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कस्बे की अदालत में कुछ घंटे

पिछले दिनों नगर से तीस किलोमीटर दूर एक कस्बे की अदालत जाने का अवसर मिला। इस अदालत को भारतीय न्याय व्यवस्था में अदालतों के पिरामिड के भूतल का एक कक्ष कहा जा सकता है। हमारे यहाँ दीवानी अदालतों में सबसे प्राथमिक अदालत कनिष्ठ खंड न्यायाधीश की अदालतें होती हैं। इन्हें 25000 रुपए तक के मूल्यांकन वाले दीवानी मामलों को सुनने का अधिकार होता है। इसी तरह अपराधिक मामलों के लिए न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वितीय श्रेणी की अदालतें सब से प्राथमिक होती हैं, जिन्हें एक वर्ष तक की कैद और पाँच हजार रुपए तक के जुर्माने की सजा सुनाने का अधिकार है। इसी के समान स्तर पर प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालतें हैं, जिन्हें तीन वर्ष तक की कैद और दस हजार रुपए तक के जुर्माने की सजा सुनाने का अधिकार है। राजस्थान में द्वितीय श्रेणी मजिस्ट्रेट की अदालतें हैं ही नहीं। इस तरह सब से नीचे की मंजिल पर केवल न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी की अदालतें स्थापित हैं। आम तौर पर एक ही जज/अदालत को कनिष्ठ खंड न्यायाधीश और प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट के अधिकार दिए हुए हैं और दीवानी तथा फौजदारी दोनों काम एक ही अदालत, जज/मजिस्ट्रेट को करने होते हैं। अदालत का नाम इस तरह होता है – न्यायालय सिविल न्यायाधीश (कनिष्ठ खंड) एवं न्यायिक मजिस्ट्रेट, …(स्थान का नाम)..। जहाँ मुझे जाने का अवसर मिला वहाँ सबसे पहली मंजिल की यही एक अदालत थी।


मैं घर से निकल कर पहले जिला अदालत पहुँचा, वहाँ से तकरीबन सवा ग्यारह बजे अपने एक सहयोगी वकील नंदलाल शर्मा के साथ गंतव्य को रवाना हुआ। कार पार्किंग से निकलती उस से पहले ही बूंदा-बांदी आरंभ हो गई। कोई दो किलोमीटर की दूरी पर रेलवे लाइन पर बना पुल पार किया तब तक बरसात ने तेजी पकड़ ली, और उसी के साथ सड़क का दुर्दशा दर्शन। कोई भी 15 फुट का टुकड़ा ऐसा नहीं मिला जिस पर गड्ढा न हो, सिवाय साढ़े तीन किलोमीटर का एक टुकड़ा जो नए बन रहे ईस्ट-वेस्ट कॉरीडोर के का बन चुका हिस्सा था। पूरे तीस किलोमीटर की यात्रा में एक घंटा लगा। दो माह पूर्व इस दूरी को इसी कार से तय करने में मुझे मात्र बीस मिनट लगे थे। यह सड़क पिछली बरसात के बाद सर्दी के मौसम में ही मरम्मत कर के तैयार की गई थी। पिछली बार मैं ने इस की प्रशंसा की थी। लेकिन इस वर्ष की मामूली बरसात ने सारी मरम्मत उखाड़ दी थी। सारे रास्ते मुझे भय सताता रहा कि कोई टायर पंचर न हो जाए वरना बरसते पानी में टायर बदलना भी भारी पड़ जाएगा।

खैर जैसे तैसे हम अदालत पहुँचे। कस्बे के बाहर ही करीब आधा किलोमीटर पहले एक परिसर में एक राजस्व अदालत थी जिस की इमारत इसी उद्देश्य से बनाई गई थी। इसी परिसर में कुछ सरकारी मकान थे। बाहर खुली जगह में दो-तीन टीन शेड बने थे, जिन के नीचे वकीलों ने अपनी मेज-कुर्सियाँ डाल रखी थीं। जिन की हालत ऐसी थी कि कोई रात को उठा कर ले जाए तो उन के मालिक को अफसोस तो हो, लेकिन बस इतना कि उसी दिन में तमाम हो जाए। एक दिन के उस अफसोस से बचने के प्रतिरक्षात्मक उपाय के रूप में सभी मेज कुर्सियों को टीन शेडों के एंगिल आयरन के पिलर्स से जंजीर से लपेट ताला लगा कर रख छोड़ा था। ताकि उन्हें ले जाने वाले को भी कुछ तो कष्ट उठाना ही पड़े। परिसर के तीन ओर खेत थे और चौथी ओर सड़क, उस के बाद फिर खेत। सड़क और परिसर के बीच की जगह में परिसर के प्रवेश द्वार के दोनों ओर एक एक छप्पर जिन में चाय, गुटखा, तम्बाकू, सिगरेट वगैरहा जीवन के लिए आवश्यक वस्तुएँ उपलब्ध थीं।

बरसात जारी थी इसलिए सभी वकील किसी न किसी टीन शेड़ के नीचे थे। जिन की कुल संख्या पन्द्रह से बीस रही होगी। मुवक्किलों की संख्या उन से कम ही थी। मैं ने कार को ठीक अदालत के सामने पार्क किया।  मैं कार से उतर पाता, इस के पहले ही मेरा मुवक्किल कन्हैया दौड़ कर पास आ खड़ा हुआ। वह वहीं निर्माण विभाग में बेलदार है। मैं उतरते ही अदालत में जाने वाला था जिस से पानी से बच सकूं। लेकिन उस के पहले ही विपक्षी के वकील ने आवाज दे ली। मुझे टीन शेड की ओर जाना पड़ा, जिस के नीचे वे खड़े थे। मैं ने पूछा -आज बहुत कम लोग दिखाई दे रहे हैं, वकील भी कम हैं?

