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शुभकामनाएँ! न्याय प्राप्ति के लिए संघर्ष के संकल्प पूरे हों।

पाठकों, मित्रों, सहयोगियों और शुभचिंतकों!

2013_0फिर से एक नया वर्ष आरंभ हो गया है।  यह नया वर्ष पूरी दुनिया के सामने, भारतवर्ष के सामने नई चुनौतियाँ ले कर खड़ा है।   दुनिया एक ऐसे दौर में पहुँच चुकी है जहाँ मनुष्य सभ्यता एक नया रूप तलाश कर रही है। मनुष्य ने जांगल और बर्बर अवस्थाओं में भोजन  संग्रह करने और पशुओं का शिकार करते हुए पशुपालन सीखा जिस से उसे एक ऐसी दौलत हाथ लगी जिसे वह सहेज कर रख सकता था। उसे जीवन को बनाए रखने के लिए अब लगातार दर-दर भटकने की आवश्यकता नहीं रह गई थी। उसे सांस ले कर फुरसत से सोचने का वक्त मिल गया था।  आपसी संघर्ष में अपने अस्तित्व के लिए जिन दूसरे मानव समूहों को वह समूल नष्ट कर देने या अपनी पहुँच से दूर भगा देने का प्रयत्न करता था, अब उन्हें अपनाना आरंभ कर सकता था।  यहीं से दास प्रथा का आरंभ हुआ, समाज वर्गों में विभाजित हुआ और मनुष्य समाज की सभ्यता का युग प्रारंभ हो गया। आर्थिक गतिविधियों और उत्पादन के साधनों पर चंद लोगों के कब्जे से आरंभ हुआ सभ्यता का यह दौर आज वहाँ पहुँच गया है जहाँ मनुष्य समाज की सभी पिछली व्यवस्थाएँ पुरानी पड़ गई हैं। दास युग को बीते सदियाँ गुजर गईं। दुनिया में सामंत अब भी हैं पर वे अंतिम साँसें गिन रहे हैं। विज्ञान के आविष्कारों ने समाज को एक औद्योगिक समाज में बदल दिया है। आज यह औद्योगिक समाज विकास के पूंजीवादी दौर में है जिस में पूंजी ही विकास की मूल कुंजी हो गई है जिस पर दुनिया के चंद लोगों का प्रभुत्व है। वर्तमान दौर की इस व्यवस्था के समर्थक दावा करते हैं कि इस से बेहतर अवस्था संभव नहीं है। पर क्या यह सही है?

स व्यवस्था के सिरमौर राष्ट्र  और उन राष्ट्रों में भी सिरमौर देश अमरीका आज भी संकटों से जूझ रहा है। उस की अर्थ व्यवस्था की टांग एक संकट से निकलती है और दूसरे में फँस जाती है।  इन संकटों का कोई हल वे प्रस्तुत नहीं कर पा रहे हैं। दूसरी और दुनिया की अधिकांश आबादी इस व्यवस्था में छटपटा रही है। उसे प्रतीत होता है कि उस के साथ न्याय नहीं हो रहा है। अन्यायों की झड़ी लगी है। यही कारण है कि अमरीका से ले कर यूरोप, मध्य ऐशिया और भारत तक के लोगों को किसी न किसी बहाने मौजूदा व्यवस्थाओं के विरुद्ध सड़कों पर आना पड़ रहा है।  गए वर्ष के जाते जाते हमारे देश के लोगों को न्याय की इस मांग के लिए सड़कों पर आना पड़ा।  वे प्रशासन द्वारा खड़ी की गई तमाम बाधाओं को तोड़ते हुए देश की सर्वोच्च सत्ता के प्रतीक रायसिना हिल्स के विजय चौक तक पहुँच गए। उन्हें हटाने के लिए सत्ता को उन पर वाटर कैनन, आँसू गैस और लाठियों का प्रयोग करना पड़ा। रायसिना हिल्स तक पहुँचने वाले इन लोगों के हाथों में जो तख्तियाँ थीं उन पर लिखा था हम न्याय चाहते हैं, WE WANT JUSTICE !

