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दीवानी व फौजदारी मुकदमे में अंतर क्या है?

बबिता वाधवानी जी ने तीसरा खंबा पर एक टिप्पणी में कहा-

-दीवानी व फौजदारी मुकदमे में अंतर क्या है?  आज तक मालूम नहीं चला मुझे। 

दीवानी मामले-

दीवानी मामला वह है जिस में संपत्ति सम्बन्धी या पद सम्बन्धी अधिकार विवादित हो, चाहे ऐसा विवादित अधिकार धार्मिक कृत्यों या कर्मों सम्बन्धी प्रश्नों पर अवलम्बित क्यों न हो।  यहाँ बात भी तात्विक नहीं है कि वह पद किसी विशिष्ठ स्थान से जुड़ा है या नहीं।  जब ऐसे मामलों में कोई वाद न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तो वह दीवानी वाद या मुकदमा कहलाता है।

दीवानी अदालतों में काम बहुत रहता है और कुछ दीवानी मामले एक ही प्रकार की विशिष्ठ प्रकृति के होते हैं।  जैसे कृषि भूमि से सम्बन्धित मामले, मोटर यान या रेल दुर्घटना से संबंधित मामले, या श्रमिकों व उन के नियोजकों के मध्य विवाद, सरकारी कर्मचारियों की सेवा से संबंधित मामले आदि।  इस तरह के मामलों की संख्या अधिक होती है। इस कारण से इन के संबंध में संसद ने विशेष कानून बना कर इन्हें दीवानी न्यायालयों के क्षेत्राधिकार से बाहर करते हुए इन के लिए अलग से अधिकरण बना दिए हैं।  वैसे प्रकृति में ये सभी मामले दीवानी मामले हैं।

अपराधिक या फौजदारी मामले

भारत में भारतीय दंड संहिता तथा अन्य बहुत से कानूनों के द्वारा कुछ कृत्यों और कुछ अकृत्यों को दंडनीय अपराध घोषित किया गया है।  इन अपराधिक कृत्यों और अकृत्यों के लिए दंड निश्चित किया गया है।  ये सभी  मामले जिन में किसी व्यक्ति को कोई अपराध करने के लिए दंड दिए जाने हेतु विचारण किया जाए वे सभी मामले अपराधिक या फौजदारी मामले कहे जाते हैं।  उदाहरण के तौर पर यदि कोई व्यक्ति उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच द्वारा प्रदान किए गए निर्णय की पालना नहीं करता है तो उस के इस अकृत्य को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 27 के अंतर्गत  दंडनीय करार दिया गया है।  यदि कोई व्यक्ति इस धारा के अंतर्गत उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच के समक्ष परिवाद प्रस्तुत करता है तो यह मामला एक फौजदारी या अपराधिक या दांडिक मामला कहलाएगा और इस का विचारण फौजदारी मामलों की तरह होगा।

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