ठेकेदार श्रमिकों के लिए न्याय की कोई कानूनी व्यवस्था नहीं
10/02/2010 | Industrial Dispute Act, Judicial Reform, System, औद्योगिक विवाद, न्यायिक सुधार, व्यवस्था | 5 Comments
| बालकिशन पूछते हैं–
मैं एक कंपनी में 6 साल से कार्यकर रहा हूँ, मेरा केवल ठेकदार बदला जाता है और कार्मिकों को नहीं बदला जाता है। जब संविदा समाप्त होता है तब हम ठेकेदार से बोलते है तो वह कहता है कि आप मेरे कार्मिक नहीं हैं मैने तो कंपनी के संविदा एवं कंपनी के कहने पर रखा क्या हम कंपनी पर कोई केस कर सकते हैं?
उत्तर–
भारत में 1970 में ठेकेदार श्रमिक (नियमितिकरण और उन्मूलन) अधिनियम 1970 पारित किया गया था। जिस का उद्देश्य उद्योंगों में ठेकेदार श्रमिकों का नियमितिकरण करना और आवश्यक होने पर उस का उन्मूलन करना था। लेकिन यह अधिनियम अपने उद्देश्यों के सर्वथा विपरीत सिद्ध हुआ। इस में प्रावधान है कि कोई भी उद्योग प्रतिबंधित श्रेणी के अतिरिक्त अन्य सभी स्थानों पर ठेकेदार श्रमिक नियोजित कर सकेगा। प्रतिबंध लगाने का काम केन्द्र और राज्यों की सरकारों के जिम्मे छोड़ दिया गया। केंद्र ने कुछ नियोजनों में ठेकेदार श्रमिकों के नियोजन को प्रतिबंधित किया। लेकिन राज्यों ने इस में कोई रुचि नहीं दिखाई। आज स्थिति यह है कि कोई भी उद्योग कितने ही ठेकेदार श्रमिक नियोजित कर सकता है। हालत यह है कि पूरे के पूरे कारखाने ठेकेदार श्रमिकों से चलाए जा रहे हैं। न कोई देखने वाला है न कोई पूछने वाला है।
किसी भी उद्योग के किन्हीं नियोजनों में ठेकेदार श्रमिकों के नियोजन के उन्मूलन के लिए कार्यवाही तभी संभव है जब कि उस उद्योग के श्रमिक किसी यूनियन में संगठित हों और वह यूनियन राज्य सरकार के समक्ष इस तरह की मांग करे। राज्य सरकार उस मांग पर विचार कर के ठेका श्रमिकों के नियोजन को प्रतिबंधित कर सकती है। यह प्रक्रिया ऐसी है कि मजदूरों की मांग पर कभी भी किसी उद्योग में ऐसा प्रतिबंध लगाया ही नहीं जा सकता।
आप के मामले में स्थिति यह है कि आप यदि अपने नियोजन के मामले में ठेकेदार श्रमिक उन्मूलन के लिए किसी यूनियन के माध्यम से उपयुक्त सरकार को आवेदन करें तो भी दो-तीन वर्ष इस कार्यवाही में लग जाएंगे और फिर भी आवश्यक नहीं है कि राज्य सरकार ठेका श्रमिक नियोजन का उन्मूलन कर ही दे। यदि ऐसा हो भी जाए तो वर्तमान में ठेकेदार के माध्यम से काम कर रहे श्रमिकों को ही कंपनी के नियोजन में लिया जाएगा यह बाध्यकारी नहीं है। कंपनी अपने हिसाब से नए श्रमिकों का नियोजन कर लेगी और आप को नौकरी से निकालने की जरूरत भी नहीं। ठेकेदार के साथ ही आप का उन्मूलन भी हो जाएगा।
यदि आप के पास ऐसे सबूत और गवाहियाँ हों जिन से आप लोग यह साबित कर सकते हों कि वास्तव में आप का नियोजन कंपनी द्वारा किया गया है और ठेकेदार की उपस्थिति केवल आड़ लेने के लिए की गई है तो आप इस मामले में अपनी ट्रेडयूनियन के माध्यम से औद्योगिक विवाद उठा सकते हैं। लेकिन देश भर में औद्योगिक न्यायाधिकरणों और श्रम न्यायालयों की हालत यह है कि इस विवाद को निपटने में इतना समय लग जाएगा कि आप के लिए यह विवाद उठाना निरर्थक हो जाएगा।
आज ठेकेदार श्रमिकों के लिए देश में न्याय का कोई वास्तविक अवसर उपलब्ध नहीं है। ठेकेदार श्रमिकों को न्याय केवल ठेकेदार श्रमिक (नियमितिकरण और उन्मूलन) अधिनियम 1970 को हटा कर उस के स्थान पर एक नया कानून बनने पर ही प्राप्त हो सकता है जिस में प्रावधान हो कि कोई भी उद्योग केवल उन्हीं नियोजनों में ठेकेदार श्रमिक नियोजित कर सकता है जिन के लिए उस ने सरकार से ऐसी अनुमति प्राप्त कर ली हो। लेकिन इस तरह का कानून बनाए जाने की मांग न तो किसी श्रम संगठन ने अभी तक उठाई है और न ही किसी राजनैतिक दल का इस ओर ध्यान है। उन राजनैतिक दलों का भी नहीं जो घोषित रूप से स्वयं को श्रमिक वर्ग का दल कहते हैं।
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5 Comments
sabse pehle to jaankaari ke liye shukriya, ab ye bataiye aap itna waqt kaise nikaalte hain ki itne facts ikattha karein…aapke is spirit ke liye best of luck
बहुत बढिया जानकारी.
रामराम.
श्रमिकों के शोषण का किसी के पास भी उपचार नही है कितनी बडी विडंबना है । अच्छी जानकारी है धन्यवाद्
अच्छी जानकारी.
जानकारी का आभार!!