दो व्यक्ति, एक दूसरे के जमानती हो सकते हैं?
|जी. विश्वनाथ जी जैसे पाठक सब चिट्ठाकारों के पास हों।
कल के आलेख पर मुझे अपने चिट्ठाकारी जीवन की अब तक की सब से लम्बी टिप्पणी प्राप्त हुई, श्री जी. विश्वनाथ से। इन से आप सभी परिचित होंगे ही। ज्ञानदत्त जी उन के बारे में जानकारी दे चुके हैं। विभिन्न प्रान्तों के होते हुए भी दोनों की अभियांत्रिकी की शिक्षा मेरे गृह-प्रान्त राजस्थान के पिलानी में सम्पन्न हुई।
विश्वनाथ जी ने अपनी टिप्पणी में गारण्टी पर लिखे गए मेरे दो आलेखों का उल्लेख करते हुए, अपनी व्यथा-समाधान का कथा-सार बताते हुए दो प्रश्न पूछे थे। मैं ने उन प्रश्नों के उत्तर उन्हें उन के ई-पते पर देना चाहा, और उन के ई-पते की तलाश शुरू हुई।
कहते हैं तलाश करने पर ‘विश्वनाथ’ मिल ही जाते हैं, ई-पता मिले, न मिले। पता नहीं मिला। वे मिले, नुक्कड़ पर, एक अंग्रेजी-हिन्दी चिट्ठाकार के रूप में। मैं उन के दो ही आलेख पढ़ पाया और दावे से कह सकता हूँ कि उन का प्रत्येक आलेख अवश्य ही पठनीय होगा।
विश्वनाथ जी ने पूछा था…….
यदि एक व्यक्ति को किसी व्यक्ति या संस्था से ऋण प्राप्त करने के लिए किसी गारण्टी देने वाले जमानती की जरुरत हो और ऐसी ही गारंटी देने के लिए किसी अन्य व्यक्ति को भी जमानती की आवश्यकता हो, और वे दोनों अपने अपने ऋण प्रदानकर्ताओं को एक दूसरे की गारण्टी देते हुए एक दूसरे के जमानती हो जाएँ तो…
- क्या यह इन्तजाम कानून की नज़रों में वैध है?
- यदि दोनों अथवा दोनों में से एक ऋणदाता को इस बात का पता चलता, तो क्या वे कर्ज देने से इनकार करते?
उत्तर-
संविदा अधिनियम (इंडियन कॉन्ट्रेक्ट एक्ट) के अन्तर्गत गारण्टी एक त्रिपक्षीय संविदा है, जिस में जमानती (गारन्टर) ऋणदाता को इस बात की जमानत देता है कि यदि मूल ऋणी ने ऋण अदायगी में कोई चूक की तो वह मूल ऋणी के समस्त अथवा कुछ दायित्वों को पूरा करेगा।
कॉन्ट्रेक्ट एक्ट में अथवा किसी भी अन्य कानून में कहीं भी इस बात की मनाही अथवा रोक नहीं है कि कोई व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति की गारण्टी नहीं दे सकता जिस की गारण्टी उस ने पहले से दे रखी हो अथवा भविष्य में गारण्टी देने के लिए कोई अलग कॉन्ट्रेक्ट कर रखा हो। इस तरह विश्वनाथ जी के पहले प्रश्न का उत्तर है कि ऋण प्राप्त करने के लिए एक दूसरे की गारण्टी देना वैध है, अवैध नहीं। इस तरह का कॉन्ट्रेक्ट करना भी अवैध नहीं है।
उन का दूसरा प्रश्न कानून के मतलब का बिलकुल नहीं है। वह ऋणदाता की अपनी नीति पर निर्भर करता है। उन की ऐसी मंशा होती है तो वे जमानती के शपथ-पत्र या घोषणा-पत्र की मांग करते हैं, कि उस ने किसी अन्य व्यक्ति की गारण्टी तो नहीं दे रखी है, या वे इस गारण्टी के जीवित रहते, दूसरे ऋण की गारण्टी नहीं देंगे। आम तौर पर कोई भी ऋण-दाता यह प्रश्न नहीं पूछता है। हाँ, कोई भी ऋण-दाता एक व्यक्ति की एक से अधिक गारण्टी स्वीकार नहीं करता है।
विश्वनाथ जी द्वारा प्रश्न पूछा जाना, मेरे लिए ऐसी घटना थी जिस की मुझे बहुत दिनों से प्रतीक्षा थी। यदि पाठक इसी तरह प्रश्न करेंगे तो अन्य पाठकों को भी उस का लाभ प्राप्त होगा।
आशा है, आगे से मुझेप्रश्नों की कमी न रहेगी। प्रश्न कानून के सभी पहलुओं पर पूछे जा सकते हैं।
मेरे पास कोई भी जमानती नहीं है मई क्या karu और कोई भी मेरी हेल्प नहीं क्र रहा
aapne achchi jankaari di….mujhe bhi kai baar investigetion ke dauran in kaanuni maslon se ulajhna padta hai..ijazat ho to main bhi apne prashn prastut karu?
