पति-पत्नी की भांति अनेक वर्षों के सहवास के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने स्त्री-पुरुष को विवाहित माना
| सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में चालम्मा बनाम तिलगा के मुकदमें दिए गए निर्णय में कहा है कि स्त्री-पुरुष के पति-पत्नी की भांति अनेक वर्षों तक सहवास करने के आधार पर न्यायालय यह निष्कर्ष दे सकती है कि वे विवाहित थे।
के. टी. सुब्रह्मण्यम कर्नाटक पॉवर कॉरपोरेशन का कर्मचारी था। उस ने भारतीय जीवन बीमा निगम से चार जीवन बीमा पॉलिसियाँ ली थीं जिस में उस ने अपनी माँ चालम्मा को नामित बनाया। उस की मृत्यु के उपरांत तिलगा और उस के दो पुत्रों ने बीमा पॉलिसियों के अंतर्गत मृत्यु दावा की राशि प्राप्त करने के लिए सिबिल जज सागर के न्यायालय में आवेदन किया। माँ चालम्मा ने उस में पक्षकार बनने की अर्जी दी और उसे भी पक्षकार बना लिया। तिलगा का कहना था कि वह सुब्रह्मण्यम की पत्नी थी और उस के दोनों बेटों का उसी से जन्म हुआ है। जब कि माँ चालम्मा का कहना था कि तिलगा ने कभी उस के बेटे से विवाह ही नहीं किया। इस मामले में मूल प्रश्न यही था कि क्या तिलगा का विवाह मृतक के साथ हुआ था।
मुकदमें में सबूतों से यह प्रमाणित हुआ कि तिलगा और मृतक ने तीन वर्ष नौ माह उन्नीस दिन तक एक ही क्वार्टर में निवास किया था और समाज ने उन्हें पति-पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया था। जज ने निर्णय दिया कि इस आधार पर साबित हुआ कि वे दोनों पति-पत्नी थे और उन में विवाह हुआ था। चालम्मा ने इस निर्णय की अपील जिला जज के न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की जहाँ यह निर्णय बरकरार रहा। चालम्मा ने उच्चन्यायालय के समक्ष पुनरीक्षण याचिका प्रस्तुत की जो निरस्त कर दी गई और मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा।
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सुप्रींम कोर्ट में चालम्मा के वकील का तर्क था कि तिलगा को यह साबित करना चाहिए था कि उस की विधिपूर्वक मृतक के साथ विवाह हुआ था। सुप्रीम कोर्ट ने साक्ष्य की विवेचना करते हुए कहा कि मृतक जब नौकरी में आया तो उस ने खुद को अविवाहित दर्ज कराया था किंतु उस ने क्वार्टर आवंटित कराते समय स्वयं को विवाहित बताया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 50 और 114 के अंतर्गत न्यायालय द्वारा पक्षकारों के आचरण और व्यवहार से विवाह के तथ्य को प्रमाणित माना जा सकता है। इस मामले में मृतक और तिलगा का अनेक वर्षों तक साथ रहना प्रमाणित हुआ है और समाज ने उन्हें पति-पत्नी के रूप में ही जाना है। इस आधार पर दोनों के विवाहित होने का तथ्य प्रमाणित माना जाता है।
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10 Comments
आज कल ऐसे बहुत से फैसले आ रहे हैं जो विवाह के प्रतिष्ठान को कमजोर कर रहे हैं, और यह मेरे लिए दुःख और निराशा की बात है.
द्विवेदी जी ,
आपको और आपके परिवार को भी रक्षाबंधन के पावन अवसर पर बहुत बहुत शुभकामनाये |
हो सके तो न्यायाधीशों की संपत्ति की घोषणा से संबंधित पोस्ट पर भी अपने विचारों से अवगत कराये |
शेष शुभ |
आपका
शिवम् मिश्रा
मैनपुरी , उत्तर प्रदेश
कानून के पेंच भी निराले हैं। अघोषित लिव-इन रिश्ता रहा दोनो में, जिसे समाज ने विवाह मान लिया था। अब कोर्ट की मुहर लग गयी है तो कुछ और ऐसे लोग सामने आ सकते हैं।
जानकारी देने का आभार।
ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए धन्यवाद.
bahut hi badhiya , knowledge ke sath-sath hame prerana bhi milti hai ki agar aisi situation kabhi aaye to ham kya kar sakte hain. thank you
बहुत बढ़िया लिखा है आपने! आपके पोस्ट के दौरान अच्छी जानकारी प्राप्त हुई! धन्यवाद!
जानकारी मे और इजाफ़ा हुआ. शुभकामनाएं.
रामराम.
सही न्याय मिला तिलगा को …
तो ये ’लिव इन’ से अलग कहलाया. इसमें साथ रहना तो जरुरी नहीं.
इस ज्ञानवर्धक जानकारी के लिये अभार ।