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किसी तथ्य को स्वीकार करने के लिए फौजदारी मुकदमा करने की धमकी देना उद्दापन का अपराध है।

समस्या-

भिलाई, छत्तीसगढ़ से अनुतोष मजूमदार ने पूछा है-

मेरी समस्या के बारे में मैं आप से पहले सलाह ले चुका हूँ। आप की सलाह से मैं ने अपने वकील साहब को अवगत करा दिया है।  एक समस्या और आ गई है कि पिछले 9 वर्षों से एक मुस्लिम महिला के साथ निवास कर रहा था।  हमारी शादी कभी नहीं हुई। हमारे बीच विवाद होने पर दिनांक 17.10.2011 से हतम अलग रह रहे थे। अब उस ने मुझे पर एवं मेरे माता पिता पर धारा 498अ, 506, 294, 323, 34 भा.दं.संहिता तथा धारा 125 दं.प्र.संहिता के मुकदमे किए हैं।  धारा 125 का मुकदमा निर्णय की स्थिति में है और उस महिला का व्यवहार उग्र होता जा रहा है।  उस ने मुझे धमकी दी है कि अगर मैं ने उसे पत्नी नहीं स्वीकारा या न्यायालय द्वारा पत्नी साबित न होने की स्थिति में वह मुझ पर एवं मेरे पिता व भाई पर धारा 376 का मुकदमा दायर करवाएगी।  क्या ऐसा किया जा सकता है? ये लांछन तो सहन नहीं हो पाएगा। मुझे क्या करना चाहिए?

समाधान

Code of Criminal Procedureस तरह किसी महत्वपूर्ण तथ्य की संस्वीकृति प्राप्त करने के लिए फर्जी फौजदारी मुकदमा दायर करने की धमकी देना धारा 388  भा.दंड संहिता के अंतर्गत संज्ञेय अपराध है। धारा 388 भा.दं.संहिता निम्न प्रकार है-

388. मॄत्यु या आजीवन कारावास, आदि से दंडनीय अपराध का अभियोग लगाने की धमकी देकर उद्दापन–जो कोई किसी व्यक्ति को स्वयं उसके विरुद्ध या किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध यह अभियोग लगाने के भय में डालकर कि उसने कोई ऐसा अपराध किया है, या करने का प्रयत्न किया है, जो मॄत्यु से या 1[आजीवन कारावास] से या ऐसे कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडनीय है, अथवा यह कि उसने किसी अन्य व्यक्ति को ऐसा अपराध करने के लिए उत्प्रेरित करने का प्रयत्न किया है, उद्दापन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा, तथा यदि वह अपराध ऐसा हो जो इस संहिता की धारा 377 के अधीन दंडनीय है, तो वह 1[आजीवन कारावास] से दंडित किया जा सकेगा ।

प को तुरंत पुलिस को इस की सूचना दे कर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाना चाहिए। यदि पुलिस ऐसी सूचना दर्ज करने से इन्कार करे तो तुरंत इस मामले में मजिस्ट्रेट के न्यायालय के समक्ष परिवाद प्रस्तुत कर मामला दर्ज कराना चाहिए।

सा परिवाद धारा 156 (3) के अंतर्गत न्यायालय पुलिस को कार्यवाही के लेय़ भेज सकता है या फिर स्वयं जाँच कर के उस पर प्रसंज्ञान ले सकता है। इस कार्यवाही से धमकी देने वाले पर फौजदारी मुकदमा दर्ज हो जाएगा। वैसी स्थिति में वह कोई मुकदमा आप के या आप के पिता व भाई के विरुद्ध दर्ज भी करवाती है तो आप के पास उसे फर्जी कह कर रद्द करवाने का पूरा अवसर रहेगा और आप मिथ्या बदनामी से बचेंगे।

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