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ठेका श्रम उन्मूलन की अधिसूचना की पालना कैसे करवाई जा सकती है?

समस्या-


कानूनन चूना पत्थर खदानों में भारत सरकार ने ठेके पर श्रमिकों का नियोजन निषेध कर रखा है। मगर राजस्थान राज्य के सीमेन्ट उद्योग की चूना पत्थर खदानो में केन्द्रीय श्रम विभाग की मिलीभगत से यह नियम लागू नहीं हो रहा है। मांग करने वाले श्रमिको को कार्य से निकाल दिया जाता है अथवा झूठे पुलिस केस बना कर फँसा दिया जाता है। इसे प्रभावी ठंग से केसे लागू कराया जाय।

-सतीश व्यास, उदयपुर, राजस्थान

समाधान-

किसी भी उद्योग के किसी विभाग या प्रक्रिया में ठेकेदार श्रमिकों के नियोजन का प्रतिषेध ठेकेदार श्रमिक (विनियमन एवं उन्मूलन ) अधिनियम 1970 की धारा 10 के अन्तर्गत उचित (केन्द्र या राज्य) सरकार द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के द्वारा किया जाता है। एक बार उन्मूलन की अधिसूचना गजट में प्रकाशित हो जाने पर वह प्रभावी हो जाती है। वैसी अधिसूचना प्रकाशित हो जाने के उपरान्त कोई भी उद्योग उन्मूलन के क्षेत्र में ठेकेदार श्रमिकों का नियोजन नहीं कर सकते। उस क्षेत्र में उद्योग द्वारा स्वयं अपने द्वारा नियोजित श्रमिक ही नियोजित किए जा सकते हैं। लेकिन यह देखा गया है कि न केवल निजि क्षेत्र के उद्योग अपितु अनेक सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग इस अधिसूचना के उपरान्त भी ठेकेदार श्रमिक नियोजित करते रहते हैं।

स के लिए उद्योगपतियों ने एक मार्ग यह निकाला है कि वे किसी तरह ऐसी अधिसूचना को अक्सर इस आधार पर कि उन्मूलन की अधिसूचना जारी करने के पूर्व विधि द्वारा निर्धारित प्रक्रिया नहीं अपनाई गई है और अन्य आधारों पर उच्च न्यायालय के समक्ष रिट याचिका के द्वारा चुनौती देते हैं और अधिसूचना के क्रियान्वयन को स्थगित करवाने का आदेश प्राप्त करने का आवेदन प्रस्तुत कर देते हैं। ऐसे आवेदन पर स्थगन प्राप्त करने के लिए वे उच्च श्रेणी के अधिवक्ताओँ को भारी फीस दे कर नियुक्त करते हैं, केन्द्र या राज्य सरकार के अधिकारियों को इस से कोई लेना देना नहीं होता है वे काहिली से सरकारी पक्ष की पैरवी करते हैं। उन के अधिवक्ता भी अधिक निपुण न हो कर राजनैतिक प्रभाव से नियुक्तियाँ प्राप्त करते हैं। उद्योगपति अक्सर ऐसे सरकारी अफसरों तथा उन के वकीलों का समर्थन भी किसी तरह से प्राप्त कर लेते हैं। जब सरकारी पक्ष ही ठीक से न्यायालय के समक्ष नहीं रखा जाता है तो न्यायालय से उद्योग पति आसानी से स्थगन प्राप्त कर लेते हैं और फिर ठेकेदार श्रमिकों का उन्मूलन रुक जाता है।

धर इस उन्मूलन अधिसूचना के जारी होने पर ठेकेदार द्वारा नियोजित श्रमिक उन्हें उद्योग का श्रमिक नियोजित करने के लिए आंदोलित हो उठते हैं। उद्योग वर्तमान ठेकेदार का ठेका समाप्त कर उसी ठेकेदार को किसी अन्य नाम से ठेका दे देते हैं और नई भर्ती कर लेते हैं। ठेका समाप्ति के कारण मजदूर बेरोजगार हो जाते हैं। आन्दोलनकारी श्रमिकों पर पुलिस की मदद से मुकदमे बना दिए जाते हैं। इस तरह उन के आंदोलन को कुचल दिया जाता है। एक ओर वास्तविकता यह है कि किसी प्रकिया या विभाग में ठेकेदार श्रम का उन्मूलन होने से उस प्रक्रिया में नियोजित श्रमिकों को उद्योग का कर्मचारी होने का लाभ कानूनन नहीं मिल सकता। उद्योगपपति ठेका समाप्त कर के नये सिरे से स्वयं अपने नियोजन में नए श्रमिक नियोजित कर लेता है।

वैसे ठेका श्रमिकों का उन्मूलन हो जाने के उपरान्त श्रमिक यूनियनें इस बात की मांग कर सकती हैं कि निषिद्ध प्रक्रिया या विभागों में केवल उद्योग के श्रमिक ही नियोजित किए जाएँ। वह ठेकेदार के श्रमिकों को उद्योग के श्रमिक माने जाने या उद्योग के श्रमिकों के रूप में नियोजित करने की मांग नही कर सकते। इस स्थिति का लाभ उद्योगपति उठाते हैं।

प यह कर सकते हैं कि जहाँ उद्योग में ठेका श्रम के उन्मूलन की अधिसूचना जारी हो गई है और उसे किसी न्यायालय ने स्थगित नहीं किया है वहाँ वे श्रमं विभाग को शिकायत कर उद्योग के अधिकारियों पर अभियोजन चलाने की मांग कर सकते हैं। यदि श्रम विभाग के स्थानीय कार्यालय में कोई सुनवाई नही होती है तो उच्च स्तरीय अधिकारियों को अथवा केन्द्रीय या राज्य के श्रम मंत्रालय को शिकायत की जा सकती है। इस पर भी राज्य या केन्द्र सरकार कार्यवाही नहीं करती है तो श्रम विभाग के सचिव को ऐसी कार्यवाही करने के लिए विधिक नोटिस भेजा जाना चाहिए। इस पर भी कार्यवाही न होने पर रिट याचिका प्रस्तुत कर उचित प्रकार की रिट जारी करवा कर ऐसा करने पर बाध्य किया जा सकता है। उच्च न्यायालय आदेश दे सकता है कि ठेका श्रम उन्मूलन की अधिसूचना जारी होने पर भी उस की पालना नहीं करने वाले उद्योगपतियों पर अभियोजन चलाया जाए और अधिसूचना की पालना सुनिश्चित करवाई जाए।

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