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तीसरा खंबा पर कानूनी सलाह….. कोर्ट मैरिज या आर्यसमाजी विवाह?

वकीलों में एक कहावत है – “किसी को मुफ्त सलाह नहीं देनी चाहिए, क्यों कि मुफ्त सलाह पर न तो मुवक्किल विश्वास ही करता है, और न ही अमल।”



यह कहावत 100 तो नहीं, लेकिन 95 प्रतिशत सच ही है। लेकिन तीसरा खंबा के नौ माह से कुछ ही अधिक जीवन काल में कुछ साथियों ने समय समय पर सलाह प्राप्त की और उस पर अमल भी किया। इस तरह तीसरा खंबा ने उस कहावत में सेंध लगा दी।

तीसरा खंबा अपने प्रारंभ से ही यह कहता रहा कि उस से कानूनी सलाह प्राप्त की जा सकती है। लेकिन किसी पाठक ने सलाह लेना उचित नहीं समझा। कंट्रेक्ट कानून पर चल रही सहज श्रंखला ने लोगों के विश्वास को जीता और सब से पहले बाल किशन जी ने पूछा कि क्या वे व्यक्तिगत मामलों में सलाह ले सकते हैं? इस पर तीसरा खंबा के साइड बार पर प्रोफाइल के नीचे टिप्पणी लगा कर ई-पता सहज सार्वजनिक किया गया। उस के बाद जो सबसे पहला मेल मिला उस में एक मांगलिक प्रश्न पूछा गया था …………….
प्रश्न……
“नमस्कार सर,
    मैं कोर्ट मैरिज करना चाहता हूँ, मेरी जाति जाट है, और मेरी साथी की राजपूत। सर, जानना चाहता हूँ कि कोर्ट मैरिज की प्रक्रिया क्या होती है, मैं ने सुना है कोर्ट में शादी करने से पहले नोटिस निकाला जाता है जिस में दोनों विवाह करने वालों का नाम पता बोर्ड पर लगाया जाता है।
    सर, मैं कुछ समय के लिए चाहता हूँ कि हमारी शादी के बारे में किसी को पता नहीं चले क्यों कि इस से हम दोनों की जान खतरे मे पड़ सकती है और हम कुछ कर भी नहीं सकेंगे। क्या ये हो सकता है,  नोटिस न निकले या फिर हम आर्य समाज मे शादी कर लें।
    आप बताएँ हमारे लिए क्या ठीक रहेगा?”




मैं इस सवाल का उत्तर प्रश्नकर्ता को ई-मेल पर दे चुका हूँ। लेकिन प्रश्नकर्ता की पहचान छिपा कर सवाल और उस के उत्तर को सार्वजनिक करना उचित समझा।

आज भी हमारे कुछ महानगरों को छोड़ कर बाकी पूरे देश में जाति में और परिवार की इच्छा से विवाह करना बाध्यता है। इसी कारण से अनेक लोग वयस्क होते हुए भी अपनी इच्छा से विवाह नहीं कर पाते। कर लेते हैं तो उन्हें पुलिस, कचहरी, परिवार और समाज से जो कुछ भुगतना पड़ता है, उस के किस्से आप को इलाकाई समाचार पत्रों में रोज पढ़ने को मिल सकते हैं। इस कारण से यह सवाल और उत्तर महत्वपूर्ण है।
कोर्ट मैरिज विशेष विवाह अधिनियम-1954 के अंतर्गत होता है। इस अधिनियम की धारा 6 में यह कहा गया है कि विवाह करने के पहले एक नोटिस उस जिले के विवाह पंजीयक को देना होगा जिस जिले में विवाह करने वाले युगल में से कोई एक विगत 30 दिनों से अधिक से निवास कर रहा होगा। इस नोटिस को विवाह पंजीयक अपने कार्यालय में एक रजिस्टर में अंकित करेगा। यह रजिस्टर एक खुला रजिस्टर होगा जिसे कोई भी देख सकेगा। इस के अलावा कार्यालय के सब को दिखाई देने वाले स्थान पर नोटिस की एक प्रति चिपकाई जाएगी। जहाँ युगल में से एक किसी दूसरे जिले का निवासी है वहाँ उस जिले के विवाह पंजीयक को नोटिस की एक प्रति भेजी जाएगी जो कि वह अपने कार्यालय के दिखाई देने वाले स्थान पर चिपकाएगा।
ऐसा नोटिस देने की तिथि के एक माह उपरांत तथा तीन माह पूरे होने के पूर्व विवाह सम्पन्न किया जा सकता है। इस बीच यदि विवाह के संबंध में किसी व्यक्ति ने आपत्तियाँ प्रस्तुत कीं तो उन का निपटारा भी किया जाएगा।
इस तरह यह प्रक्रिया इतनी जटिल बना दी गई है कि कोई युगल जिसे जाति, धर्म, समाज और अन्य तरह से कोई बाधा है तो वह इस रीति से विवाह नहीं कर सकता। ऐसे में जो हिन्दू युगल हैं वे आर्य पद्धति से विवाह करते हैं, और उन्हें ऐसा ही करना चाहिए। 
प्रश्न कर्ता को मेरा उत्तर निम्न था……
उत्तर – आप की स्थिति मैं बहुत अच्छी तरह समझ रहा हूँ। कोर्ट मैरिज में नोटिस तो कानूनी आवश्यकता है, इसलिए निकाला ही जाएगा। आप के लिए आर्यसमाजी विवाह करना ही उत्तम रहेगा। उस के लिए आप दोनों के आयु के प्रमाण पत्रों की आवश्यकता होगी। आप दोनों के सैकण्डरी स्कूल प्रमाण पत्र से काम चल जाएगा। और आप दोनों को यह शपथ-पत्र नोटेरी पब्लिक से प्रमाणित करवा कर देना होगा कि आप दोनों अविवाहित और विवाह योग्य आयु के हैं। अपने मित्रों में से कुछ को साक्षी के बतौर साथ भी रखना होगा। आर्य समाज वाले विवाह का प्रमाण पत्र जारी करते हैं उस के आधार पर आप मैरिज रजिस्ट्रार के यहां अपने विवाह का पंजीकरण करवा सकते हैं। आर्य समाज वाले विवाह की सामग्री खुद देते हैं लेकिन उस की कीमत और शुल्क/अनुदान के रूप में कुछ राशि लेते हैं, जो दो से पाँच हजार तक की हो सकती है। आर्य विवाह को हिन्दू विवाह के रूप में कानूनी मान्यता प्राप्त है।

— दिनेशराय द्विवेदी
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