न्यायाधीश और वकील काला कोट क्यों पहनते हैं?
|भारत में कहीं भी आप किसी अदालत में जाएंगे। आप को काले कोटों की बहुतायत दिखाई देगी। चाहे भीषण गर्मी क्यों न पड़ रही हो। चेहरे से पसीने की बूंदें झर-झर झर रही हों। कोट के नीचे कमीज बनियान तर हो चुके हों लेकिन वकील कोट में ही दिखाई देंगे। यही नहीं, अंदर कमीज का भी गले का बटन बंद होगा और ऊपर से बैंड्स या टाई और बंदी दिखाई देगी। कहीं ऐसा न हो कि गले के रास्ते कहीं से हवा घुस जाए। आप यदि सर्वोच्च न्यायालय या किसी हाईकोर्ट में पहुँच जाएंगे तो वहाँ कोट के ऊपर एक गाउन और डाला हुआ मिलेगा। वकील नहीं सारे न्यायाधीश भी यही वर्दी पहने नजर आएंगे। आप के मन में यह प्रश्न भी उठेगा कि क्या वकीलों और न्यायाधीशों को गर्मी नहीं लगती? मुझ से तो कई लोग पूछ भी लेते हैं कि क्या आप को गर्मी नहीं लगती? मैं सहज रूप से उन्हें कह भी देता हूँ कि नहीं लगती। सिर्फ सुबह जब पहनते हैं तब लगती है, फिर कुछ देर में अंदर की बनियान, कमीज सब पसीने से भीग जाते हैं, तब जरा भी हवा अंदर प्रवेश करती है तो सब ठण्डे भी हो जाते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय में यह परेशानी कम है। वहाँ सभी न्यायालय वातानुकूलित हैं। न्यायाधीशों को वहाँ कोट पहनने में कोई परेशानी नहीं होती। जितनी देर वकील अंदर न्यायालय कक्ष में रहते हैं उन्हें भी परेशानी नहीं होती। परेशानी होती है तो जिला न्यायालय और उस से नीचे के न्यायालयों के वकीलों को। अब आप को समझ आ रहा होगा कि भारत में दीवानी न्यायालय गर्मी के मौसम में क्यों बंद कर दिए जाते हैं और क्यों राजस्थान जैसे सब से गर्म प्रदेश में ढाई माह के लिए न्यायालयों का समय सुबह सात से साढ़े बारह का क्यों कर दिया जाता है? लेकिन वकीलों को इस से भी राहत नहीं मिलती उन के काम केवल दीवानी अदालतों में ही नहीं होते उन्हें फौजदारी, राजस्व और दूसरी अदालतों में भी जाना होता है। इन में से राजस्थान में राजस्व न्यायालय और अनेक न्यायाधिकरण 10 से 5 बजे तक काम करते हैं। परिणामतः वकीलों को लगभग दिन भर अदालतों में रहना होता है।
जज और वकील की पोषक सफ़ेद और काले रंग की इसलिए होते है क्योकि सफ़ेद रंग , सचाई , ईमानदारी और पवित्रता का प्रतीक है और काले रंग के बारे में कहावत है की काले रंग पर कोई रंग नहीं चढ़ता है | इसलिए वकील और जज से आसा की जाती है की वे अपने काम में उपरोकत कथनो की पालना करें
क्या करे बिचारा जब जिम्मा लिया है तो निभाना तो पड़ेगा ही———–
बहुत अछि जानकारी, शुक्रिया
@आखिर ऐसा क्या है कि वकील काला कोट छोड़ना नहीं चाहते।..
उत्तर का इन्तजार रहेगा..
