दिल्ली की मजिस्ट्रेट अदालतों में चक्का जाम
|पिछले साल दिसम्बर में खबर थी कि एक टेलीफोन कंपनी ने एक ही दिन में बंगलुरू में 73000 मुकदमे चैक बाउंस के प्रस्तुत किए थे। तब भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि हम मुकदमा पेश करने वालों को तो ऐसा करने से रोक नहीं सकते। लेकिन अदालतों को कलेक्शन ऐजेण्ट नहीं बनने दिया जाएगा।
ठीक उसी समय चैक बाउंस के मुकदमें दिल्ली की मजिस्ट्रेट अदालतों का चक्का जाम कर चुकी थीं। ठीक सुप्रीमकोर्ट और संसद की नाक के नीचे।
पिछली दिसंबर में ही भारत के मुख्य न्यायाधीश कह रहे थे कि हमारे पास जरूरत की 16 प्रतिशत अदालतें हैं।
आश्चर्य की बात यह है कि अदालतें चल रही थीं और लोग उन पर विश्वास भी कर रहे थे और अब भी कर रहे हैं। हाँ अब निचले स्तर की अदालतें अपनी क्षमता से दुगने से भी अधिक काम निकाल रही हैं। लेकिन आने वाला काम उस से भी अधिक है। नतीजा है कि लंबित मुकदमों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। नवम्बर 2007 में किए गए एक सर्वेक्षण में बताया गया है कि दिल्ली की सेशन्स अदालतों में 67% फौजदारी मुकदमे एक से पाँच साल पुराने, 12% छह से दस वर्ष पुराने, 4% ग्यारह से पन्द्रह साल पुराने और 2% 15 साल से अधिक पुराने हैं। जब कि मजिस्ट्रेट अदालतों में 51% फौजदारी मुकदमे एक से पाँच साल पुराने, 21% छह से दस वर्ष पुराने, 7% ग्यारह से पन्द्रह साल पुराने और 1% 15 साल से अधिक पुराने हैं। किस्सा ये कि जिस मामले में एक-दो माह की सजा हो सकती है या अभियुक्त बरी हो सकता है, वे 15 साल से तो पेशियाँ भुगत रहे हैं। आगे अपील कोर्ट भी है।
मजिस्ट्रेट अदालतों में लंबित 55% मुकदमे चैक बाउंस मामलों के हैं। जब मैं ने इस तथ्य का उल्लेख कोटा में एक न्यायिक मजिस्ट्रेट से किया तो उन का कहना था कि यहाँ राजस्थान में भी स्थिति यही है। इस कानून का उपयोग अधिकांश उधार देने वाली वित्तीय संस्थाएँ ही कर रही हैं, और दुरूपयोग भी कम नहीं हो रहा है।
संसद जब यह कानून बना रही थी तब उस की सोच भी ऐसी न रही होगी कि एक कानून में संशोधन अदालतों पर इतना भारी पड़ेगा कि वास्तविक अपराधियों को सजा देने के लिए मुकदमे सुनने वाली अदालतें यकायक कुछ ही सालों में मुख्यतः कर्जा ले कर अर्थव्यवस्था की बिगड़ती हालत के कारण समय पर नहीं चुका सकने वाले लोगों को सजा देनें में इतनी व्यस्त हो जाएँगी कि उन्हें असली जुर्मों में पकड़े गए अभियुक्तों के मामले सुनने का वक्त ही नहीं मिलेगा और अपराधियों को सबूत नष्ट करने और होने का भरपूर अवसर प्राप्त हो जाएगा। दूसरी ओर कमाने वाला लगभग हर दूसरा व्यक्ति कर्जदार होने की दुर्दशा को प्राप्त हो जाएगा।
जहाँ अदालतों के लिए बजट मुहैया कराने का मामला है। दिल्ली सरकार का बजट पिछले दो वर्षों में 61% बढ़ा है तो अदालतों के बजट में केवल 37% की वृद्धि हुई है। आखिर न्याय को जनतंत्र में कब तरजीह मिलेगी?
आ. द्विवेदी जी,
परिवार एवं इष्ट मित्रों सहित आपको जन्माष्टमी पर्व की
हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ! कन्हैया इस साल में आपकी
समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करे ! आज की यही प्रार्थना
कृष्ण-कन्हैया से है !
‘लक्ष्मी पुत्रों’ के सामने सब असहाय हो गए हैं । न्याय भी अन्तत: पैसों वालों के लिए ही होता जा रहा है । अदालतों की दशा इन लोगों ने ‘जाते थे जापान, पहुंच गए चीन’ वाली बना दी है ।
बहुत ही सुन्दर विश्लेषण प्रस्तुत किया है आपने ।
ऐसे हालात तो हर जगह बन जा रहे हैं… सुचना के अधिकार पर कानून बना (आरटीआई) तो इससे जरुरत मंदों को फायदा तो हुआ पर साथ में एक आलेख पढने को मिला की सबसे ज्यादा इसका उपयोग सरकारी कर्मचारी अपने प्रोमोसन इत्यादि के बारे में जानने के लिए कर रहे हैं.ऐसे ही बंगलौर में एनएलएस की स्थापना हुई की कानून में अच्छे और ज्यादा लोगों की जरुरत है… स्कूल अन्तराष्ट्रीय स्तर पर विख्यात हुआ और उसके ग्रजुएट सारी बड़ी-बड़ी कंपनियों में विधि सलाहकार बनने लगे… सफलता तो ये भी है लेकिन जो मूल सोच थी इसे बनाने के पीछे वो तो नहीं !
अच्छा विश्लेषण और जानकारी. आभार.
एक ओर आर्थिक एवं तकनीकी उन्नति हो रही है, लेकिन दूसरी ओर तमाम सारी बातें हमें आगे बढने नहीं दे रही है.
आपका विश्लेषण: “
मजिस्ट्रेट अदालतों में लंबित 55% मुकदमे चैक बाउंस मामलों के हैं। जब मैं ने इस तथ्य का उल्लेख कोटा में एक न्यायिक मजिस्ट्रेट से किया तो उन का कहना था कि यहाँ राजस्थान में भी स्थिति यही है। इस कानून का उपयोग अधिकांश उधार देने वाली वित्तीय संस्थाएँ ही कर रही हैं …” एकदम से चौंका देता है.
उम्मीद है कि आप से प्रेरणा लेकर आप जैसे कम से कम सौ और भारतीय इस विषय पर विभिन्न भाषाओं में चिट्ठे लिख कर भारतीय जनमानस को जगा कर सन 2015 तक न्यायाकानून की स्थिति में आमूल परिवर्तन के लिये एक बहुत बडा जनमत तय्यर कर सकेंगे. मेरी शुभकामनायें!!
sab jagah se thak haar kar aadmi nyay ke mandir jaata hai,aur jab wahan bhi use rahat ki intezaar ki thaan mile to taklif hoti hai.sahi likha aapne,bas isi vyawastha par likhne se ghabrate hai patrakaar jinse sab ghabrate hain.bebak aur sateek lekhan ko pranaam
Peoples unrest leads to such factors – hope the situation calms down soon.
Sorry about typing in Angrezi .
I’m away from my PC –
Regards,
L