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न्यायाधीशों और लोक सेवकों का किसी अपराध के लिए अभियोजन

 सहदेव शर्मा पूछते हैं – – –

कृपया बकायेगेँ की जज (कार्य पालक या न्याय पालिका) यदि कुछ तथ्योँ को दर्शा कर और कुछ को छिपाकर (स्वतन्त्रता या लालच से) मन-मर्जी का आदेश पारित करे तो क्या यह दण्डनीय नहीं है? अगर है, तब सजा कौन और कितनी दे सकता है ?

 उत्तर – – –
सहदेव जी,
प ने बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न किया है। आप ने जिन शब्दों में अपने प्रश्न को प्रकट किया है ठीक -ठीक वैसा कोई अपराध किसी भी कानून में वर्णित नहीं है। लेकिन भारतीय दंड संहिता की धारा 217, 218 219 में निम्न दंडों का प्रावधान है —
भारतीय दंड संहिता
धारा – 217, लोक सेवक द्वारा किसी व्यक्ति को दंड से या किसी संपत्ति को समपहरण से बचाने के आशय से विधि के निदेश की अवज्ञा 
जो कोई लोक सेवक होते हुए विधि के ऐसे किसी निदेश की, जो उस संबंध में हो उस से ऐसे लोग सेवक के नाते किस ढंग का आचरण करना चाहिए, जानते हुए अवज्ञा कर के किसी व्यक्ति को वैध दंड से बचाने के आशय से या संभाव्यतः तद्द्वारा बचाएगा यह जानते हुए अथवा किसी संपत्ति को ऐसे समपहरण या किसी भार से, जिस के कि लिए वह संपत्ति विधि के द्वारा दायित्व के अधीन है बचाने के आशय से या संभाव्यतः तद्द्वारा बचाएगा यह जानेत हुए करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिस की अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दंडित किया जाएगा। 
218. किसी व्यक्ति को दंड से या किसी संपत्ति को समपहरण से बचाने के आशय से लोक सेवक द्वारा अशुद्ध अभिलेख या लेख की रचना 
जो कोई लोक सेवक होते हुए औऱ ऐसे लोक सेवक के नाते कोई अभिलेख या अन्य लेख तैयार करने का भार रखते हुए, उस अभिलेख या लेख की इस प्रकार से रचना कर, जिसे वह जानता है कि अशुद्ध है लोक को या किसी व्यक्ति को हानि पहुँचाने के आशय से या संभाव्यतः तद्द्वारा कारित करेगा यह जानते हुए अथवा किसकी संपत्ति को ऐसे समपहरण या अन्य किसी भार से, जिस के दायित्व के अधीन वह संपत्ति विधि के अनुसार है, बचाने के आशय से या संभाव्यतः तद्द्वारा बचाएगा यह जानते हुए करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिस की अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दंडित किया जाएगा। 
219. न्यायिक कार्यवाही में विधि के प्रतिकूल रिपोर्ट आदि का लोक सेवक द्वारा भ्रष्टतापूर्वक किया जाना 
जो कोई लोक सेवक होते हुए न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में कोई रिपोर्ट, आदेश, अधिमत या विनिश्चय जिस का विधि के प्रतिकूल होना वह जानता हो, भ्रष्टतापूर्वक या विद्वेष पूर्वक देगा, या सुनाएगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिस की अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।
 भी जज लोक सेवक हैं और उक्त धाराएँ उन पर प्रभावी हैं। यदि उक्त धाराओं के अंतर्गत किसी जज ने कोई कृत्य किया है तो वह दंडनीय अपराध है। उन पर दंड प्रक्रिया संहिता के उपबंधों के अंतर्गत कार्यवाही की जा सकती है। 
कोई भी व्यक्ति किसी भी अपराध की सूचना संबंधित पुलिस स्टेशन को दे सकता है। यदि पुलिस पाती है कि इस मामले में अपराध का होना प्रथम दृष्टया पाया जाता है तो वह अपराध की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर के अन्वेषण आरंभ कर सकती है। अन्वेषण पर अपराध के किए जाने के लिए पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध होने पर लोक सेवक के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत करने हेतु कार्यवाही कर सकती है। लेकिन,किसी भी जज के विरुद्ध अभियोजन दंड  प्रक्रिया संहिता की धारा 197 की प्रक्रिया के अंतर्गत ही किया जा सकता है। धारा 197 दं.प्र.संहिता एक पृथक विषय है। उस पर तीसरा खंबा में पृथक से आलेख लिखा जाएगा। 
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