क्या कहता है? बाल श्रम ( प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम,
|पिछले आलेख पर आई टिप्पणियों से लगा कि भारत में बाल-श्रम के प्रतिषेध के लिए वर्तमान कानून की जानकारी के बारे में बहुत जानकारी आम नहीं है। वर्तमान में देश में बाल श्रम ( प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986 प्रभावी है। जिस के सामान्य प्रावधान निम्न प्रकार हैं…
बाल श्रम ( प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986
इस अधिनियम का उद्देश्य समूचे बाल श्रम का उन्मूलन करना नहीं है, यह केवल कुछ प्रक्रियाओं एवं व्यवसायों में बाल श्रम के नियोजन को निषिद्ध करता है, जहां नियोजन निषिद्ध नही है, वहां बाल श्रमिकों की सेवा दशाओं को विनियमित करता है, 14 वर्ष की उम्र तक के बालकों को शिक्षा ग्रहण करने की सुविधा सुनिश्चित करने के लिए प्रावधान करता है और उनकी कोमल अवस्था के विपरीत उनसे कठिन कार्य लेने पर रोक लगाता है तथा विभिन्न श्रम कानूनों में बालक (चाइल्ड) की परिभाषा को एक रूप देता है। इन्हीं उद्देश्यों से इस अधिनियम को विनिर्मित किया जाना इस अधिनियम में कहा गया है।
बाल श्रमिक की परिभाषा
ऐसे श्रमिक जिन्होंने अपनी आयु के 14 वर्ष पूर्ण न किये हों इस अधिनियम की धारा -2 (II) के अन्तर्गत इस अधिनियम द्वारा “बालक” के रूप में परिभाषित किए गए हैं।
बाल श्रम पूर्ण रूप से निषेध
अधिनियम की धारा-3 के अधीन भाग (अ) मे उल्लिखित व्यवसायों तथा भाग (ब) में उल्लिखित प्रक्रियाओं को खतरनाक घोषित करते हुये बाल श्रम नियोजित किया जाना पूर्ण रूप से निषिद्ध किया गया है। कारखाना अधिनियम, 1948 की धारा-67, माइन्स एक्ट, 1952 की धारा-40, मर्चेन्ट शिपिंग एक्ट, 1958 की धारा-109 तथा मोटर ट्रान्सपोर्ट वर्क्स एक्ट, 1961 की धारा-21 की व्यवस्था के अनुसार इन उद्योगों में चाहे वे खतरनाक अथवा गैर खतरनाक प्रकृति के हों इस अधिनियम द्वारा बाल श्रम पूर्ण रूप से निषिद्ध किया गया है।
बाल श्रम नियोजन का नियमन
धारा-6 से 11- धारा-3 में उल्लिखित अनुसूची से भिन्न गैर खतरनाक अधिष्ठानों में बालकों को नियोजित किया जा सकता है।
बाल श्रमिक नियोजन की शर्तें
बाल श्रमिकों को जहाँ नियोजित किया जा सकता है वहाँ उन्हें केवल निम्न की शर्तों के साथ ही नियोजित किया जा सकता है-
- बाल श्रमिक से किसी भी दिन लगातार 3 घन्टे से अधिक कार्य नहीं लिया जा सकता है। तीन घंटे काम लेने के उपरांत या उस से पहले बालक को न्यूनतम एक घंटे का विश्राम काल देना आवश्यक है।
- बाल श्रमिक के कार्य के घन्टे विश्राम काल ( न्यूनतम एक घन्टा ) को सम्मिलित करते हुए छह घन्टे से अधिक नहीं हो सकते। अर्थात उन से दिन में पाँच घंटे से अधिक काम नहीं लिया जा सकता। इस में वह समय भी सम्मिलित है जिस समय उसे काम देने के लिए प्रतीक्षा कराई जाती है।
- बाल श्रमिक को सप्ताह में एक दिन अवकाश दिया जाना अनिवार्य किया गया है।
- सांय 07 बजे से प्रातः 08 बजे के मध्य बाल श्रमिक से कार्य नहीं लिया जा सकता है।
- बाल श्रमिक से ओवरटाईम कार्य नहीं लिया जा सकता है।
- गैर खतरनाक नियोजन में काम करने वाले बाल श्रमिक के नियोजक द्वारा उसे अपने खर्चे पर 2 घन्टे प्रतिदिन शिक्षा का लाभ दिलाया जाना आवश्यक कर दिया गया है।
अभिलेख
प्रत्येक नियोजक को बाल श्रमिक का उपस्थित रजिस्टर पृथक से रखना अनिवार्य है, जिसमें वह उसका नाम, जन्मतिथि, कार्य का प्रकार, कार्य के घण्टे, अवकाश का समय आदि रखेगा।
बाल श्रम नियोजित करने हेतु नोटिस
नियोजक यदि बाल श्रमिक नियोजित करता है तो बाल श्रमिक के पू
र्ण विवरण की सूचना क्षेत्र के निरीक्षक को पूर्ण विवरण सहित 30 दिन के अन्दर प्रस्तुत करना अनिवार्य कर दिया गया है।
