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Category: विधिक इतिहास

भारत के सर्वोच्च न्यायालय की कुछ विशेष शक्तियाँ : भारत में विधि का इतिहास-101

भारत के संविधान ने सर्वोच्च न्यायालय को कुछ विशेष शक्तियाँ भी दी हैं। वह अनुच्छेद 71 के अंतर्गत  राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव के संबंध में उत्पन्न विवाद
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सर्वोच्च न्यायालय की नियम बनाने की शक्तियाँ : भारत में विधि का इतिहास-100

संविधान के अनुच्छेद 145 ने सर्वोच्च न्यायालय को न्यायालय की पद्धति और प्रक्रिया के सामान्य विनियमन के संबंध में नियम बनाने की शक्ति प्रदान की है जिस के
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उपचारात्मक याचिका (Curative Petition) एक अंतिम न्यायिक उपाय : भारत में विधि का इतिहास-99

इन दिनों यह बात चर्चा में है कि जब भोपाल त्रासदी के अभियुक्तों के विरुद्ध लगाए गए धारा 304 भाग दो दं.प्र.सं. के आरोपों को भारत का सर्वोच्च
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सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना के लिए दंडित करने व नियम बनाने की शक्तियाँ : भारत में विधि का इतिहास-98

अवमानना के लिए दंडित करने की शक्ति सर्वोच्च न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 129 के अंतर्गत एक अभिलेख न्यायालय है। इसी कारण से इस न्यायालय को अपनी ही अवमानना
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सर्वोच्च न्यायालय की अपने ही निर्णयों और आदेशों के पुनर्विलोकन की अधिकारिता : भारत में विधि का इतिहास-97

सर्वोच्च न्यायालय को संविधान के अनुच्छेद 137 के अंतर्गत शक्ति प्रदान की गई है कि वह अपने ही निर्णयों और आदेशों का पुनर्विलोकन कर सकेगा। लेकिन उस की
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सर्वोच्च न्यायालय की परामर्श प्रदान करने की अधिकारिता : भारत में विधि का इतिहास-96

संविधान के अनुच्छेद 143 से सर्वोच्च न्यायालय को परामर्श देने की अधिकारिता प्रदान की गई है। इस उपबंध के अंतर्गत भारत के राष्ट्रपति उन के समक्ष कुछ विशिष्ठ
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सर्वोच्च न्यायालय की रिटें जारी करने की अधिकारिता : भारत में विधि का इतिहास-95

भारत के सर्वोच्च न्यायालय को उस की अपीलीय और आरंभिक अधिकारिता के अतिरिक्त संविधान में नागरिकों को प्रदत्त मूल अधिकारों के प्रवर्तन के लिए उचित कार्यवाहियाँ करने की
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सर्वोच्च न्यायालय की विशेष अनुमति से अपीलीय अधिकारिता : भारत में विधि का इतिहास-94

सर्वोच्च न्यायालय भारत का अंतिम और उच्चतम न्यायिक निकाय है। यही कारण है कि उसे संविधान के अनुच्छेद 136 के अंतर्गत विशेष अनुमति से अपील सुनने का प्राधिकार
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सर्वोच्च न्यायालय की सामान्य अपीलीय अधिकारिता : भारत में विधि का इतिहास-93

सर्वोच्च न्यायालय भारत का अंतिम न्यायालय है जहाँ किसी न्यायार्थी को न्याय प्राप्त हो सकता है। इसे सभी प्रकार के मामलों में अपीलीय शक्तियाँ प्राप्त हैं। संवैधानिक मामले-संविधान
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भारत शासन अधिनियम 1935 और विधि व्यवस्था : भारत में विधि का इतिहास-84

अगस्त 1935 में ब्रिटिश संसद ने भारत शासन अधिनियम 1935 पारित किया। इस अधिनियम ने 1919 के अधिनियम का स्थान लिया। इस अधिनियम के उपबंधों से भारत में
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