गोत्र के कारण विवाह में कोई कानूनी बाधा नहीं
| बिहार से विक्रम झा ने पूछा –
यदि लड़का और लड़की एक दूसरे से प्यार करते हों और विवाह के लिए राजी हों और दोनों के मातापिता भी अलग-अलग हों लेकिन दोनों के परिवार का एक ही गोत्र हो तो क्या विवाह सम्भव है?
मैं ने विक्रम को सलाह दी कि वह मेरी सपिंड विषय पर लिखी गई पोस्टों को पढ़े। विक्रम ने उन्हें पढ़ा और मुझ से पुनः प्रश्न किया –
लड़के-लड़की के अभिभावकों का कहना है कि एक ही गोत्र अर्थात लड़के और लड़की के परिवार का कश्यप गोत्र होने के कारण विवाह नहीं हो सकता, क्योंकि बिहार के मैथिल ब्राह्मण इसे शास्त्र या धर्म सम्मत नहीं मानते हैं। लेकिन प्रेम दो दिलों का विषय है, दिमाग का नहीं। लड़के और लड़की के पिता के बीच सपिंड सम्बन्ध होने जैसी कोई स्थिति नहीं है क्योंकि दोनों अलग -अलग जिलों से है और कई पीढ़ियों तक का उनका कोई आपसी सम्बन्ध नहीं रहा है। अतः आप कानून के आधार पर एक बार फिर मुझे उचित मार्गदर्शन दें।
उत्तर-
विक्रम की समस्या का पुराने और नए कानून के बीच है। वस्तुतः पुराने जमाने में परिवारों और उन के समूहों के बीच प्रचलित व्यक्तिगत कानून में राज्य का कोई दखल। भारतीय समाज जातियों में बंटा था और प्रत्येक जाति की पंचायत ही व्यक्तिगत कानूनों के मामले में अंतिम निर्णय देती थी, जिसे मानना पड़ता था। कभी कोई मामला यदि राज्य की कचहरी में पहुँच भी जाता तो वे कचहरियाँ भी परंपरा के अनुसार ही निर्णय देती थीं। इस तरह प्रत्येक जातीय समूह के लिए अपनी परंपराएँ ही उन का व्यक्तिगत कानून थीं।
एक ही पूर्वज के वंश में जन्मे बारह पीढ़ी तक के लोगों को एक गोत्र का कहा जाता था और गोत्र में विवाह वर्जित था। तेरहवीं पीढ़ी में गोत्र का पुनर्निर्धारण कर दिया जाता था। अब अनेक पीढ़ियों से गोत्रों का पुनर्निर्धारण बंद सा हो गया है। लेकिन यह परंपरा अभी भी जीवित है कि एक ही गोत्र में विवाह वर्जित बना हुआ है। सगोत्रीय विवाह की किसी शास्त्र में वर्जना नहीं है। शास्त्र कहते हैं कि पिता के संबंधों में सात पीढ़ी तक और माँ के संबंधों में पाँच पीढ़ी तक विवाह वर्जित है। लेकिन अनेक जातियों में केवल पाँच और तीन पीढ़ियों की ही वर्जना है। जब हिन्दू विवाह अधिनियम के रूप में समस्त हिन्दुओं के लिए एक सामान्य व्यक्तिगत विधि बनाई गई तो उस में पाँच और तीन पीढ़ी तक की वर्जना को ही मान्य किया गया। इस तरह यदि माता के रिश्तों में तीन पीढ़ियों तक और पिता के रिश्तों में पाँच पीढ़ियों तक कोई संबंध न हो तो लड़के-लड़की का विवाह वैध ही माना जाएगा।
इस तरह विक्रम के मामलें में लड़के और लड़की के बीच विवाह होता है तो वह हिन्दू विवाह अधिनियम के अनुसार अवैध नहीं होगा। इस कारण से मेरी राय में विक्रम को लड़के और लड़की के परिवारों को समझाना चाहिए कि उन का विवाह कानूनन वैध होगा। पुरानी परंपरा के अनुसार गोत्रों का पुननिर्धारण न होने से यह समस्या उत्पन्न हु
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3 Comments
गुरुवर जी, काफी अच्छी जानकारी प्राप्त हुई.
प्रेम दो दिलों का विषय है, दिमाग का नहीं।
फिर भी समाज के कुछ नियमों को मान लेने में कोई परेशानी नहीं है
अब तो माँ की पीढी की गौत्र को टालकर भी विवाह हो रहे हैं ।