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तीसरा खंबा तीसरे वर्ष में

ज सुबह गलती हो गई।  कानूनी सलाह का आलेख जो तीसरा खंबा पर पोस्ट होना था वह अनवरत पर पोस्ट हो गया। गलती पता लगने पर ठीक कर ली गई। गलती को ठीक करने पर पता लगा कि तीसरा खंबा के जन्म के और मेरी ब्लागरी के दो साल पूरे हो चुके हैं। तीसरा खंबा मेरा पहला ब्लाग है और इस पर पहला आलेख 28 अक्टूबर 2007 को आया था।  बहरहाल तीसरा खंबा का तीसरा साल आरंभ हो चुका है, यह  पोस्ट तीसरे साल तीसरी और तीसरा खंबा की 384वीं पोस्ट होगी। तीसरा खंबा को 35950 बार देखा जा चुका है।
ब तीसरा खंबा आरंभ किया था तो मन में यही था कि यह ब्लाग देश की न्याय प्रणाली और कानून पर केंद्रित रहेगा।  मैं वकालत के पेशे में लोगों को न्याय प्राप्त करने में सहयोग करने के साथ-साथ अपनी दाल-रोटी कमाने के उद्देश्य से आया था। पहले अपने जन्मनगर बाराँ में काम आरंभ किया। किन्तु एक वर्ष के अनुभव ने ही मुझे यह जता दिया कि यदि यहाँ वकालत कर के अपनी दाल-रोटी चलानी है तो अपराधियों की या फिर चंद धनिकों की पैरवी करनी पड़ेगी और वह भी उन्हें उन के खुद के दुष्कृत्यों के लिए दंडित होने से बचाने अथवा उन्हें मिलने वाली सजा को कम कराने के लिए। राजस्थान की उन दिनों की औद्योगिक नगरी कोटा हमारा जिला मुख्यालय था। वहाँ संभाग का श्रम न्यायालय स्थापित हुआ ही था। मैं श्रमिकों की पैरवी का सपना लिए कोटा चला आया।  किसी नौकरी से निकाले हुए श्रमिक का मुकदमा लड़ना और उसे फिर से नौकरी पर पहुँचा देना बहुत सकून का काम था। यहाँ पंद्रह वर्ष तक खूब काम किया। जिस ने दाल-रोटी भी दी, सर पर छत भी दी और  बहुत सारा सकून और सम्मान भी दिया। लेकिन इस बीच अदालत में क्षमता से कई गुना मुकदमो की संख्या ने न्याय को विलंबित कर दिया। आरंभ में जिस श्रमिक को दो-तीन वर्ष में निर्णय मिल जाता था, अब वह कम से कम दस साल विलंबित होने लगा। नतीजा यह हुआ कि परिस्थिति का मजबूर श्रमिक औनी-पौनी राहत पर समझौते करने लगा। यह न्याय की दुर्दशा थी कि न्याय देरी से न्याय मिलने पर विफल होने की परिस्थिति ने न्यायार्थी को अन्याय को स्वीकार करने पर विवश कर दिया था। इस से काम में कमी हुई। मैं ने दीवानी और फौजदारी वकालत की ओर भी रुख किया तो वहाँ भी कमोबेश यही हालत थी।  
न्यायार्थी कि अन्याय को स्वीकार कर लेने की विवशता ने मुझे इस बात के लिए प्रेरित किया कि किसी न किसी स्तर पर इस के लिए आवाज उठानी होगी और यह आवाज उठाने की पहल कोई वकील ही कर सकता है। वास्तव में यह सब इस लिए हो रहा था कि देश में विकास और जनसंख्या में वृद्धि के मुकाबले न्यायालय बहुत कम रह गए थे। मुझे हिन्दी ब्लाग जगत एक नया माध्यम मिला जहाँ से इस आवाज को उठाया जा सकता था और न्याय प्रणाली में हो रही इस गड़बड़ी की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया जा सकता था। तीसरा खंबा इस काम को विगत दो वर्षों में कितना कर पाया इस का मूल्यांकन तो इस के पाठक ही कर सकते हैं।  
स बीच पाठकों की प्रतिक्रियाओँ से लगा कि देश के कानूनों की जानकारी भी इस ब्लाग के माध्यम से दी जा सकती है। कानूनों की जानकारी देते देते लोगों की समस्याएँ सामने आने लगीं और कानूनी सलाह दिया जाना आरंभ किया गया। धीरे-धीरे कानूनी सलाह का यह काम बढ़ता चला गया। आज तीसरा खंबा के पास हमेशा दस से बीस कानूनी प्रश्न बने रहते हैं। अनेक लोगों को मेल द्वारा भी सलाह दी गई है। पाठकों में यह काम बहुत लोक

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