क्या सहमति से तलाक के प्रस्ताव को स्वीकार किया जाए?
|समस्या-
मेरी शादी 5 मार्च 2018 को हिन्दू रीतिरिवाज से सम्पन्न हुई थी। परंतु शादी के 6 महीने बाद मेरी पत्नी अपनी माँ और उसके उसके घर जमाई जीजा के कहने पर आकर बिना किसी कारण के अपने मायके में रह रही है। मैंने उसे बहुत बुलाने की कोशिश की परंतु वह हर बार बहाना बनाकर नही आई। फिर मैंने महिला सेल में भी आवेदन दिया वो वहाँ भी नही आई। मैंने जिला कोर्ट मे सेक्शन 9 का मुकदमा किया वो कोर्ट में भी नहीं आयी, फिर कोर्ट से एकतरफा डिक्री मेरे पक्ष में हो गयी, अब हमें अलग हुए लगभग एक वर्ष से भी ज्यादा समय हो गया है। अब मैंने फैमिली कोर्ट से तलाक का मुकदमा किया हुआ है। जहाँ वो अभी तक दो हियरिंग में नही आई। परंतु अब वो मुझसे म्यूच्यूअल डाइवोर्स के लिए बोल रही है। वन-टाइम सेटलमेंट के लिए कह रही है। मेरे पक्ष में सेक्शन 9 का आदेश है और अब भी वो अगर मेरी सोसाइटी में आना चाहे तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है। मैं तलाक का मुकदमा वापस ले लूंगा। कृपया बताएं मुझे आगे क्या करना चाहिए?
-अमित कुमार, हल्द्वानी शहर, नैनीताल, उत्तराखंड
समाधान-
आप की समस्या यह है कि आप की पत्नी आपके साथ नहीं रहना चाहती है। उस की इस अनिच्छा को इच्छा में बदलने का कानून के पास कोई उपाय नहीं है। इच्छा के विरुद्ध किसी भी मनुष्य को किसी दूसरे मनुष्य के साथ रहने को बाध्य नहीं किया जा सकता, चाहे वह पत्नी ही क्यों न हो। यदि अनिच्छा से वह आ कर रहेगी तो घर क्लेश होगा। उस क्लेश से बेहतर है कि वह आप के साथ नहीं रहे।
आप की पत्नी मुकदमा नहीं लड़ना चाहती है और तलाक भी चाहती है साथ के साथ यह भी चाहती है कि वन टाइम सैटलमेंट से उसे कुछ आर्थिक लाभ हो जाए। आप की पत्नी धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम की डिक्री के बावजूद आप के साथ आ कर नहीं रही है। इस कारण उस का भरण पोषण तथा स्थायी पुनर्भरण प्राप्त करने का अधिकार बहुत ही क्षीण हो गया है। यदि वह इस के लड़ेगी तो शायद उसे कुछ नहीं मिलेगा। ऐसा लगता है कि आप के समाज में लड़कियों की कमी है। ऐसे समाजों में अक्सर विवाह के बाद भी कुछ लोग चाहते हैं विवाहिता किसी तरह उन के परिचित दूसरे पुरुष के साथ उस की पत्नी बन कर रहे। हो सकता है ऐसा ही कुछ आप की सास और आप के साढ़ू भाई के मन में रहा हो और आप की पत्नी को भी इस के लिए मना लिया हो।
हमारी राय यह है कि आप की पत्नी पारिवारिक न्यायालय में नहीं आ रही है तो तलाक के लिए एक तरफा निर्णय होने दीजिए। यदि वह पारिवारिक न्यायालय में आ कर तलाक के मामले में प्रतिवाद करती है तो उस समय सोचा जा सकता है कि वन टाइम सैटलमेंट कर के धारा 13-बी हिन्दू विवाह अधिनियम में आवेदन दे कर आपसी सहमति से तलाक लिया जा सकता है।
यदि वह इसके खिलाफ लड़ेगी तो शायद उसे कुछ नहीं मिलेगा।