रोमी अग्रवाल ने पूछा है –
यदि कोई दुपहिया वाहन डीलर चिट के रूप में 250 व्यक्तियों के समूह से, छह माह तक पाँच हजार प्रतिमाह प्रति व्यक्ति जमा करवाता है और हर माह ड्रॉ निकालता है जिस में जिस का चिट निकलता है उसे वाहन या उस के बराबर का पैसा दे देता है और आगे रुपया जमा नहीं करना पड़ता। बीच-बीच में बोनस भी देता है। इस के लिए डीलर ने पर्चों से प्रचार भी किया है और जो रुपये लेता है उस की रसीद भी देता है जिस में उस की दुकान का नाम भी है। क्या इस डीलर पर भरोसा किया जा सकता है। क्या ये कानूनन सही है, यदि नहीं तो क्या कार्यवाही की जा सकती है।
उत्तर –
रोमी जी,
यदि एक व्यक्ति विहित संख्या के व्यक्तियों के समूह के साथ ऐसा अनुबंध करता है कि समूह का प्रत्येक व्यक्ति समयबद्ध किस्तों में निश्चित समय तक कुछ रुपया (या अनाज) अदा करेगा, और प्रत्येक सदस्य उस की बारी (जो चिट, नीलामी या निर्धारित रीति से निश्चित की जाएगी) आने पर ईनाम प्राप्त करेगा; तो इस तरह की योजना चिट फंड कहलाती है। लेकिन ..
(1) यदि केवल यह इनाम समूह के सब सदस्यों को न मिल कर केवल कुछ लोगों को मिले, और ईनाम मिल जाने वाले व्यक्ति को बाद में कुछ भी न देना पड़े;
(2) या सभी लोगों को इनाम मिलना निश्चित हो और इनाम मिलने के बाद भी सभी को भविष्य की किस्तें भी देना जरूरी हो तो वह चिट फंड नहीं कहलाएगा।
इस तरह उक्त दो प्रकार की योजनाएँ चिट फंड योजना से मुक्त हैं, शेष सभी प्रकार की योजनाओं को नियंत्रित करने के लिए कानून बने हुए हैं। आप के द्वारा प्रदर्शित योजना चिट फंड से मुक्त है। यह वास्तव में वस्तु को विक्रय करने की रीति है। छह माह में डीलर एक व्यक्ति से 30000 रुपया एकत्र करता है। केवल छह व्यक्ति जिनकी लॉटरी निकल रही है उन्हें कुछ कम राशि देनी पड़ती है। लेकिन डीलर प्रतिमाह सवा लाख रुपया एकत्र करता है और उसे अपने काम में लेता है। जिस से उस का यह घाटा पूरा ही नहीं होता, अपितु लाभ भी होता है।
यदि आप समझते हैं कि डीलर विश्वास के योग्य है और धोका नहीं करेगा तो आप उस पर विश्वास कर सकते हैं। यदि ऐसा लगता है कि डीलर कहीं बाहर से आया है और छह माह पूरा होने पर या उस के पहले ही गायब हो सकता है और उस के विरुद्ध कार्यवाही किया जाना संभव नहीं होगा तो आप उलझ भी सकते हैं। इस लिए किसी डीलर के साथ इस तरह के अनुबंध में शामिल होने के पहले इस बात को जाँच लेना उचित होगा कि डीलर विश्वास के योग्य है या नहीं
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DineshRai Dwivedi
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.होली पर्व पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं …
अगर इस योजना को ईमान दारी से भी चलाया जाये तो भी घाटा नही, लेकिन फ़िर भी लोग इस मे हेरा फ़ेरी करते हे, ओर लोग फ़ंसते भी हे, सब मिला कर यह विशवास के योग्य नही, ऎसी सकीमे बहुत कम सफ़ल होती हे, जानकारी के लिये धन्यवाद
बहुत जानकारीपूर्ण आलेख …होली पर्व पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं …
शब्दश: सहमत.
चिटफंड जैसी स्कीमों में लोग लालच व प्रक्रिया के अक्लिष्ट होने के कारण जा फंसते हैं.
सयंम ही उपाय है.
बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने. क्या ऐसी योजनाये चलाने वाले द्वारा बनाये नियम/शर्तें मान्य होते है. जैसे-बीच में किस्त बंद करने पर पैसे वापिस नहीं मिलेंगे