दण्ड
इस अधिनियम की धारा-14 एवं 15 में निषिद्ध नियोजन सम्बन्धी प्रावधान का उल्लंघन करने वाले नियोजक को प्रथम अपराध पर न्यूनतम तीन माह की कैद जो एक वर्ष तक भी हो सकती है या दस हजार रूपये अर्थदण्ड जो बीस हजार रूपये तक भी हो सकता है अथवा दोनो दण्डों से दण्डित किया जा सकता है। अधिनियम के अन्य किसी प्रावधान का उल्लंघन करने वाले को एक माह तक की सजा या दस हजार रूपये तक अर्थदण्ड अथवा दोनों दण्ड दिये जा सकते हैं। फैक्ट्रीज एक्ट, 1948 की धारा-67, माइन्स एक्ट, 1952 की धारा-40, मर्चेन्ट शिपिंग एक्ट, 1958 की धारा-109 तथा मोटर ट्रान्सपोर्ट वर्क्स एक्ट, 1961 की धारा-21 के अधीन जहां भी बाल श्रम नियोजन निषिद्ध है के प्रावधानों का उल्लंघन भी इस अधिनियम की धारा-14 के अन्तर्गत दण्डनीय अपराध है।
आयु का प्रमाण
बाल श्रमिक की आयु के सम्बन्ध में विवाद उत्पन्न होने पर राजकीय चिकित्सक द्वारा आयु के सम्बन्ध में प्रदत्त प्रमाण पत्र को ही मान्य कर दिया गया है।
माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गये निर्देश
माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा एम0 सी0 मेहता बनाम तमिलनाडु राज्य ( 465/86) में दिये गये ऎतिहासिक निर्देश निम्नांकित बिन्दुओं में समाहित हैं –
- प्रतिकर की वसूली-
खतरनाक उद्योगों में बाल श्रमिक नियोजित करने वाले सेवायोजकों से रूपया 20 हजार तक प्रतिकर भी वसूला जाये।
- शिक्षा व्यवस्था।
खतरनाक उद्योगों से बाल श्रम को हटाकर उसे शिक्षा का लाभ दिलाया जाये ।
गैर खतरनाक नियोजन में काम करने वाले बाल श्रमिक के सेवायोजक द्वारा उसे अपने खर्चे पर 2 घन्टे प्रतिदिन शिक्षा का लाभ दिलाया जायेगा।
- पुनर्वास
बाल श्रमिक के परिवार के एक वयस्क सदस्य को रोजगार दिलाया जाये।
- कल्याण निधि का गठन।
नियोजकों से वसूल की गयी उक्त धनराशि से प्रत्येक जिले में एक श्रम कल्याण निधि का गठन किया जाये, जिसका उपयोग बाल श्रमिकों के कल्याण हेतु किया जाये।
उपरोक्त प्रावधानों के बाद भी अनेक निषिद्ध उद्योगों और प्रक्रियाओं में बाल श्रम का उपयोग किया जा रहा है। लोग देख कर भी उस की अनदेखी करते हैं। इस का एक मुख्य कारण यह भी है कि हमारे यहाँ अभी लोगों को शिकायत करने की आदत नहीं है। शिकायत कर देने पर भी उचित कार्यवाही करने वाले निरीक्षकों की बहुत कमी है, जो हैं उन्हें भी ऐसे नियोजको द्वारा प्रायोजित कर लिया जाता है। जब तक स्वयं जनता में बाल श्रम विरोधी जागरूकता उत्पन्न नहीं होती है, बाल-श्रम का पूरी तरह से उन्मूलन संभव नहीं है।
Please ky koi mujhe bta skta h ki agar koi ldka १६ yr ka h aur १०th pass h aur agr wo kisi garage me work krta h to ky wo is adhiniyam ke viruddh h..
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नयी जानकारी मिली है । अभार
बहुत अच्छी विधिक जानकारी .आपको धन्यवाद .
बढ़िया जानकारी… प्रावधान तो अच्छे हैं, पर कई स्तर पर कमियाँ तो हैं ही !
आदरणीय नमस्कार
सचमुच बालश्रम अधिनियम की जानकारी आम नही है। अच्छी जानकारी दी है।
धन्यवाद
धन्यवाद
बाल श्रम अधिनियम तो सही है किन्तु बाल श्रम के कारणों और उसके निदान को लेकर सम्बंधित पक्षों को सांप सूंघ जाता है. क्योंकि इसमें पैसा लगता है जबकि कानून बनाने में क्या जाता है. इन लोगों को जगाने के लिए हर रोज़ 'लालगढ़' की ज़रुरत महसूस होती है.
ढिया और उपयोगी आलेख, यह और बता दिया होता कि जोखिम और कम जोखिम के क्षेत्र कौन से हैं तो और ज्ञान मे बढोतरी होती. पिछले लेख मे भी कुछ जिज्ञासा व्यक्त की गई थी उसका भी उल्लेख इस लेख मे नही हुआ. धन्यवाद.
रामराम.