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जेब में रुपया हो जाए तो आदमी सनक जाता है (2)

पिछले आलेख जेब में रुपया हो जाए तो आदमी सनक जाता है से आगे …

कमिश्नर से यह तय हुआ था कि वह अपरान्ह साढ़े चार बजे फ्लाई-ओवर की तरफ रवाना हो जाएगा। मुझे भी मौके पर रहना था। मैं सवा चार पर उस के पास पहुँचा तब वह मुकदमे के पक्षकारों के लिए नोटिस टाइप करवा रहा था। टाइप होते ही उस ने मुझे सूचना दिए जाने के हस्ताक्षर उस पर कराए। मैं वहाँ से चल दिया। फ्लाई ओवर के नीचे जहाँ टैक्सियों को स्थान मिला था उस के पश्चिम की और करीब 20-25 फुट की दूरी पर करीब चार फुट चौड़ा एक डिवाईडर कम फुटपाथ था वहीं टैक्सी वाले स्टूल-कुर्सियाँ लगा कर बैठे मेरा इंतजार कर रहे थे। उस से ठाक पूरब में चालीस फुट की दूरी पर होटल था जिस का मालिक टैक्सियाँ हटवाने की जिद पर अड़ा था। दूरियाँ नापने के लिए 100 फुट का एक फीता भी वे ले आए थे। फोटोग्राफर की व्यवस्था कर रखी थी। हम ने कमिश्नर का इंतजार किया।

जैसे ही कमिश्नर पहुँचा। वैसे ही होटल का दरवाजा खुला वहाँ से होटल मालिक का वकील होटल मालिक का पुत्र और एक होटल कर्मचारी निकला। होटल मालिक का पुत्र कुछ दूर आ कर वापिस लौट गया। कमिश्नर ने मौका देखा। सारी जगहों का नाप लिया। फोटोग्राफर ने फोटो लिए। वह मानचित्र भी बनाना चाहता था जो वहाँ संभव नहीं था। होटल मालिक के वकील ने होटल के अंदर चलने का सुझाव दिया। हम वहाँ पहुँचे। शीतल जल से हमारा स्वागत हुआ। मेरे साथ टैक्सी यूनियन के दो लोग और थे। हम ने कहा कमिश्नर मानचित्र आराम से अपने दफ्तर में जा कर बनाए। हम बने हुए मानचित्र पर कल हस्ताक्षर कर देंगे। चाय पीने का ऑफर भी मिला। मैं ने इन्कार कर दिया पर कहा कमिश्नर को जरूर पिलाओ। होटल वाला कहने लगा क्या सिद्धान्त का सवाल है? मैं ने कहा है तो सिद्धान्त का ही पर दूसरा है, मै चाय नहीं पीता पिलानी हो तो कॉफी पिलवाओ।

सब डायनिंग में आ कर बैठे। कुल दस लोग रहे होंगे। होटल मालिक का पुत्र अपना दर्शन बघारने लगा। कैसे उस के पापा ने सरकारी ठेकेदारी छोड़ी? और क्यों छोड़ी? कैसे भ्रष्टाचार बहुत बढ़ गया है? कैसे ठेकेदारी में गुजारा करना कठिन हो गया? कैसे ठेकेदारी से निकलने में दस साल लग गए और इस प्लाट पर बनी इमारत को खाली कराने में कितने साल लगे? और कितना पैसा खर्च हुआ। कैसे दक्षिण वाले रोड़ पर सरकार द्वारा बनाए गए क्योस्कों को हटवाने की लड़ाई लड़ी गई? होटल बनाने के लिए कैसे लाखों का कर्ज लिया गया। कैसे कर्ज चुकाने में ही होटल की दस साल की आगे की कमाई जाएगी तब जा कर मुनाफा दिखने लगेगा? तब तक चाय आ गई। बहुत बड़ी बड़ी और चौड़ी प्यालियाँ थीं। कोई 200 मि.लि. चाय उन में थी। सब चाय पीने लगे मैं कॉफी का इंतजार करने लगा।

होटल वाला बता रहा था -कैसे उस की चाय कोटा की सब से बढ़िया चाय है। उस में पाँच रुपए का 200 मि.लि.दूध लगता है, उसे महंगी कमर्शियल गैस पर पकाने में पाँच रुपये खर्च होते हैं, उस में दो रुपयों की चाय-पत्ती डलती है। इस के बाद के दीगर खर्चों को  जिन में होटल में लगाए गए रुपए का ब्याज भी शामिल है जोड़ने के बाद चाय उन्हें पच्चीस रुपए की पड़ती है जिसे वे तीस रुपयों में बेचते हैं तब जा कर उन्हें पाँच रुपए की बचत होती है। बड़ा जटिल हिसाब था। मैं नहीं समझ पाया। कार्ल मार्क्स होते तो जरूर समझ लेते। तब तक कॉफी आ गई। मैं भी सुड़कने लगा।

होटल वाला बता रहा था कि वह मुझ से मिला है। जब कियोस्कों को हटाने का मुकदमा चला था तब वह किसी फैसले की कॉपी लेने मेरे यहाँ आया था। फिर वह बताने लगा कि तीस रुपए की चाय वह खु

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