औद्योगिक कर्मकार को नौकरी से हटाये जाने के तरीके
|समस्या-
किसी स्थाई या स्थाई श्रमिक को उस का नियोजक (कंपनी) किस क़ानून का उपयोग करके नौकरी से निकाल सकता है, या किस अपराध में उसे सेवाच्युति का दंड दे सकता है? मुझे इस से सम्बन्धितप्रमुख श्रमिक कानूनों की जानकारी दें जिस से मैं यह जान सकूँ कि श्रमिकों के हित में क्या क़ानूनी प्रावधान हैं?
-हीरा लाल यादव, इंदौर, मध्य प्रदेश
समाधान-
जहाँ भी किसी उद्योग में श्रमिक नियोजित किए जाते हैं वहाँ औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 प्रभावी होता है जो श्रमिक और नियोजक के संबंधों को शासित करता है। कोई भी व्यक्ति जो श्रम विवादों में रुचि रखता है और श्रमिकों के हित में काम करना चाहता है उसे सब से पहले इस अधिनियम का गंभीरता से अध्ययन करना चाहिए। इस अधिनियम में बारह अध्याय और पाँच अनुसूचियाँ हैं। इन में से अध्याय 5-ए तथा 5-बी श्रमिकों का नियोजन समाप्त करने के विषय में हैं। इस के अतिरिक्त अध्याय 1 की धारा 2 (ओओ) का अध्ययन करना आवश्यक है जिस में छँटनी शब्द को परिभाषित किया गया है। हम सब से पहले इसी छँटनी शब्द की परिभाषा पर विचार करते हैं।
छँटनी की परिभाषा अधिनियम में निम्न प्रकार दी गई है-
[(oo) “Retrenchment” means the termination by the employer of the service of a workman for any reason whatsoever, otherwise than as a punishment inflicted by way of disciplinary action but does not include-
(a) Voluntary retirement of the workman; or
(b) Retirement of the workman on reaching the age of Superannuation if the contract of employment between the employer and the workman concerned contains a stipulation in that behalf; or
[(bb) Termination of the service of the workman as a result of the non-renewal of the contract of employment between the employer and the workman concerned on its expiry or of such contract being terminated under a stipulation in that behalf contained therein; or]
(c) Termination of the service of a workman on the ground of continued ill-health;
इस परिभाषा में कहा गया है कि-
(ओओ) ‘छँटनी’ का अर्थ नियोजक द्वारा एक कर्मकार की किसी भी कारण से की गई सेवा समाप्ति है, लेकिन उस में अनुशासनिक कार्यवाही के माध्यम से दंड स्वरूप दी गई सेवा समाप्ति सम्मिलित नहीं है और उस के सिवा निम्न चीजें भी सम्मिलित नहीं हैं-
(क) कर्मकार द्वारा स्वेच्छा से प्राप्त की गई सेवा निवृत्ति; .या
(ख) यदि कर्मकार और नियोजक के मध्य हुई सेवा संविदा में उपबंध हो तो एक निश्चित उम्र पूर्ण कर लेने के कारण हुई सेवा निवृत्ति; या
(खख) किसी सेवा संविदा की अवधि समाप्त होने पर संविदा के नवीनीकरण न होने या संविदा में अंकित किसी कारण से हुई कर्मचारी की सेवा समाप्ति; या
(ग) लगातार बीमार रहने के कारण की गयी कर्मकार की सेवा समाप्ति।
इस तरह एक अकेले यह परिभाषा बताती है कि किसी उद्योग में नियोजित श्रमिक की सेवाएँ समाप्त करने या नौकरी से निकाले जाने के कितने तरीके हो सकते हैं? ये निम्न प्रकार हैं-
