किस तरह के निर्बंधन लगाये जा सकते हैं? : वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मूल अधिकार (7)
|(2) खंड (1) के उपखंड (क) की कोई बात उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर भारत की प्रभुता, अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, लोक व्यवस्था, शिष्टाचार या सदाचार के हितों में अथवा न्यायालय-अवमान, मानहानि या अपराध-उद्दीपन के संबंध में युक्तियुक्त निर्बंधन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उस के प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बंधन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने में राज्य को निवारित नहीं करेगी।
इस तरह यह अनुच्छेद जिन आधारों पर नागरिकों की वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर निर्बंधन लगाने के लिए कानून बनाने के लिए और वर्तमान कानूनों का प्रवर्तन कराने का अधिकार राज्य को प्रदान करती है वे इस तरह होंगे-
- भारत की प्रभुता व अखंडता के हित में;
- राज्य की सुरक्षा के हित में;
- विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों के हित में;
- लोक व्यवस्था बनाए रखने के हित में;
- शिष्टाचार या सदाचार के हित में;
- न्यायालय-अवमानके संबंध में;
- मानहानि के संबंध में तथा
- अपराध-उद्दीपन के संबंध में।
वर्तमान कानूनों के अंतर्गत बहुत से निर्बंधन नागरिकों की वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल अधिकार पर लगे हुए हैं। जिन में से बहुतों को भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत अपराध की श्रेणी में रखा हुआ है। इन निर्बंधनों का उल्लंघन किए जाने पर किसी को भी अभियोजन का सामना करना पड़ सकता है और यह सिद्ध हो जाने पर कि कोई व्यक्ति उन निर्बंध
आदरणीय सर, इस अत्यन्त ज्ञानवर्धक आलेख के बहुत बहुत आभार आपका।
माननीय दिनेश जी ,मेरे ब्लॉग का अनुसरण करके मेरा हौसला बढाने के लिए शुक्रिया
पुनश्च मैं चिंता में हूँ कि हमारी न्यायपालिका तो अनेक हथियारों से लैस है फिर न्याय मिलने में इतनी देर क्यों लगती है युक्तियुक्ताता से आम आदमी कम अपराधी ज्यादा बच निकलते हैं
एक अच्छी जानकारी दी आप ने
धन्यवाद
बहुत अच्छी जानकारी मिल रही है.
रामराम.
Well done to think of sonemhitg like that
सोचा तो था कि जब सब कडियाँ पूरी हो जायें गी तभी आपकी सारी पोस्ट पढूंम्गी मगर ये तो इतने दिनों से चल ही रही हैं इस लिये आज पिछली सभी कडियाँ पढ गयी अब बुढापे मे याद्दाश्त रहती नहीं इस लिये एक बार मे ही पढ्ना सुविधजनक लगता है आपने बहुत अच्छी जान्कारी सहज शब्दों मे दी है बहुत बहुत धन्यवाद अगली कडी का इन्तज़ार रहेगा आभार्
इतनें कानूनों के बाद भी इतनी समस्याएं ? आप रोचकता बनाये हुए है ,प्रतीक्षा है .
बांधता कानून हमको सब जगह,
मुक्त करवा देती युक्तियुक्तता.
-मंसूर अली हाश्मी
दिनेश जी ..निर्बन्धन की व्यवस्था इतनी व्यापक है की ..कभी भी किसी को भी इनके दायरे में लाया जा सकता है..अगले अंक का इन्तजार रहेगा.
बहुत काम की जानकारी-आगे कड़ियों का इन्तजार है.
जय हो।
इतना कठिन लिखा है कि समझने के लिए वकील अथवा अपराधी बनना होगा।