न्यायपालिका की आलोचना के लिए माफी मांगने के बजाय जेल जाना पसंद करेंगे
|पिछले दो दिनों से सुरेश चिपलूनकर ने सुप्रीमकोर्ट के जजों के संदिग्ध आचरण के बारे में अपने ब्लॉग पर प्रकाशित किया है। यह सब बहुत पहले से तहलका ई-मैगज़ीन पर पिछली सात अक्टूबर को प्रकाशित हो चुका था। यह सारा मामला वास्तव में न्यायिक जवाबदेही आंदोलन के प्रमुख और सुप्रीमकोर्ट अधिवक्ता प्रशांत भूषण के तहलका में प्रकाशित एक साक्षात्कार में यह कहने पर उत्पन्न हुआ था कि देश के पिछले सोलह न्यायाधीशों में आधे भ्रष्ट थे। उस समय तक न्यायमूर्ति एच.एस. कपाड़िया मुख्य न्यायाधीश नहीं बने थे, उन्हों ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश के.जी.बालाकृष्णन् के साथ एक पीठ में वेदान्ता स्टरलाइट ग्रुप से जुड़े एक मामले की सुनवाई की थी इसी साक्षात्कार में उन्हों ने यह भी कहा था कि न्यायमूर्ति कापड़िया को इस मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए क्योंकि वह कंपनी के शेयर धारक हैं।
इस साक्षात्कार के आधार पर सुप्रीमकोर्ट के एक अधिवक्ता हरीश साल्वे ने सुप्रीमकोर्ट के समक्ष एक अवमानना याचिका दाखिल की गई और उस पर प्रशांत भूषण और तहलका के संपादक तरुण तेजपाल के विरुद्ध सुप्रीमकोर्ट ने अवमानना नोटिस जारी किया। इस नोटिस के उत्तर में प्रशांत भूषण ने कहा कि उन्हों ने जो कुछ कहा वह उन की निजि राय थी जो तथ्यों पर आधारित थी, और यदि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के बारे में निजि राय अभिव्यक्त करना उन का अभिव्यक्ति का मूल अधिकार है। इस के समर्थन में प्रशांत भूषण के पिता और वरिष्ठ अधिवक्ता शान्ति भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में एक शपथ पत्र दाखिल कर के कहा कि वे खुद जानते हैं कि सोलह में से आठ मुख्य न्यायाधीश भ्रष्ट थे। इस शपथ पत्र के अंश तहलका ने प्रकाशित किए। शान्ति भूषण ने यह भी कहा कि उन्हें इस कार्यवाही में पक्षकार बनाना चाहिए क्यों कि जो कुछ प्रशांत ने कहा है वह सही है और वे उस की ताईद करते हैं।
बुधवार को इसी प्रकरण की प्रारंभिक पूछताछ सुनवाई के दौरान पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह और उनके वकील बेटे प्रशांत भूषण न्यायपालिका में भ्रष्टाचार की ओर इशारा करने के लिए माफी मांगने के स्थान पर को जेल जाना पसंद करेंगे। उन्हों ने न्यायमूर्ति अल्तमश कबीर, न्यायमूर्ति सायरिक यूसुफ और न्यायमूर्ति एच एल दत्तू की सुप्रीम कोर्ट बैंच के समक्ष यह जवाब तब दिया जब उन्हें उन से माफी मांगने की पेशकश की गई थी।
इस अवमानना के इस मामले में यह प्रश्न निहित हो चुका है कि भूषण पिता-पुत्र द्वारा जो कुछ सुप्रीमकोर्ट और उस के न्यायाधीशों के लिए कहा और तरुण तेजपाल द्वारा तहलका में प्रकाशित किय
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7 Comments
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द्विवेदी जी एक न्याय पालिका के सुधरने से देश का अधिकतम भ्रष्टाटार खतम हो सकता है….पर आपने देखा कि जब जजों की भर्ती तक मैं लाखों रूपये की रिश्वत ली जाती है…और इंसाफ के लिए वकीलों को हङताल करनी पङे तो न्याय कहां से मिलेगा…..निश्चित ही न्याय पालिका भी लोकतंत्र का हिस्सा है और उसे भी न्याय के दायरे मैं ही रहना चाहिये.
आखिर जज भी इंसान है और न्याय के दायरे में आने चाहिए !
nice……….
सर मैं सोच ही रहा था कि इस विषय पर कुछ लिखूं अब पहले सुरेश भाई ने और फ़िर आपने लिख कर शुरूआत तो कर ही दी है ..मैं इसे आगे बढाऊंगा । होना तो ये चाहिए कि जो न्यायपालिका खुद भ्रष्टाचार पर इतना व्यग्र हो कर कहती है कि सभी भ्रष्टाचारियों को खंबे पर लटका देना चाहिए वो खुद अपनी आलोचना से इतना तिलमिला जाती है । एक उदाहरण ब्लॉगजगत में सक्रिय इरफ़ान भी हैं इसके जिनके कार्टून से तिलमिला कर कुछ ऐसा ही व्यवहार किया गया । ऐसे में आम लोगों को भी जम कर इन्हें आडे हाथों लेना चाहिए । सार्थक आलेख
जी हाँ द्विवेदी जी
मैंने भी अभिव्यक्ति की आज़ादी के आधार पर ही उक्त जानकारी अपने ब्लॉग पर अनुवाद करके डाली है ताकि आम जनता तक ये बातें पहुँचें… लिंक्स और रेफ़रेंस भी दिये हैं ताकि भ्रम ना हो… डिस्क्लेमर भी लगा दिया है कि "अवमानना"(?) हो तो उसे हटा भी लूंगा… फ़िर भी "दाल में काला" तो है ही और जनता को यह जानने का पूरा हक है कि आखिर यह "काला" कितना काला है।
वैसे भी न्यायाधीशों की अवमानना, सती-सावित्री नारी के शील से भी कोमल है, जो पता नहीं किस बात पर भंग हो जाये…।