1. यदि कोई कर्मकार स्वयं ही स्वेच्छा से नौकरी छोड़ सकता है अर्थात त्याग-पत्र दे कर अपनी सेवाएँ समाप्त कर सकता है। यह भी हो सकता है कि कोई कर्मकार बिना सूचना दिए नौकरी पर न आए, या फिर अवकाश पर जाए और एक लंबे समय तक नौकरी पर न लौटे, तब भी कुछ परिस्थितियों में यह समझा जा सकता है कि कर्मकार स्वैच्छा से नौकरी छोड़ कर चला गया है। ऐसी सेवा समाप्ति छँटनी नहीं होगी।
2. अक्सर सेवा संविदा में या औद्योगिक संस्थान के स्थाई आदेशों या प्रारूप स्थाईआदेशों में सेवा निवृत्ति की आयु के बारे में उपबंध होता है। इस उपबंध के द्वारा निश्चित की गई आयु प्राप्त कर लेने पर उसे सेवा निवृत्त कर दिया जाता है। ऐसी सेवानिवृत्ति भी छँटनी के बाहर है।
3. प्रत्येक कर्मकार को सेवा आरंभ किए जाने के समय, उसे पद पर स्थाई किए जाने के समय या पदोन्नति होने पर नियुक्ति पत्र दिए जाते हैं। अनेक उद्योगों में ऐसे नियुक्तिपत्र कर्मकार को दिए ही नहीं जाते लेकिन उन पर हस्ताक्षर करवा कर नियोजक अपने पास रख लेते हैं। ये नियुक्ति पत्र अक्सर अंग्रेजी में होते हैं। कर्मकार को पता ही नहीं होता है कि उस से किसी नियुक्तिपत्र पर हस्ताक्षर करवाए गए हैं। कर्मकार द्वारा हस्ताक्षर युक्त यह नियुक्ति पत्र जो नियोजक के पास होता है वास्तव में सेवा संविदा है। यदि इस संविदा में लिखा हैा कि यह नियुक्ति किसी निश्चित तिथि तक के लिए है या निश्चित अवधि के लिए है या फिर उस में लिखा है कि किसी घटना के घटित होने पर सेवा समाप्त हो जाएगी। वैसी स्थिति में उस निश्चित तिथि या अवधि या घटना के घटित हो जाने पर की गई सेवा समाप्ति भी कर्मकार की सेवा समाप्ति का एक तरीका है। आज कल नियोजक इसी का सर्वाधिक उपयोग कर रहे हैं। वे नियोजन देने के समय ही नियुक्ति पत्र में इस तरह की शर्तों पर कर्मकार के हस्ताक्षर ले लेते हैं और कर्मकार को पता भी नहीं होता कि उस की नियुक्ति किसी निश्चित तिथि या अवधि तक के लिए है या फिर किसी खास घटना के घटित होने पर समाप्त हो जाएगी। उसे तो पता भी तभी लगता है जब उस की सेवा समाप्त कर दी जाती है। इस तरह की सेवा समाप्ति भी छँटनी नहीं है।
4. यदि कोई कर्मकार नियोजन में रहते हुए, सेवा संविदा का उलंघन करने का, स्थाई आदेशों या प्रारूप स्थाई आदेशों या सेवा नियमों में उल्लखित कोई दुराचरण करता है तो उसे आरोप पत्र दे कर, नैसर्गिक न्याय सिद्धान्तों के अनुरूप घरेलू जाँच कर के, जाँच में आरोप सिद्ध हो जाने पर उसे दंडित कर सकता है। यदि यह दंड सेवा च्युति या सेवा समाप्ति का दंड है तो ऐसी सेवाच्युति या सेवा समाप्ति भी छँटनी नहीं होगी।
5. यदि कोई कर्मकार लगातार लंबें समय तक बीमार रहे और उस कारण से वह लंबे समय के लिए कर्तव्य पर उपस्थित नहीं हो सके। यदि उपस्थित हो जाए तो भी कर्तव्य करने में असमर्थ रहे तो उसे इस लंबी बीमारी के आधार पर सेवा से पृथक किया जा सकता है। ऐसी सेवा समाप्ति भी छँटनी नहीं होगी।
6. यदि उक्त पाँचों तरह से कर्मकार की सेवा समाप्त न कर के किसी अन्य कारण से उस की सेवा समाप्ति की गई है तो वह छंटनी होगी।
इस तरह किसी भी औद्योगिक संस्थान में किसी कर्मकार की सेवा समाप्ति के यही छह तरीके हैं। इन में से प्रत्येक रीति के बारे में विस्तार से व्याख्या की जा सकती है। लेकिन वह फिर कभी।
मेरा मार्गदर्शन करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद सर ,,,यदि और विस्तार से जानकारी दे तो बड़ी कृपा होगी,,,,