– बरसात के कारण लोग चले गए हैं। वैसे भी अदालत में पाँच-दस मुकदमे ही रह गए हैं, शेष में तारीखें बदली जा चुकी हैं। उन का जवाब था।

मैं ने घड़ी देखी साढ़े बारह बज रहे थे। लंच (मध्यान्ह अवकाश) में एक घंटा शेष था। मैं ने सुझाव दिया – हम लंच से पहले बहस कर लें। उन की राय भी यही थी। वे भी मध्यान्ह अवकाश के उपरांत वहाँ से जाना चाहते थे। मुझे भी इसी में सहूलियत थी कि मैं वापस लौट कर कोटा में कुछ काम निपटा सकता था। उन का मुवक्किल आया नहीं था। विपक्षी वकील, मैं, नन्द जी और मेरा मुवक्किल अदालत में आ गए।

वह एक सरकारी रिहाइश के घर का दस गुणा बीस का कमरा था। जिस की दस गुणा दस जगह में अदालत का मंच था, जिस पर एक बड़ी मेज के पीछे जज और दायीं ओर पेशकार बैठा था। बाँयीं और खड़ा चपरासी उस दिन के निपट चुके मुकदमों की फाइलों पर जज के दस्तखत करवा रहा था। कमरे की बगल की दीवार में एक तीन फुट का दरवाजा था, जिस से हम ने अंदर प्रवेश किया था। जज के ठीक पीछे एक और दरवाजा था, जिस के पीछे इस कमरे से आकार में आधा कमरा दिखाई दे रहा था वहाँ एक मेज, उस पर एक टेलीफोन और कुछ कुर्सियाँ दिखाई दे रहे थे। यह जज का अवकाशागार था। अदालत के कमरे में हवा और प्रकाश के प्रवेश के लिए दो खिड़कियां थीं, एक पेशकार की पीठ पीछे और एक हमारे पीछे कमरे की खाली जगह में। बाहर बादल थे और बारिश भी तो प्रकाश कम ही अदालत में पहुँच रहा था। यहाँ ट्यूबलाइट और पंखा भी था। लेकिन दोनों ही बंद थे, शायद बिजली चली गई थी। हमारे पहुँचते ही पेशकार ने मेरे मुखातिब हो कर पूछा -द्विवेदी जी बहस कर रहे हैं।

-बिलकुल, हम दोनों वकील हाजिर हैं। मैंने जवाब दिया।

पेशकार ने फाइल जज की ओर बढ़ा दी। जज जब फाइलों पर दस्तखत कर निपट चुकी तो उस ने बगल की तीन फाइलों को उठा कर हमारी फाइल के ऊपर रख लिया। पहली फाइल खोल कर पेशकार से कुछ पूछा। पेशकार कुछ बताता इस से पहले ही हमारे पीछे खड़े एक वकील साहब आ कर कुछ बोलने लगे। पांच मिनट में यह फाइल निपटी।  अगले दस मिनटों में दो और, फिर हमारे मुकदमे की फाइल का नम्बर आया।

जज ने पूछा -आज ही बहस करनी है।

हम दोनों ही वकीलों ने कहा -हाँ, मैड़म।

जज खुद से बोली -आज तो रोशनी बहुत कम है, पढने में ही नहीं आ रहा है। हम चुपचाप खड़े रहे।

फिर हम से पूछा –कितना समय लेंगे आप लोग?  लंच के पहले पूरी कर लेंगे बहस?

– बीस मिनट मुझे लगेंगे। मैं ने कहा।

– और पांच-सात मुझे… विपक्षी वकील ने कहा। वह वास्तव में जल्दी घर वापस जाना चाहता था। उस का मुवक्किल आया ही नहीं था।

– देखिए, आधा घंटा में तो बहस पूरी हो नहीं सकेगी।  इसे लंच बाद रख लेते हैं, आप आराम से बहस करना। जज ने कहा। मैं ने मन में सोचा, पूरा दिन यहीं पूरा हुआ। मेरे मुवक्किल ने पहले ही बता दिया था कि जज लंच में कस्बे में अपने घर खाना खाने जाती है। वापस लौटने के बाद अदालत में कम ही बैठती है चैम्बर में ही काम निपटाती रहती है। इस की ताईद विपक्षी वकील भी पहले कर चुका था। जज के इस प्रस्ताव पर विपक्षी वकील मेरी ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देखने लगा। मैं समझ गया कि मुकदमे की सुनवाई को आगे की किसी तारीख तक बढ़ाने की तैयारी है। 

(जारी) 

मुकदमे की तफसील और बहस का कायदा अगली कड़ी में।

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