न्याय की इस तलाश ने ही मनुष्य के बीच दास-स्वामी संबंधों को किसान-भूस्वामी और पूंजीपति-उजरती मजदूर संबंधों में बदला था। लेकिन मनुष्य की न्याय की यह तलाश अब भी जारी है। जब तक मनुष्य सभी तरह के शासक-शासित संबंधों से मुक्त नहीं हो जाता उस की न्याय की यह तलाश बनी रहेगी। न्याय की तलाश पूरी हो जाने पर, समाज में न्याय की पूर्णता प्राप्त कर लेने पर भी उस का दायित्व यह तो रहेगा ही कि न्याय की यह व्यवस्था किसी और वजह से टूट न जाए। खैर!

मनुष्य की यह तलाश कब पूरी होती है?  यह तो आने वाला समय बताएगा।  लेकिन हम जितना न्याय समाज में स्थापित कर चुके हैं उसे बनाए रखना और उस के विकास के लिए नए संकल्प करने और उन्हें पूरा करने का कार्यभार हमारे सिरों पर खड़ा है।  हम उस से मुहँ छिपा कर भाग नहीं सकते। भारतीय समाज जो आज संविधान से संचालित हो रहा है। उस में न्याय के जो नियम और कानून हैं मौजूदा समय में समाज को संचालित करने के लिए अपर्याप्त नहीं है। उन्हें लगातार विकसित करते रहना आवश्यक है। लेकिन सब से अधिक जरूरी है कि हम उन नियमों कानूनों के पालन को सुनिश्चित करें। जो भी विवाद हैं उन का शीघ्रता से निपटारा हो। यह नहीं कि विवादों को बरसों बरस लटका कर हम गाड़ी को लुढ़काते रहें।  भारतीय जनता के सामने और शासन व्यवस्था के सामने यही सब से बड़ी चुनौती है। हमारे शासक इस चुनौती से बचते रहे हैं। हमें चाहिए कि हम उन्हें न बचने दें। आज हमारा सब से पहला संकल्प यही होना चाहिए कि वर्तमान कानून और नियमों को भारतीय समाज में लागू किया जाए। इस के लिए हमारी सरकारों को जिम्मेदारी उठाने की जरूरत है। और वे जिम्मेदारी उठाने से पीछे हटती हैं तो उन्हें बाध्य करना पड़ेगा। यदि वे अक्षम सिद्ध होती हैं तो उन्हें हटा कर नई बनानी पड़ेंगी।

न्याय की स्थापना के लिए अपना योगदान करने के लिए ही कोई पाँच वर्ष पूर्व एक ब्लाग के रूप में तीसरा खंबा अस्तित्व में आया था। पिछले वर्ष से इसे एक वेबसाइट का रूप प्रदान किया गया है।  यहाँ न्याय की स्थापना के लिए विमर्श हो यह जरूरी है। इस बीच न्याय की तात्कालिक आवश्यक्ताओं की पूर्ति के लिए और लोगों की रोज मर्रा की समस्याओं के हल प्रस्तुत करने हेतु हम ने लोगो की कानून संबंधी समस्याओ के हल प्रस्तुत करना आरंभ किया है। लेकिन वे इतनी बड़ी संख्या में हमारे पास आती हैं कि सब का उत्तर देना संभव नहीं हो पा रहा है। लोग यदि अपनी समस्याओं के लिए प्रश्न पूछने के स्थान पर इस वेबसाइट पर अपनी समस्याओं के हल पहले से प्रस्तुत की जा चुकी समस्याओं में तलाश करें तो बहुत लोगों को अपनी जिज्ञासाओं के उत्तर और समस्याओं के हल मिल सकते हैं। उन्हें नए सिरे से प्रश्न पूछने की आवश्यकता नहीं होगी। इस से तीसरा खंबा को न्याय व्यवस्था पर विमर्श के लिए समय और स्थान भी उपलब्ध हो सकेगा। नए वर्ष में तीसरा खंबा की कोशिश होगी कि अधिक से अधिक लोगों की समस्याओं के हल प्रस्तुत किए जाएँ साथ ही न्याय- व्यवस्था पर विमर्श भी जारी रह सके।

तीसरा खंबा के सभी पाठकों, मित्रों, सहयोगियों और शुभ चिंतकों को नववर्ष की शुभकामनाएँ कि वे न्याय की स्थापना के लिए कोई संकल्प कर सकें और अपने सभी संकल्पों को पूरा कर सकें।

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