नगर निगम और न्यायालयों का स्वरूप : भारत में विधि का इतिहास-22
|नगर निगमों का स्वरूप
1726 के चार्टर से तीनों प्रेसिडेंसी नगरों में नगर निगम स्थापित किए गए। मद्रास में नगर निगम पहले से था लेकिन अब नए चार्टर ने इस का स्वरूप बदल दिया था और तीनों नगर निगम एक ही प्रकार के हो गए थे। प्रत्येक निगम में एक मेयर और नौ ऐल्डरमेनों की नियुक्ति की व्यवस्था की गई थी, जिन में से मेयर और सात ऐल्डरमेन सिर्फ अंग्रेज हो सकते थे। दो ऐल्डरमेन मित्रतापूर्ण देशी नरेश या शासक के प्रजाजनों में से हो सकते थे। मेयर का कार्यकाल एक वर्ष निर्धारित था। ऐल्डरमेन भारत में निवास तक या जीवित रहने तक पद पर रह सकते थे। हर वर्ष ऐल्डरमेन स्वयं में से किसी को मेयर चुन लिया जाता था। सपरिषद गवर्नर अवचार का दोषी पाए जाने पर किसी ऐल्डरमेन को पदच्युत कर सकता था। पदच्युति के विरुद्ध किंग-इन-काउंसिल में अपील की जा सकती थी। नगर निगम एक निगमित निकाय हो गया था। जिस के विरुद्ध वाद प्रस्तुत किया जा सकता था और जो स्वयं भी वाद प्रस्तुत कर सकता था।
मेयर न्यायालयों का स्वरूप
चार्टर के अनुसार 1727 की 17 अगस्त को मद्रास में, दिसम्बर में कोलकाता में और फरवरी 1728 में मुम्बई में मेयर न्यायालयों की स्थापना कर दी गई। न्यायालय में गणपूर्ति के लिए मेयर और वरिष्ठ ऐल्डरमेन सहित दो ऐल्डरमेनों की उपस्थिति अनिवार्य थी। न्यायालय की बैठक सप्ताह में तीन बार होती थी और केवल दीवानी मामलों की सुनवाई अंग्रेजी विधि के अनुसार की जाती थी। इस न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध अपील सपरिषद गवर्नर के न्यायालय को की जा सकती थी। एक हजार पैगोडा तक का गवर्नर का निर्णय बाध्यकारी होता था। इस से अधिक मूल्य के मामलों में किंग-इन-काउंसिल को अपील की जा सकती थी। इस प्रकार प्रथम और द्वितीय अपील की पद्धति का उद्भव इस चार्टर के द्वारा हुआ। मेयर न्यायालय भारत में मरने वाले अंग्रेजों की संपत्ति के मामले में प्रशासन पत्र जारी कर सकता था। मेयर न्यायालय अपने अवमान के लिए दंडित कर सकता था। विधि का उच्चतम स्रोत ब्रिटिश सम्राट को माना गया था।
मेयर न्यायालय में प्रक्रिया विधि स्पष्ट नहीं थी। चार्टर में केवल यह उपबंध था कि वह युक्तिसंगत न्याय करेगा। इस न्यायालय में पुराने 1661 के चार्टर में निर्दिष्ट अंग्रेजी विधि का उपयोग किया जाता था। वाद प्रस्तुत होने पर प्रतिवादी को न्यायालय में उपस्थित कराने का दायित्व न्यायालय का था। प्रतिवादी के उपस्थित न होने पर उसे गिरफ्तार कर न्यायालय के सन्मुख प्रस्तुत किया जाता था। इस चार्टर से शेरिफ नाम के पद का सृजन किया गया था। प्रारंभिक नियुक्ति चार्टर से ही कर दी गई थी। शेरिफ का कार्यकाल एक वर्ष का था और सपरिषद गवर्नर चुनाव के माध्यम से नया शेरिफ नियुक्त कर सकता था। शेरिफ का दायित्व न्यायालय के समन तामील कराना और तामील हो जाने पर निर्धारित तिथि पर प्रतिवादी के उपस्थित न होने पर उसे गिरफ्तार कर न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना था। न्यायालय की डिक्री का निष्पादन कराने आदि काम भी उसे ही सोंपे गए थे।
शांति न्यायाधीश और सत्र न्यायालय
प्रत्येक प्रेसिडेंसी नगर के लिए गवर्नर और परिषद के पाँच सदस्यों को शांति न्यायाधीश नियुक्त करने का उपबंध चा
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6 Comments
wah…badiya jaankari..
दिनेश जी मै भी यही कहना चाहता था, ओर हमारे ही लोग इन के चम्म्चे बन कर देश को गुलामी की तरफ़ ले गये, ओर आज भी वही व्यवस्ता चल रही है, बस उन अग्रेजॊ की जगह आज हम ने ले ली,
@ राज भाटिय़ा
दुर्भाग्य तो यह है कि अंग्रेजों के भारत आने के पहले कोई भी पर्याप्त न्याय व्यवस्था भारत में विद्यमान नहीं थी, न ही कोई मजबूत प्रशासन था। वर्ना उन्हें यहाँ स्थानीय विधि के अंतर्गत काम करने को विवश किया जा सकता था। हमने स्वयं ही तो उन्हें अपने क्षेत्रों का प्रशासन और न्यायव्यवस्था सोंप दी। उन्हों ने स्थानीय परिस्थितियों का लाभ उठा कर हमारे देश पर कब्जा कर लिया। अंग्रेजों ने उन के स्वयं के लाभ के लिए प्रशासन और न्याय व्यवस्था को कायम किया। लेकिन उसी की बदौलत आज हमारे पास मजबूत प्रशासन और न्याय व्यवस्था है। समस्या तो यह है कि वह पर्याप्त नहीं है। अदालतें जरूरत की चौथाई मात्र हैं। व्यवस्था के लिए पर्याप्त पुलिस और नागरिक प्रशासन नहीं है। वह दिनों दिन वह बदतर हालत में जा रहा है। न्याय व्यवस्था को तेजी से बढ़ा कर आबादी के मुकाबले उस का संतुलन कायम करने की तुरंत जरूरत है। वर्ना जनता जब विद्रोह करेगी तो मौजूदा प्रशासन उसे संभालने में अक्षम होगा। समस्या यह भी है कि विद्रोही जनता का नेतृत्व कहीं फिर गलत हाथों में हुआ तो देश का भविष्य अंधकार में चला जाएगा।
बहुत अच्छी जानकारी है धन्यवाद्
अति सुंदर जानकारी और हमारा ज्ञानवर्धन हो रहा है.
रामराम.
आदरणीय द्विवेदी जी !
जिन विषयों को आप अपनी भाषा दे रहे हैं, उन्हें जानने की हम साधारण की बेहद उत्कंठा रही है, बहुत रोचक शैली है आपकी , आसानी से समझ पाता हूँ मैं !
सादर