दहेज देने का अपराध क्यों किया? अब मुकदमा भुगतो!
|आज राजस्थान पत्रिका और दैनिक भास्कर में रोचक समाचार है। वैशाली नगर जयपुर के निवासी इकबाल राय जैन ने न्यायिक मजिस्ट्रेट क्रम-ग्यारह जयपुर शहर, जयपुर की अदालत में एक परिवाद पेश कर कहा है कि 2004 में उन के पुत्र डॉ. अमित जैन का विवाह कोमल के साथ हुआ। शादी से पहले ही उन्हों ने किसी भी तरह के सामान व दहेज से स्पष्ट इनकार कर दिया था, लेकिन शादी के दूसरे दिन ही कोमल के माता-पिता घर पर आए और मना करने के बाद भी यह कहते हुए सामान लेने को विवश किया कि हम दहेज नहीं दे रहे, बल्कि स्त्रीधन के रूप में अपनी बच्ची को दे रहे हैं। मना करने के बाद भी वे सारा सामान छोड़ गए। बाद में वे लगातार उन का मकान पुत्रवधु के नाम करवाने के लिए दबाव डाल रहे हैं।
अदालत ने कोमल के ससुर इकबाल राय जैन के परिवाद पर प्रसंज्ञान लेते हुए दिया कि – मामले में तीनों अभियुक्तों के खिलाफ प्रथम दृष्टया अपराध बनना पाया जाता है। इसलिए उनके विरूद्ध दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 की धारा 3 व 4 के तहत प्रसंज्ञान लेने के पर्याप्त आधार हैं। अदालत ने परिवादी की पुत्रवधु कोमल जैन, उसके पिता बलराम सहाय और माता आशा देवी को दो सौ रूपए के जमानती वारंट से मामले की अगली तारीख पेशी 5 अक्टूबर को अदालत में हाजिर होने के लिए कहा है।
परदे के पीछे की कहानी यह भी है कि कोमल जैन ने भी पति अमित जैन व अन्य परिजनों पर लुधियाना में दहेज प्रताडना व और जयपुर में घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत मामले दायर कर रखे हैं। लगता है कि इन मुकदमों से पीड़ित हो कर ही ससुर ने अपनी पुत्रवधु और उस के माता पिता के विरुद्ध यह परिवाद न्यायालय में प्रस्तुत किया है। दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 की धारा 3 में दहेज लेना व देना दोनों अपराध हैं। धारा 4 में दहेज की मांग करना एवं दहेज के लिए विवश करना अपराध है।
जिस तरीके से भा.दं.संहिता की धारा 498-ए और 406 का दुरुपयोग पति और उस के परिजनों को परेशान करने के लिए बड़ी मात्रा में किया जा रहा है। उस के प्रतिवाद के लिए यह एक नया तरीका खोजा गया है। इस मामले में असलियत क्या है यह तो अदालत के सामने गवाह-सबूत पेश होने पर पता लगेगा। लेकिन यह मामला बरसों दोनों परिवारों को परेशान करता रहेगा और विवाह को बचाए जाने की संभावना क्षीण होती जाएगी। कानूनों और अदालतों के इस जाल में देश भर के लाखों परिवार बरबाद हो रहे हैं और विवाह संस्था की दुर्गति सामने आ रही है। इस का केवल एक ही उपाय है कि वैवाहिक विवादों के निपटारे के लिए अधिक न्यायालय हों और किसी भी मामले में एक वर्ष की अवधि में निपटारे की पुख्ता व्यवस्था हो।
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11 Comments
pronounced log you’ve chalk up
I’d come to engage with you one this subject. Which is not something I typically do! I love reading a post that will make people think. Also, thanks for allowing me to speak my mind!
अपने बिल्कुल सही मुद्दे को लेकर लिखा है! हमारे देश में अभी भी ऐसे जगह हैं जहाँ दहेज़ लेने को जुर्म नहीं कहते बल्कि उसे और प्रोत्साहित किया जाता है!
हमारे समाज मे कुछ कानून के द्लाल है जो अपने मोहल्ले मे नेता गिरि भी करते है और सबसे ज्यादा समस्याएं इन्ही की वजह से पैदा होती है । क्यों कि अदालतोँ कि कार्यवाही तो भुक्तभोगी ही जानता है ।
ये तो बहुत अच्छा समाचार है शायद इस तरह ही दहेज की समस्या सुलझ जये और इस कानून का दुरुप्योग करने वाले भी किसी तरह सुधर जायें देखें क्या होता है आभार्
सिक्के का दूसरा पहलू 🙂
सच है कानून के भी तो दो पहलु हैं ..तो जाहिर है कभी न कभी ये भी होना ही था …झा जी बिल्कुल सही कह रहे हैं.
रामराम.
मुंह बाए बैठे भूखे-नंगों के पीछे एसी ही लात वाजिब है.
द्विवेदी जी..बिलकुल ऐसी ही घटना ..कल दिल्ली की अदालत में बिलकुल ऐसा ही मुकदमा दायर हुआ है..कर्करदूमा कोर्ट में ..जिसे दिल्ली की अदालत में इस तरह का पहला मुकदमा बताया जा रहा है..पूरी खबर दैनिक जागरण में छपी है….सच है कानून के भी तो दो पहलु हैं ..तो जाहिर है कभी न कभी ये भी होना ही था …
कानूनी दावपेंच आम आदमी की समझ से बाहर हैं, इन हथकंडो और शिकार व्यक्तियों को बाद में जलालत की जिन्दगी कई बार मौत से भी बदतर लगती है ! पारंपरिक सामाजिक परिवेश और साधारण गलतियाँ भी कई बार कानून की निगाह में संगीन अपराध होते हैं जिनका फायदा शातिर लोग खूब उठाते हैं और भुक्त भोगी बनते हैं हमारे बच्चे जिनके पर उड़ने से पहले ही काट दिए जाते हैं !
मगर यह आप जैसे जानकारों का विषय और चिंतन क्षेत्र होना चाहिए, हम जैसे लोग आपसे यह उम्मीद करते हैं कि कानून में व्यापक फेर बदल कर न्यायिक प्रक्रिया को आसान करवाने में जनमत तैयार करें !
सादर
हा हा सर बहुत मज़ेदार, मगर दुखद नेपथ्य की बात है यह। सच कहा आपने विवाह संस्था को बचाना मुश्किल हो रहा है अब। ऐसे न जाने कितने केस हम सब रोज़ देख रहे हैं। इसका एक उपाय तो है मगर वो भी कारगर होगा के नहीं यह कहना मुश्किल है।