किराएदारी की लंबी अवधि से किराएदार को कोई अधिकार नहीं मिलता।
शैलेंदर तोमर ने सुन्दरवाला पोस्ट रायपुर, देहरादून, उत्तराखंड से समस्या भेजी है कि-
हमारे पास 5/5 की एक चाय की दुकान मोहल्ला अफगानान स्टेशन रोड धामपुर जिला बिजनोर में 35 साल से है। दुकान मालिक दुकान खाली करवाना चाहता है। जिस पर हम 2 बार और दूकान मालिक 1 बार जीत चुके हैं।यह केस अभी हाईकोर्ट में लंबित है। मेरा सवाल यह है कि हमें दूकान का मालिकाना हक़ कैसे मिल सकता है? जबकि हमारे पास कुछ सबूत है जिस से हम यह साबित कर सकते हैं कि हम 35 साल से किरायेदार हैं। दूसरा सवाल यह है कि दुकान की छत टिन शेड की है क्या हम उस को किसी तरीके से लिंटर की करवा सकते है या नहीं?
समाधान-
हम अनेक बार तीसरा खंबा पर बता चुके हैं कि कोई भी किराएदार कभी भी, कितने भी वर्ष तक किराए पर रहे वह मकान या दुकान का स्वामी नहीं होगा। किसी भी संपत्ति का स्वामित्व केवल स्वामित्व हस्तान्तरण विलेख से ही सम्भव हो सकता है। इस दुकान के स्वामी आप तभी हो सकते हैं जब दुकान का स्वामी आप को अपनी संपत्ति बेच दे और उस का विक्रय पत्र आप के नाम पंजीकृत करवा दे। आप अपने दुकान मालिक से बात करिए और कहिए कि वह दुकान आप को विक्रय कर दे। यदि संभव हो तो उसे खरीद लें। 35 वर्ष ही क्या 100 वर्ष तक भी किराएदार रहने से उस को दुकान का स्वामी होने का अधिकार नहीं मिलता।
जब तक आप उक्त दुकान के स्वामी नहीं हो जाते तब तक आप अपनी दुकान की टीन शेड की छत को पक्का नहीं करवा सकते। यह मेटेरियल आल्टरेशन होगा और इस तरह दुकान के स्वामी को आप से दुकान खाली कराने का एक और अतिरिक्त आधार मिल जाएगा। इस दुकान की छत भी आप तभी पक्की करवा सकते हैं जब आप उक्त दुकान के स्वामी हो जाएँ या दुकान के स्वामी ने ऐसा करने की आप को लिखित अनुमति दे दी हो।
या सही है की, आपकी आजीविका और उस स्थान से अपनत्व के कारण एवं इतने समय से उसका उपयोग करते रहने से आपकी भावना उससे जुड़ जाना अत्यंत स्वाभाविक है.. लेकिन यथार्थ स्वरूप को स्वीकार करते हुए आपको मुकदमा लड़ते हुए अपने लिए अब साथ में और व्यवस्था भी देख स्वयं को स्थापित करना आरम्भ करना भी व्यवहारिक एवं आवश्यक हो गया है..और साथ में आपने मकान मालिक से उसे विक्रय करने का निवेदन भी करते रहिये..क्योंकि उसकी भावना तो अब आपसे अधिक उस स्थान से जुड़ गयी होगी..आपने उसकी संपत्ति पर,उसपर कब्ज़ा करने..अपना बताने..और उससे मुकदमा लड़ने के कारण उसे संपत्ति जाने का जो भय..अपमान..और क्रोध..जिद आदि की मिश्रित प्रतिक्रियाएं उत्पन्न हुई होगी..उससे वो कदाचित उसे न भी दे..तथा कानून भी उसके पक्ष में है क्योंकि समपत्ति का हक़ से मालिक भी वही है..अतएव विवाद को अकारण जारी न रखते हुए उसे समाप्तकर आपको सम्बन्ध सुधारने की दिशा में प्रयास करने चाहिए..मनुष्य सामाजिक प्राणी है..विवाद हक़ के लिए हो..जब समझ लें ना-हक़ है..तब न किये जाएँ यह ज्यादा उचित और सही है..आपका तनाव भी कम होगा..धन श्रम समय भी बचेगा..और समझिता भी बरकरार रहेगी..आखिर आपके विगत ३५ वर्षों से उनसे सम्बन्ध हैं..जिन्हे ख़त्म नहीं किया जा सकता..लेकिन अब आ गयी कड़वाहट और मलीनता को निष्कय ही दूर करने के प्रयास तो किये ही जा सकते हैं.. 🙂