वैसे भी जब गर्मी के मौसम में आपरधिक मामलों के लिए न्यायालय खुला हो तो छुट्टी नहीं हो पाती तब दीवानी मामलों के लिए बंद रखने का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता |यह सब अंग्रेजी परंपरा का निर्वाह , जिसका परित्याग कठिन लगता है ,मात्र है |
वैसे गर्मी की छुटियाँ तो अंग्रेजी न्यायाधिशों के लिए हुआ करती थीं जो मूलतः सर्द प्रदेश के रहने वाले थे | राजस्थान के ही समीप दिल्ली राज्य में न्यायालय १० से ५ ही ( गर्मी में )कार्य करते हैं जहाँ के वातावरण में कोई ज्यादा अंतर नहीं है |यह तो हमारी न्यायपालिका की आरामपरस्ती कहिये की वे न्यूनतम कार्य करके अधिकतम अर्जित करना चाहते हैं |
मेरे विचार में-खाकी वर्दी-पुलिस अधिकारी, काला कोट-जज और वकील, सफेद कोट-डाक्टर. अगर तीनों वर्दी में अगर सभी ईमानदार व्यक्ति आ जाए.तब आम-आदमी शायद शोषित न हो. जिन्हें भगवान का दूसरा रूप भी कहा गया है और अगर हमारे देश में कलम के सच्चे सिपाही "पत्रकार" भौतिक वस्तुओं का त्याग करके हमारे देश के स्वार्थी राजनीतिज्ञों की कार्यशैली से पूरी ईमानदारी से "आम-आदमी" को अपने लेखन से अवगत कराये.तब फिर से भारत देश "सोने की चिड़िया" कहलायेंगा और "रामराज्य" की स्थापना होगी.
Aap hamare yaha aakar practice kijiye… Koi to jeans-tshirt me aa jata hai, koi kurte me, coat to diwali se holi chalta hai… Sardi me b log apne purane suit aur blazer me aa jate hai
आने वाली जानकारी को मजेदार जानकारी कहना चाहूंगा
हिंट इसी बात में है कि
डॉक्टर सफेद कोट पहनते है
और यह कहा ही जाता है कि वकील और डॉक्टर से झूठ ना बोलो वरना एक की वजह से जमीन से 3 फीट ऊपर जाना पडेगा और दूसरे की वजह से जमीन के 3 फीट नीचे पहुँच जाओगे
सर्फ़ एक्सेल का विज्ञापन याद आ रहा
दाग अच्छे हैं 🙂
गुरुदेव जी, हर प्रोफेशन की कुछ मजबूरियां होती है. लेकिन मेरा अनुभव है.जब आपको प्रोफेशन में नए-नए होते हैं तब आप अपने प्रोफेशन में इतने परिक्व नहीं होते हैं.लेकिन जब आप प्रोफेशन में दस-बीस साल हो जाते हैं.तब आप उसके आदी हो जाते हैं.तब गर्मी और सर्दी, भूख व प्यास का अहसास भी नहीं होता है.यह मेरे अपने अनुभव है. हो सकता है आपके अनुभव दूसरे हो.लेकिन आपकी स्वरोक्ति अच्छी लगी और पता चला दूसरों को टालने के लिए कह देते हैं कि गर्मी नहीं लगती हैं. मगर गर्मी की पीड़ा को आपकी उपरोक्त पोस्ट में समझा जा सकता है.
@ अम्बरीष मिश्र
कानून बदला जा सकता है और एक न एक दिन बदल भी दिया जाएगा।
@ दर्शन लाल बवेजा
कोट में कम से कम पाँच जेबें होती हैं और कागज, पेन, पेंसिल, ऐनक, छोटी नोटबुक,दस्तावेज, कंघी, कार/बाइक की चाबी … आदि से भरी होती हैं। किसी एक जेब में पर्स भी होता है।
कोट मे जेबें ज्यादा होती है शायद इसलिए 🙂
बडी ही वेदना है !
वकिल और ये तौर तरीके
मर जाता है जिते जीते ।
द्विवेदी जी ,
जहा कई कनून बनाये गये और कई कानून हटाये गये कईयो मे हुआ सन्शोध्न तो क्या इस्मे नही हो सक्ता है क्य ?
@ अभिषेक आनंद,
वकीलों के कोट समरकोट नहीं होते। वे वर्ष भर एक जैसा ही कोट पहनते हैं। मैं ने बीस वर्ष पहले रूबिया का बंद गले का समरकोट पहनने का प्रयोग किया था। लेकिन अब उसे बनाने कोई दर्जी ही तैयार नही होता है।
मुझे ठीक से याद नहीं आ रहा लेकिन किसी बात पर पापा कहते हैं मम्मी से कि वकील सब को कोर्ट में देखो, गर्मी में भी काला कोर्ट पहने रहते हैं|
मम्मी ने जवाब दिया कि वो ऐसा थोड़े ही होता है, वो समर कोर्ट होता है|
पापा- अरे समर कोर्ट हो फिर भी गर्मी तो लगती ही होगी|
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अभिषेक, पुराना पाठक, संभवतः पहला कमेंट| अगले पोस्ट का इंतजार