिलायी है।
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