ये तो अच्छी जानकारी हुई… और विश्वनाथ जी की टिपण्णी तो अपने आप मे किसी ब्लॉग-पोस्ट से कम नहीं होती.
बहुत दिनों से एक सवाल मैं भी पूछना चाह रहा था आपसे… एक program है NLS Bangalore मे ‘Master of Business Law'(http://www.nls.ac.in/academic_programmes_distance_education.html) आपसे समीक्षा करवाने की सोच रहा था… (आपको बताता चलूँ की मेरा अजीब शौक है पढ़ते रहने का vaise अभी तो लाइन मे कई program और परीक्षाएं है पर ये भी एक है जिसे कुछ महीनो के बाद चालु करने का मन है). जहाँ तक मुझे पता है ये डिग्री प्रक्टिस करने कि इजाजत तो नहीं देगी पर बिज़नस और इनवेस्टमेंट बैंकिंग से जुड़ा होने के कारण अच्छा ज्ञान वर्धक तो अवश्य होगा. (और मुझे पसंद भी शायद इसी ज्ञान वर्धन की वजह से आया ) कभी समय मिले तो इसके बारे मे कुछ बता दीजियेगा.
A very interesting Q. & answer ensued from it –
शुक्रिया , कायदा अपनी जगह कायम रहता है न्याय की देवी की मूर्ति कितनी प्रभावशाली है –
यह ब्लोग “लो” विषयक खजाना बनता जा रहा है –
बधाई !
अच्छी जानकारी,धन्यवाद
अच्छी जानकारी मिली। धन्यवाद।
अच्छी जानकारी. आभार. इस तरह की जानकारियों से बहुतों को लाभ होगा.
अनूप शुक्लाजी,
ज्ञानदत्तजी ने जो कहा, वह मैं भी कहने वाला था।
लेकिन दूसरे शब्दों में।
हम पूछने वाले थे कि यह कार “स्थिर संपत्ति” है या “अस्थिर संपत्ति”।
सर्विस करते समय मेरे कई मित्र थे जिनके पास मोटर गाड़ी थी लेकिन केवल “कनवेयन्स अलौवन्स” के लिए। अपने अपने गराज़ में महीनों तक अचल पढ़े रहते थे, और उसपर धूल जमा होती थी। कुछ एक तो गाड़ी चलाना भी नहीं जानते थे। बस “आर सी” बुक काफ़ी था जिसे संभालकर रखा जाता था।
द्विवेदीजी।
अपने अपने ब्लॉग पर ज्ञानदत्तजी ने और आपने जो सम्मान मुझे दिया उसके लिए आभार। इतने सारे ब्लॉग्स लिखे थे लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। बस सही जगह पर कुछ टिप्पणी करने पर मैं हिन्दी ब्लॉग जगत में एक छोटा “सेलेब्रिटी” बन रहा हूँ! ज्ञानदत्तजी ने आप सबसे मेरा परिचय कराया, और फ़लस्वरूप “ई मित्रों” की संख्या बढ़ने लगी है। ई मेल का आदान प्रदान होने लगा है।
मेरा e mail id जब किसी के ब्लॉग पर छापता हूँ तो किसी कारण वह मिट जात है। शायद चिट्ठाकारों की नीति है यह या फ़िर ब्लॉग software इसे छाँटकर हटा देता है। चलिए इस बार मेरा email id चालाकी से घोषित करता हूँ और देखते हैं कि यह छपता है कि नहीं।
gvshwnth AT याहू डॉट कॉम
geevishwanath AT जीमेल डॉट कॉम
और भी बडी बडी हस्तियाँ हैं जिनके ब्लॉग अत्यंत पठनीय हैं और मुझे खेद है की हर रोज़ सबके यहाँ जाकर टिप्पणी करने में असमर्थ हूँ, समय की कमी के कारण। लेकिन आशा करता हूँ की धीरे धीरे, एक एक करके सबके यहाँ पधारकर नमस्ते करके कोई छोटी मोटी टिप्पणी छोड़ सकूँगा।
यदा कदा, यदि विषय रोचक हो, तो एक लम्बी टिप्पणी भी लिख भिजने की योजना है।
इस बीच यदि कोई मुझसे सीधा संपर्क करना चाहता है तो ऊपेर दिए गये email id का प्रयोग करें।
मिलते रहेंगे।
एक बार फ़िर आपको धन्यवाद देना चाहता हूँ।
शुभकामनाएं।
गोपालकृष्ण विश्वनाथ, जे पी नगर, बेंगळूरु
@ अनूप शुक्ल – यह तो शायद इस पर भी निर्भर करे कि वह कार है कि बेकार है!
(इसे सीरियसली न लिया जाये।)
सुन्दर! एक व्यक्ति के पास एक कार है। उस कार की कीमत को आधार बनाकर वह कितने लोगों की जमानत दे सकता है?