जिरह या बहस, क्या सही है?
|एक समाचार पत्र के वैब पोर्टल पर यह समाचार प्रकाशित हुआ है…
इस का पूरा पाठ इस तरह है —-
उच्च न्यायालय : हिन्दी में हुई जिरह
नई दिल्ली. परंपराओं को दरकिनार करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक वकील को हिन्दी में जि़रह करने की इजाजत दी। वकील ने अनुरोध किया था कि वह अदालत में अपने मुवक्किल के पक्ष में अपनी मातृभाषा में बेहतर ढंग से बहस कर सकता है ।
न्यायमूर्ति रेखा शर्मा ने पिछले बुधवार को वकील दास गोनिंदर सिंह को अपने मुवक्किल त्रिलोक सिंह कक्कड़ के पक्ष में हिन्दी में जि़रह करने की अनुमति दी । मामला शेयरों की खरीद ब्रिकी से जुड़ा था ।न्यायमूर्ति शर्मा ने पूछा कि उन्होंने आवेदन हिन्दी में क्यों नही दायर किया तो सिंह ने कहा कि हिंदी में दायर किया आवेदन आवेदन पटल पर ही रद्द हो जाता क्योंकि इस अदालत की आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है ।
अदालत में अंग्रेजी में दिए आवेदन में सिंह ने कहा कि पूरे शैक्षणिक कैरियर में उसके सीखने की भाषा हिंदी रही और वह इस भाषा में प्रभावी ढंग से अपनी बातों को रख सकता है और उसे हिंदी में जिरह करने की अनुमति दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि अन्य उच्च न्यायालय जैसे उत्तर प्रदेश और राजस्थान में हिंदी आधिारिक भाषा है लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय में अभी उसे यह दर्जा हासिल नही है ।
इस समाचार में कहा गया है कि वकील ने कहा था कि वह अपनी मातृभाषा में बेहतर ढंग से बहस कर सकता है। लेकिन उसे इजाजत जिरह करने की दी गई। शीर्षक में भी जिरह शब्द का उपयोग किया गया है और समाचार में उसे अनेक बार दोहराया गया है।
जब मुकदमे के अंत में अथवा किसी आवेदन पर वकील को अपने सेवार्थी का पक्ष अदालत को समझाना होता है तो उसे अंग्रेजी में आर्ग्यूमेंट कहा जाता है, इसे ही हिन्दी, उर्दू या हिन्दुस्तानी में बहस कहा जाता है। जिस में वकील अपने सेवार्थी के मामले के पक्ष में तथ्यों, साक्ष्यों और तर्कों को रखता है। यह बहस आम तौर पर मौखिक होती है और लिखित भी प्रस्तुत की जा सकती है।
जब कि किसी अदालत में कोई गवाह किसी पक्ष की ओर से उपस्थित होता है तो उस का मुख्य परीक्षण उस पक्ष के वकील द्वारा किया जाता है। तदुपरांत विपक्षी के वकील उस से प्रश्न पूछते हैं इसे हिन्दी में प्रतिपरीक्षण कहते हैं और उर्दू या हिन्दुस्तानी में जिरह करना कहते हैं।
अखबार जो कि तथ्यों को सब के सामने रखते हैं बहस और जिरह में फर्क नहीं कर पाते। यह गलती अक्सर टीवी चैनल भी करते हैं। अदालत और कानून से संबंधित खबरों में इस तरह की गलतियाँ आम हैं। वे अक्सर मुचलके और जमानत में फर्क नहीं कर पाते हैं। इस का कारण है कि इन खबरों को सामान्य संवाददाता लिखते हैं और उन की किसी कानूनी भाषा के जानकार द्वारा जाँच भी नहीं की जाती है। जब कि होना यह चाहिए कि जब भी कानून या अदालत से संबंधित समाचार का प्रकाशन या प्रसारण किया जाए तो उस के पहले उसे कानूनी, अदालती भाषा के जानकार द्वारा जाँच लिया जाए। पर शायद अखबार और टीवी चैनल इसे जरूरी नहीं समझते हैं, या उन के मालिक इस तरह के एक विशेषज्ञ कर्मचारी को नियोजित कर अपने खर्चे बढ़ाना नहीं चाहते। चाहे उन के समाचारों का स्तर कुछ भी क्यों न हो और जनता के बीच समाचार सही तरीके से पहुँचे या न पहुँचे। इस तरह के सम
ाचार पाठकों को गलत सूचनाएँ भी देते हैं।
extreme diary you’ve possess
I’d come to go along with with you here. Which is not something I typically do! I love reading a post that will make people think. Also, thanks for allowing me to comment!
शुक्रिया, शुक्रिया। इस महीन लेकिन महत्वपूर्ण अर्थ को समझाने के लिए।
काम आएगी यह जानकारी
अब तक तो हम भी इन शब्दों का अर्थ एक ही समझ रहे थे | जानकारी के लिए आभार |
… यहां से कुछ कानूनी दांव-पेंच सीखने व समझने का अवसर है … प्रभावशाली ब्लाग, आभार !!!
अच्छी जानकारी प्राप्त हुई..ज्ञानवर्धन हुआ.